बेवकूफी तब ही बेवकूफी होती है, जब बेवकूफी कर ली जाती है। समझदारी इसमें है कि आप बेवकूफी को होने से रोकें। पर कई होते हैं जो बेवकूफी को हो जाने देने में समझदारी मानते हैं। यह उनकी बेवकूफी है, जिसे वह समझदारी समझते हैं। आखिर समझदारी क्या है? समझदारी तो यही है कि आप समझदारी करें और समझदारी यह भी है कि आप बेवकूफी न करें। परंतु कुछ होते हैं जो पहली बेवकूफी तो यह करते हैं कि वे समझदारी नहीं करते। दूसरी बेवकूफी यह करते हैं कि जो बेवकूफी होती है, उसे समझदारी समझने देते हैं। जो समझदार बेवकूफी नहीं समझते वे, असमझदार नहीं होते। वे बेवकूफ होते हैं, यद्यपि वे नहीं समझते कि बेवकूफी क्या है? समझदार, समझदारी को समझता है। बेवकूफ , बेवकूफी को नहीं समझता। समझदार, बेवकूफी को समझता है। बेवकूफ , बेवकूफी को समझदारी समझता है। बेवकूफ की यही समझ होती है।
समझदार यह बेवकूफी नहीं करता। पर कुछ ऐसे बेवकूफ होते हैं जो अपने को समझदार समझते हैं। अब जो अपने को समझदार समझ चुका हो, उस बेवकूफ को समझाना किसी भी समझदार के लिए बेवकूफी का काम है। आप बेवकूफ को उसकी बेवकूफी समझा सकते हैं, पर उस समझदार को, जो अपनी बेवकूफी को समझदारी मान बैठा हो, समझाना बहुत कठिन है। कई बेवकूफ, बेवकूफी कर चुकने के बाद समझदार हो जाते हैं, पर तब उन्हें यह समझ आती है कि बेवकूफी मानना समझदारी न होगी। ऐसे में वे बजाय समझदारी करने के और बेवकूफी करते हैं। समझदारी को समझकर भी बेवकूफी को जारी रख, बेवकूफों की बड़ी बेवकूफी को बेवकूफी समझ लेना के बाद भी बेवकूफ ही रहता है और इस तरह से बड़ा बेवकूफ हो जाता है। इस संसार में, जहां समझदारी के काम बेवकुफ कर रहे हों, उस समय को कितनी समझदारी का कहा जाए जो बेवकूफ ने किया हो।
समझदारों की यह बेवकूफी है कि वे बेवकूफों को समझदारी का काम करने देते हैं और बेवकूफों की यह और बड़ी बेवकूफी है कि वे समझदारों के समझा देने के बाद भी अपनी बेवकूफी जारी रखने में समझदारी समझते हैं। ट्रेजेडी यह है कि समझदार, समझदारी का काम करे या न करे, बेवकूफ , बेवकूफी के काम करता ही रहता है। ऐसे में समझदारों की सारी समझ बेवकूफों की बेवकूफी बताने में खर्च होती जा रही है। इस तरह हो यह रहा है कि बेवकूफ समझदार होता जा रहा है, समझदार बेवकूफ बनते जा रहे हैं। इससे राष्ट्रीय लाभ हो रहा है, पर राष्ट्रीय हानि भी कम नहीं हो रही। क्या यह संभव है कि बेवकूफ , बेवकूफियां न करें? वे समझदारी भी न करें, क्योंकि वे भी बेवकूफी साबित होती हैं। उनकी बेवकूफी की ओर समझदार इशारा करें तो वे समझदारों को बेवकूफ समझने की बेवकूफी न करें। वे अच्छे बेवकूफों की तरह रहें और समझदारों को अच्छे समझदारों की तरह रहने दें।
स्व. शरद जोशी
(लेखक देश के जाने-माने व्यंगकार थे, एनबीटी में 6 सितंबर, 1988 को प्रकाशित)