भीड़तंत्र के आतंक से मुक्ति कब मिलेगी ?

0
413

दिल्ली हिंसा पर आरोप-प्रत्यारोप की जबरदस्त राजनीति जारी है। हालात देखकर लगता है कि सभी राजनैतिक दलों को केवल और केवल अपने वोटबैंक को साधने की चिंता है, किसी को भी इंसान, इंसानियत, समाज व देश की चिंता नहीं है। हिंसा के षड्यंत्रकारियों व दोषियों पर सख्त कार्यवाही में हर दल का अपनी ढपली अपना राग चल रहा है। हर कोई अपने दल के बेतुके आग उगलने वाले बयानवीरों को बचाना चाह रहा है व दूसरे दल के नेताओं को हिंसा के लिए जिम्मेदार ठहरा कर उनको सजा दिलाने की मांग कर रहा है। कोई भी राजनैतिक दल अपने गिरेबान में झाकने के लिए तैयार नहीं है कि उसके चंद नेताओं ने लोगों से भड़काऊ बातें करके देश व समाज का कितना बड़ा नुकसान कर दिया है। अब भी सब केवल अपने क्षणिक राजनैतिक स्वार्थ को पूरा करने के लिए देश के अमन-चैन व भाईचारे से खिलवाड़ करने से भी बाज नहीं आ रहे हैं। इंसानों की लाशों के ढेर पर किस तरह कुछ राजनेताओं के द्वारा अपनी राजनैतिक रोटियां सेंकने का काम किया जाता है, दिल्ली हिंसा इसका हाल के वर्षों में सबसे शर्मनाक और झकझोर देने वाला उदाहरण है। कोई भी दल यह सोचने के लिए तैयार नहीं है कि देश में प्रदर्शन के नाम पर आये दिन होने वाले भीड़तंत्र का आतंक कब तक चलेगा, क्या देश की जनता को कभी इस आतंक के नये तरीक़े से मुक्ति मिल पायेगी या इसी तरह देश में धरना प्रदर्शनों के नाम पर कुछ देशद्रोही साजिशकर्ताओं के द्वारा आम लोगों को भड़का कर इंसान व इंसानियत का सरेआम कत्लोगारद किया जाता रहेगा।

भारत में हर जाति-धर्म, पंथ व मत के व्यक्ति को अभिव्यक्ति की पूर्ण आजादी है, हर किसी को अपनी बात शांतिपूर्वक व बेबाकी से रखने का पूर्ण अधिकार प्राप्त है और इस अधिकार का हम सभी भारतीय समय-समय पर प्रयोग करते रहते हैं। यहाँ तक कि हम सरकार के विरोध में हो रहे प्रदर्शनों में भी बेबाकी से अपनी बात सार्वजनिक मंचों से जनता के सामने शांतिपूर्ण और गांधीवादी ढंग से रखते हैं। लेकिन सोचने वाली बात यह है कि हाल के वर्षों के दौरान देश में जिस तरह केंद्र व राज्य सरकारों के विरोध के नाम पर व अपनी मांगों को लेकर जमू-कश्मीर, राजस्थान, गुजरात, महाराष्ट्र, हरियाणा, मध्य प्रदेश, असम, मेघालय, उत्तर प्रदेश, बिहार, तेलंगाना, दिल्ली आदि राज्यों में धरना और प्रदर्शन के नाम पर प्रदर्शनकारियों के द्वारा बड़े पैमाने पर हिंसा को अंजाम दिया गया था, क्या वह जायज था ? पूर्व में हुई हिंसा व हाल ही में दिल्ली में हुई सांप्रदायिक हिंसा को तो देखकर लगता है कि देश में दंगाइयों में कानून का भय व समान समाप्त हो गया है, वो बेखौफ होकर आये दिन देश की बहुमूल्य सम्पत्ति व जानमाल को नुकसान पहुंचा रहे हैं, यही नहीं वह अब बेखौफ होकर इंसानियत का दुश्मन बनकर इंसानों की जान तक ले रहे हैं। देश में दंगाइयों के आये दिन आतंक के चलते यह हालात अब देश की सुरक्षा व्यवस्था व समुचित विकास के लिए भी बेहद चिंतनीय हो गये हैं।

कहीं ना कहीं यह स्थिति अब देश के सर्वोच्च नीति-निर्माताओं के लिए तत्काल विचारणीय व बेहद चुनौतीपूर्ण हो गयी है। क्योंकि हाल के वर्षों के अधिकांश बड़े प्रदर्शनों में जिस तरह से भड़काऊ भाषणों के चलते प्रदर्शनकारी अचानक से ही बहुत ज्यादा उग्र व हिंसक होकर आम लोगों के जानमाल को नुकसान पहुंचाने लगते हैं, सरकार को उन सभी घटनाओं की तह में जाकर हिंसा होने का कारण जानना होगा कि आखिर सरकार के प्रतिनिधियों के द्वारा प्रदर्शनकारियों से संवाद में क्या कोई कमी रह गयी थी, जो ऐसी स्थिति उत्पन्न हो गयी या फिर इस हिंसा के पीछे कुछ नेता भड़काऊ भाषण देकर कहीं देश को कमजोर करने वाली ताकतों के इशारे पर तो चुपचाप काम करके भोलेभाले कुछ देशवासियों को हिंसा करने के लिए उकसाने व बरगलाने का काम तो नहीं कर रहे हैं। हालांकि दिल्ली में हुई हिंसा पर गृहमंत्री अमित शाह के द्वारा संसद में दिये गये बयान के अनुसार, सुनियोजित तरीके से साजिश के सबूत दिल्ली हिंसा की जांच में लगातार जांचकर्ताओं को मिल रहे हैं, जो बेहद चिंता का विषय है।

जिस तरह से पिछले कुछ वर्षों में कभी केंद्र सरकार व कभी राज्य सरकार के खिलाफ हुए इन हिंसक प्रदर्शनों को देखकर लगता है कि इनमें हिंसा करने की बाकायदा स्क्रिप्ट लिखी गयी है, सरकार के विरोध के नाम पर चल रहे प्रदर्शन के नाम पर इतने बड़े स्तर पर हिंसा मन में एक शंका बार-बार लेकर आती है कि यह सब देश विरोधी लोगों की एक सुनियोजित साजिश है, जिसमें हमारे देश के चंद नेता व कुछ लोग जाने-अनजाने में या जानबूझकर देश विरोधी ताकतों के हाथों में खेल रहे हैं। यह प्रदर्शनकारी लोग अपनी मांगों की जगह जाने-अनजाने में भारत विरोधी षड्यंत्र का हिस्सा बन रहे हैं। केंद्र सरकार व राज्य सरकारों को देश में प्रदर्शन के नाम पर घटित पिछले कुछ वर्षों की हिंसा की तह में जाकर जांच करवा कर यह जानना होगा कि यह प्रदर्शनकारियों का सरकार के प्रति स्वभाविक गुस्सा था या एक सुनियोजित तरीके से अंजाम दिया गया भारत विरोधी षड्यंत्र है।

दीपक कुमार त्यागी
(लेखक स्वंतत्र पत्रकार व स्तंभकार हैं, ये उनके निजी विचार हैं)

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here