वित्तमंत्री पीयूष गोयल का बजट-भाषण इतना प्रभावशाली था कि विपक्ष तो हतप्रभ-सा लग ही रहा था। वह अकेला भाषण नरेंद्र मोदी के पिछले पांच वर्षों के सारे भाषणों के मुकाबले भी भारी पड़ रहा था और मुझे याद नहीं पड़ता कि किसी बजट-भाषण ने लोकसभा में ऐसा चमत्कारी माहौल पैदा किया, जैसा कि पीयूष के भाषण ने किया लेकिन आश्चर्य है कि रोजगार के बारे में वित्तमंत्री ने कोई जिक्र तक नहीं किया।
यदि नोटबंदी और जीएसटी से सरकार की आमदनी कई लाख करोड़ रु. बढ़ गई तो यह समझ में नहीं आता कि देश में बेकारी क्यों बढ़ती जा रही है। नेशनल सेंपल सर्वे आफिस की ताजा रपट कहती है कि इस समय देश में जैसी बेकारी फैली हुई है, वैसी पिछले 45 साल में कभी नहीं फैली। मनमोहन-सोनिया सरकार के दौरान कितना ही भ्रष्टाचार हुआ है लेकिन उस दौरान आज की तुलना में बेकारी काफी कम थी। अब उससे वह तीन गुनी ज्यादा है। 15 से 29 साल के ग्रामीण नौजवानों में 2017-18 में 17.4 प्रतिशत लोग बेरोजगार हैं जबकि 2011-12 में वे सिर्फ 5 प्रतिशत थे। ये आंकड़े एक अंग्रेजी अखबार में क्या छपे कि सरकार में कोहराम मच गया। नीति आयोग ने कहा कि इन आंकड़ोंवाली रपट को सरकार ने प्रमाणित नहीं किया है। इस पर राष्ट्रीय आंकड़ा आयोग के दो गैर-सरकारी सदस्यों ने अपने इस्तीफे दे दिए हैं। उन्होंने कहा है कि आयोग की रपट अपने आप में प्रामाणिक मानी जाती है। उस पर सरकारी ठप्पे की कभी जरुरत नहीं पड़ती है।
यह काफी गंभीर मामला है। इसके कारण यह भी शक पैदा होता है कि सरकार ने अभी तक जीडीपी (सकल उत्पाद) आदि के बारे में जो भी आंकड़े पेश किए हैं और पीयूष ने अपने बजट-भाषण में अर्थ-व्यवस्था का जो रंगीन चित्र पेश किया है, वह भी कहीं फर्जी आंकड़ों पर तो आधारित नहीं है ? इन आंकड़ों को लेकर कांग्रेस मोदी को हिटलर कह रही है तो भाजपा राहुल को मुसोलिनी बता रही है। लेकिन कोई दल या नेता यह नहीं बता रहा कि साढ़े छह करोड़ बेरोजगार नौजवान क्या करें, कहां जाएं, अपना पेट कैसे भरें ? विचारधारा, सिद्धांत और नीति का स्थान जुमलों ने ले लिया है।
डॉ.वेदप्रताप वैदिक
(लेखक वरिष्ठ चिंतक हैं, ये उनके निजी विचार हैं)