भारत की बेटियों पर हिंद को नाज

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भारत की महिला हॉकी टीम ने टोयो ओलिंपिक में शानदार प्रदर्शन किया। उन्होंने पहली बार ओलिंपिक के सेमीफाइनल में जगह बनाई। हालांकि सेमीफाइनल में अर्जेंटीना और उसके बाद ब्रॉन्ज मेडल मैच में ग्रेट ब्रिटेन के हाथों हार का सामना करना पड़ा। ओलिंपिक मेडल चूकने के बाद टीम हार के दुख में डूबी नजर आई। हर आंख में आंसू थे। सविता पूनिया, वंदना कटारिया, कप्तान रानी रामपाल और नेहा गोयल समेत तमाम खिलाड़ी इमोशनल हो गए। इन सभी खिलाडिय़ों ने पूरे टूर्नामेंट गजब का प्रदर्शन किया था। महिला टीम रानी झांसी की तरह आखिरी पल तक लड़ी। सोचिए वो किससे भिड़ रही थीं, ब्रिटेन से जो रियो ओलंपिक की स्वर्ण पदक विजेता टीम थी। टोयों में जो भारत की बेटियों ने जज्बा दिखाया, सारे देश को इन बेटियों पर नाज है। अभिमान है। तारीफ करनी होगी ब्रिटेन की टीम की भी, जिसकी खिलाडिय़ों ने टीम इंडिया के प्रदर्शन की दिल खोलकर तारीफ की और भारतीय खिलाडिय़ों को समान भी दिया। उन्होंने भारतीय खिलाडिय़ों के समान में खड़े होकर तालियां बजाईं।

यही खेलों की मूल भावना है। भारतीय महिला हॉकी टीम को पीएम नरेंद्र मोदी ने भी दी शुभकामनाएं। बोले- हम थोड़े से महिला हॉकी में मेडल चूक गए, लेकिन यह नए इंडिया की खेल भावना है। उनकी सफलता ज्यादा बेटियों को हॉकी खेलने के लिए प्रेरित करेगी। महान क्रिकेटर सचिन तेंदुलकर भी बोले-शाबाश! आपने अपना बेस्ट दिया और अंत तक लड़ीं, आपने मैच गंवाया लेकिन दिल जीत लिया। ऐसा कौन है जो ओलिंपिक में पहली बार सेमीफाइनल में जगह बनाने वाली महिला टीम की खेल का इस वत कायल ना हो। सोशल मीडिया पर भारतीय महिलाओं की जमकर सराहना हो रही है। निसंदेह भारतीय महिला हॉकी टीम टोयो ओलंपिक में कांस्य पदक तो हासिल नहीं कर सकी, लेकिन उन्हों जिस दिलेरी से ग्रेट ब्रिटेन जैसी मजबूत टीम से संघर्ष किया, वह भुलाए नहीं भूलेगा। भारत को इस मुकाबले में 34 से हार का सामना करना पड़ा, लेकिन भारतीय महिला टीम के हिसाब से यह प्रदर्शन काबिल ए तारीफ़ है। उन्होंने पदक से कहीं ज्यादा जीता है और ये जीत है भरोसे की। भारतीय बेटियों में अब आखिर तक फाइट का जज्बा जरूर पैदा होगा।

जिस टीम के बारे में वार्टर फ़ाइनल में स्थान बनाने में भी संशय व्यक्त किया जा रहा था, उस टीम ने ऑस्ट्रेलिया जैसी दिग्गज टीम को हराकर ना सिर्फ सेमी फ़ाइनल में स्थान बनाया बल्कि आखिर तक अपनी लड़ाई जारी रखी। इस ओलंपिक में शानदार प्रदर्शन से भारतीय टीम बिग लीग टीमों में अपना नाम शुमार कराने में सफल हो गई है। वह नई रैंकिंग में छठे स्थान पर आ सकती है। लेकिन सवाल ये भी उठता है कि आखिर पलों में टीम गड़बड़ाई यों? दरअसल पास देने के बजाय ज़रूरत से ज़्यादा अपने पास गेंद रखने की रणनीति से कई बार उनसे गेंद भी छिनी रही और मैच भी हाथ से चला गया। दवाब से निकलने के लिए ज़रूरी था कि गेंद को सर्कल से जल्द से जल्द लियर किया जाए। पर कई बार खिलाड़ी गेंद लियर करने में देरी करके अपने ही ऊपर दवाब बनाती रहीं।

इससे ब्रिटेन को कई बार गेंद छीनकर हमला बोलने का मौका मिला। इसकी वजह से बने हमलों में भारतीय गोल पर ख़तरा भी बना। पर भला हो गोलकीपर सविता पूनिया के शानदार बचाव का, कम से कम छह निश्चित गोल के मौके रोके। भारतीय टीम का आखिरी वार्टर की शुरुआत में डिफ़ेंसिव रुख़ अपनाना मुश्किलें पैदा करने वाला रहा। इससे ब्रिटेन को बढ़त बनाने के लिए हमलावर रुख़ अपनाने में मदद मिली। पिछडऩे के बाद भारतीय खेल में फिर से तेज़ी नजर आने लगी और भारत ने बराबरी पाने के लिए पूरी ताकत झोंक दी। इसकी वजह से कुछ मौके भी मिले, लेकिन ब्रिटेन बढ़त बनाने के बाद ज़्यादा भरोसे से खेलती नजऱ आई और उसका यही रुख़ उसे पोडियम पर पहुंचाने वाला साबित हुआ। खैर नतीजा चाहे जो हो, कम से कम अब देश में खेलों का नया माहौल तो बनेगा। क्रिकेट के अलावा बाकी खेलों के प्रति भी प्यार बढ़ेगा। अब सब कुछ सरकार पर दारोमदार है कि वो खिलाडिय़ों का या सुविधा देती है? केवल दिल जीतने के बयान से काम नहीं चलेगा।

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