भगवान राम का मंदिर

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आज तोताराम बहुत खुश था। आते ही बोला- बधाई हो, भाई साहब।

हमने कहा- किस बात की बधाई? क्या इस बात की बधाई कि दिल्ली में प्याज के भाव 120 रुपए से घटकर 75 रुपए प्रतिकिलो हो गए?

बोला- कल्पना में भी घटियापन। कभी तो प्याज-टमाटर से बाहर निकला कर। क्या नए-नए मुल्ला की तरह प्याज-प्याज लगा रखी है। तुझे पता है, भगवान राम की नगरी के लिए पचास हजार करोड़ रुपए की योजना बन गई है। भगवान राम की दुनिया की सबसे ऊंची 251 मीटर की मूर्ति बनेगी और 1111 ऊंचा मंदिर बनेगा। बस, समझ ले राम-राज आ ही गया। सब समस्याएं दूर हो जाएंगी।

हमने कहा- लेकिन उत्तर प्रदेश में खाद्य आपूर्ति मंत्री रणवेंद्र प्रताप सिंह उर्फ धुन्नी बाबू ने तो कह दिया है कि अपराध रोकने की सौ फीसदी गारंटी तो भगवान राम भी नहीं दे सकते। ऐसे में किस समस्या के हल होने की उम्मीद करें। अरे, न दो रोजगार, न दो शिक्षा-चिकित्सा की सुविधाएं, कम से कम इतना तो करो कि कोई, किसी को भी, कहीं भी जला न डाले, इज्जत न लूट ले। ये सब गौरव और धर्म की आड़ में कमीशन खाने के चक्कर हैं। इन्हीं पचास हजार करोड़ में से तो भ्रष्टाचारियों की सोने की लंका भी बनेगी। राम के नाम से खा जाएंगे बीस-तीस करोड़ रुपए।

बोला- तो क्या राम का मंदिर न बने? राम का मंदिर भारत में नहीं बनेगा तो कहां बनेगा?

हमने कहा- यह बिना बात पलटी मारकर घुमा मत। राम ने अनुज वधू पर कुदृष्टि डालने वाले बाली को दंड दिया था। सीता का हरण करने वाले रावण को दंड दिया था। और आज बलात्कारियों को पकड़ने की बजाय 45 लाख का पॅकेज देकर मामले को ठंडा किया जा रहा है। बात पॅकेज और सरकारी खर्चे पर इलाज़ करवाने की नहीं है। बात यह है कि किसी राज में अपराधी इतने उद्दंड या निर्भय कैसे हो गए कि पीड़िता के परिवार को ट्रक से कुचलवा डालें? जब तक ऐसे अपराधियों को भय नहीं हो, उन्हें दण्डित न किया जाए तब तक इन मगरमच्छी आंसुओं का कोई अर्थ नहीं।

बोला- तो चल, इसी बात पर हैदराबाद की पुलिस को ही बधाई दे दे जिसने चारों अपराधियों को एनकाउंटर में मार गिराया जबकि इस देश में पुलिस का इतिहास गांधी को डंडे मारने का, जलियांवाला बाग में निहत्थों पर गोली चलाने का और न आंगनबाड़ी कार्यकर्ता भंवरी देवी के केस को लटकाने का रहा है।

हमने कहा- ये सब साधारण लोग थे तो एनकाउंटर कर दिया लेकिन बड़े-बड़े लोग तो अब भी फाइव स्टार अस्पतालों में आराम फरमा रहे हैं। कहीं उनके चेहरे पर अपराध बोध या कानून या पुलिस का भय दिखाई देता है? यदि नहीं तो ऐसे एनकाउंटरों पर विश्वास नहीं किया जा सकता? स्वर्णिम चतुर्भुज हत्या में ईमानदार इंजीनियर सत्येन्द्र दुबे की हत्या में पता नहीं कहां से दो उचक्कों को पकड़ लाए और हो गया न्याय। जबकि जिन्हें उस इंजीनियर की हत्या ने बड़े घोटाले में फंसने से बचा लिया, उनके तो कहीं नाम ही नहीं आए। यदि एनकाउंटर की करना है तो बलात्कार के अपराधी एमपी और एमएलए का करके दिखाओ। लेकिन नहीं उन्हें तो ये सेल्यूट मारेंगे।

और आज ही मुजफ्फरपुर बिहार में एक लड़की को किसी प्रोपर्टी डीलर के युवराज ने घर में घुस कर जिंदा जला दिया जबकि वह लड़की कई दिन से शिकायत कर रही थी कि आरोपी उसे परेशान करता है। पुलिस ने उसकी रिपोर्ट भी नहीं लिखी। और अब लोग टसुए बहाएंगे, पॅकेज जारी करेंगे। ये अपराधी इन्हीं नेताओं के कुल के हैं। इसीलिए तो इनका एनकाउंटर तो दूर रिपोर्ट तक नहीं लिखी जाती। और जरा कठुआ के बलात्कारियों के पक्ष में जुलूस निकालने वालों और लिंचिंग के अपराधियों का स्वागत करने वाले मंत्री का कालर की पकड़ कर दिखा दे पुलिस।

बोला- तो क्या हैदराबाद पुलिस को नरमी बरतनी चाहिए थी?

हमने कहा- फिर वही बात। हम तो कहते हैं कि सभी अपराधियों के साथ सख्ती बरतो, एक-दो महीने में फैसला करो, किसी आरोपी को खुल्ला मत छोड़ो, फिर चाहे वह सत्ताधारी पार्टी का विधायक हो या सांसद।

तोताराम, इतना सब तो छोड़। हम तो उस दिन देश में रामराज मान लेंगे जिस दिन 135 करोड़ की आबादी में एक भी माई का लाल त्रेता के जटायु जैसा निकल आए जो अपराधी को ललकारे, भले ही वह लंका का राजा रावण ही क्यों न हो। फिर कोई चिंता नहीं कि राम का मंदिर पचास हजार करोड़ का बने या पांच हजार का या न ही बने। राम का मंदिर ईंट-पत्थर का नहीं मर्यादा का होता है।

     
रमेश जोशी
लेखक देश के वरिष्ठ व्यंग्यकार और ‘विश्वा’ (अंतर्राष्ट्रीय हिन्दी समिति, अमरीका) के संपादक हैं। ये उनके निजी विचार हैं। मोबाइल – 9460155700
blog – jhoothasach.blogspot.com
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