भारत हार रहा कोरोना की लड़ाई ?

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कोरोना वायरस के खिलाफ लड़ाई क्या भारत हार रहा है? इस समय कोई इस बात को स्वीकार करने को तैयार नहीं है। कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष राहुल गांधी भले केंद्र सरकार, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और भाजपा को इस बारे में नसीहत दे रहे हैं और कोरोना से लड़ने के लिए प्रेरित कर रहे हैं पर वे भी अपनी पार्टी के शासन वाले राज्यों को छोड़ कर ही यह बात कहते हैं। ऐसा लग रहा है, जैसे कांग्रेस के शासन वाले राज्यों में कोरोना के खिलाफ लड़ाई जीती जा रही है और दूसरी जगह पर लड़ाई हार रहे हैं। असलियत यह है कि पूरे देश में कोरोना के खिलाफ लड़ाई पटरी से उतर गई है। कोरोना का प्रसार रोकने और लोगों की जान बचाने का कोई ठोस प्रयास नहीं हो रहा है। केंद्र से लेकर राज्यों तक ने लोगों को उनके हाल पर छोड़ा है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने बाढ़ प्रभावित राज्यों के मुख्यमंत्रियों से बाढ़ की स्थिति को लेकर वीडियो कांफ्रेंसिंग के जरिए चर्चा की। पर इस बात की खबर नहीं है कि उन्होंने बाढ़ प्रभावित राज्यों के मुख्यमंत्रियों से कोरोना के बारे में भी बात की, जबकि हकीकत यह है कि बिहार से लेकर उत्तर प्रदेश और असम तक में बाढ़ ने कोरोना वायरस के खिलाफ लड़ाई को मुश्किल बना दिया है। एक तरफ लोग बाढ़ से बेघर हो रहे हैं, बरबाद हो रहे हैं या मर रहे हैं तो दूसरी ओर कोरोना वायरस उनके लिए आफत बना हुआ है।

लोग कोरोना के चलते जान और जहान दोनों गंवा रहे हैं। प्रधानमंत्री मोदी ने पहले कहा था कि लोगों की जान बचानी है। उन्होंने इस बात पर जोर दिया कि लोगों की जान और देश की अर्थव्यवस्था को बचाने में किसी एक को चुनना था तो भारत ने लोगों की जान बचाने का फैसला किया। उसी समय उन्होंने 21 दिन में कोरोना का महाभारत जीतने का दावा भी किया था। तब सरकार ने ऐसा लॉकडाउन लागू किया, जिसकी मिसाल मुश्किल है। पूरी दुनिया में शायद ही किसी देश में इतना सख्त लॉकडाउन लागू किया गया। इसके बावजूद उस लॉकडाउन का कोई फायदा नहीं हुआ। उलटे उस लॉकडाउन ने देश की अर्थव्यवस्था को पूरी तरह से बरबाद कर दिया। तीन या चार चरणों में लगाए गए 68 दिन के लॉकडाउन में उद्योग, कारोबार, रोजगार सबका भट्ठा बैठा। इसके बावजूद अगर कोरोना का संक्रमण रूक जाता तो लोग जान बच जाने के सुकून के साथ जहान को फिर से बनाने की चिंता में जुटते। पर अब जान और जहान दोनों संकट में हैं। भारत के साथ साथ या उससे आगे-पीछे कई और देशों ने लॉकडाउन लागू किया। इटली, ब्रिटेन, स्पेन, फ्रांस जैसे यूरोपीय देशों से लेकर न्यूजीलैंड, दक्षिण अफ्रीका जैसे अनेक देशों ने अपने यहां लॉकडाउन लागू किया। अमेरिका ने भी राज्यवार लॉकडाउन लागू किया था।

अफसोस की बात है कि लॉकडाउन लागू करने वाले सभी देशों में भारत इकलौता देश है, जहां सब कुछ बंद कर देने के बाद भी कोरोना का संक्रमण बढ़ता रहा। ज्यादातर देशों में लॉकडाउन का सकारात्मक असर हुआ और कोरोना का प्रसार रूक गया। अमेरिका में न्यूयॉर्क में कोरोना संक्रमण पर काबू पा लिया गया लेकिन राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप और उनकी रिपब्लिकन पार्टी की गलतियों के कारण दूसरे राज्यों में यह बढ़ गया है। कुछ दूसरे देशोंमें कोरोना वायरस की दूसरी लहर आ गई दिख रही है। पर ऐसा कोई देश नहीं है, जहां लॉकडाउन लागू हुआ हो और केसेज कम होने नहीं शुरू हुए हैं। इसमें भारत ही एकमात्र अपवाद है, जहां दुनिया का सबसे सख्त लॉकडाउन लागू रहा और कोरोना वायरस के केसेज भी बढ़ते गए। अब भारत में 23 लाख केसेज हो गए हैं। एक्टिव केसेज की संख्या भी साढ़े छह लाख पहुंच गई है। हर दिन 60 हजार के औसत में केसेज आ रहे हैं और मरने वालों की रोज की संख्या एक हजार के करीब पहुंच गई है। कोरोना का संक्रमण नए राज्यों में और उन राज्यों के दूरदराज के इलाकों में फैल रहा है। बिहार में तीन से चार हजार के बीच केसेज कई दिनों से आ रहे हैं। ऐसा इसके बावजूद है कि बिहार में टेस्टिंग बहुत कम है और जो टेस्टिंग है उसमें भी ज्यादा टेस्ट एंटीजन है, जिसमें ज्यादातर नतीजे गलत हो रहे हैं।

आरटी पीसीआर टेस्टिंग बहुत मामूली है। इसके बावजूद तीन हजार से ज्यादा मामले रोज आ रहे हैं। वहां इलाज की कोई व्यवस्था नहीं है। बाढ़ अलग से आई हुई है। सो, सब कुछ भगवान भरोसे है। जैसे जैसे सर्दियां नजदीक आ रही हैं इस बात का खतरा बढ़ रहा है कि कोरोना का विस्फोट और बड़ा हो सकता है। अभी गरमियों में गांवों और कस्बों आदि में लोग घरों से बाहर भी रहते हैं, जिससे सोशल डिस्टेसिंग का पालन हो जाता है पर सर्दियों में सोशल डिस्टेंसिंग मुश्किल हो जाएगी। तभी सर्दियों में कोरोना के तेजी से फैलने का अंदेशा जताया जा रहा है। पर ऐसा लग नहीं रहा है कि सरकार इस बात को समझ कर अगले दो-तीन महीने में कोरोना पर काबू पाने का कोई ठोस उपाय कर रही है। यह सही है कि यह वायरस बहुत घातक नहीं है पर संक्रामक बहुत है और अगर किसी ऐसे आदमी को हो रहा है, जिसे पहले से कोई बीमारी है तो उसके लिए घातक भी हो रहा है। पर सरकार के रवैए से ऐसा लग रहा है कि उसने मृत्यु दर कम होने और रिकवरी रेट सुधरने के हवाले इसकी पूरी तरह से अनदेखी कर दी है। सोचें, कहां तो एक तरफ प्रधानमंत्री ने इसे महाभारत बताया था और अब कहां वे इसकी तरफ देख ही नहीं रहे हैं। इसका नतीजा यह हुआ है कि सभी राज्यों के मुख्यमंत्रियों ने गर्दन रेत में गाड़ने वाला रवैया अपनाया है। यहीं रवैया भारत को इस लड़ाई में हरा रहा है।

तन्मय कुमार
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं ये उनके निजी विचार हैं)

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