बीरेंद्रसिंह की एतिहासिक पहल

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केंद्रीय इस्पात मंत्री बीरेंद्रसिंह ने दुनिया के सारे राजनीतिज्ञों के लिए अनुपम उदाहरण पेश किया है। भारत ही नहीं, दुनिया के कई महान लोकतांत्रिक देशों की राजनीति में परिवारवाद या वंशवाद का बोलबाला है। वहां के राजनीतिक दलों और सरकारों को भी कई नेता लोग अपनी बपौती समझ कर चलाते रहते हैं लेकिन बीरेंद्रसिंह ने घोषणा की है कि वे अपना मंत्रिपद और राज्यसभा की सदस्यता छोड़ने को तैयार हैं क्योंकि उनके बेटे ब्रजेंद्रसिंह को हरियाणा के भिवानी क्षेत्र से भाजपा ने अपना उम्मीदवार बनाया है।

बीरेंन्द्रसिंह की तरह आज तक किसी भी नेता ने ऐसी इच्छा कभी प्रकट नहीं की। बल्कि वे उल्टा ही करते हैं। वे अपने बेटे, बेटी, भाई, भतीजे, पत्नी, दामाद वगैरह को टिकिट दिलाने के लिए जमीन आसमान एक कर देते हैं। यदि उनके हाथ में टिकिट देने की ताकत हो तो वे अपने रिश्तेदारों को आंख मींच कर रेवड़ियां बांट देते हैं। इसीलिए हमारे देश में ज्यादातर पार्टियां लगभग प्राइवेट लिमिटेड कंपनियां बन चुकी हैं। कोई भाई-भाई पार्टी है, कोई मां-बेटा पार्टी है, कोई बाप-बेटा पार्टी है, कोई बुआ-भतीजा पार्टी है, कोई पति-पत्नी पार्टी है, कोई प्रेमी-प्रेमिका पार्टी रही है।

इन पार्टियों का दावा रहता है कि वे दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र को सम्हालने वाली पार्टी हैं लेकिन खुद इन पार्टियों के अंदर लोकतंत्र गायब रहता है। यही बात कमोबेश कभी-कभी हमें अमेरिका, ब्रिटेन, जापान, उ.कोरिया, नेपाल, श्रीलंका, मालदीव, मोरिशस जैसे छोटे और बड़े देशों में भी देखने को मिलती है। इन दुर्गुणों से जनसंघ, भाजपा, कम्युनिस्ट पार्टियां और संसोपा–जैसी पार्टियां बची हुई थीं लेकिन भाजपा अब कांग्रेस के ही ढर्रे पर चल पड़ी है। भाजपा को तो 2019 का चुनाव सही रास्ते पर ले आएगा लेकिन कांग्रेस कब सुधरेगी? परिवारवाद उसकी मजबूरी बन गई है।

उसके प्रधानमंत्री, मंत्रियों, मुख्यमंत्रियों और सांसदों की हालत घरेलू नौकरों-चाकरों से भी बदतर है। परिवार की वजह से ही वह बची हुई है। वरना पांच साल पहले ही उसका विसर्जन हो जाता। बीरेंद्रसिंह प्रख्यात जाट नेता सर छोटूराम के पोते हैं और मूलतः कांग्रेसी रहे हैं लेकिन भाजपा के मंत्री के नाते उन्होंने पार्टी अध्यक्ष अमित शाह को अपने इस्तीफे भेज दिए हैं। देखें, अमित शाह क्या करते हैं। यदि ये इस्तीफे स्वीकार हो जाएंगे तो भारतीय राजनीति में ये नए इतिहास को रचेंगे। बीरेंद्रसिंह मामूली मंत्री के तौर पर नहीं, इतिहास-पुरुष की तरह जाने जाएंगे।

डॉ. वेद प्रताप वैदिक
लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं ये उनके निजी विचार है

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