प्रचार तंत्र के जादू से मुक्त होगा युवा

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आभास होता है कि युवा वर्ग की धुरी पर संसार घूम रहा है। युवा वर्ग की पसंद को बाजार ने भली-भांति समझ लिया है। हैरी पॉटर की किताबें व फिल्में सफलता के शिखर पर हैं। किशोर वर्ग की अलसभोर में चंपाई अंधेरा व सुरमई रोशनी झिलमिला रही है। यह जादुई खिलौना है, मिल जाए तो माटी, खो जाए तो सोना है।’ उम्रदराज लोगों की यादों में भी युवा वय के सपने बार-बार आते हैं। यहां तक कि कुछ उम्रदराज लोगों ने अपनी युवा वय की कुछ बातें अपनी कल्पना से गढ़ ली हैं। उन्होंने अपनी बंजर सी युवा वय रोमांच की हरियाली की कल्पना कर ली है व समय के साथ वे अपनी कल्पना को यथार्थ में घटित होता हुआ भी मान लेते हैं। अपने आपसे बार-बार बोला गया झूठ सच लगने लगता है। वैचारिक संकीर्णता के संसार में यही हो रहा है। हिटलर के प्रचार मंत्री गोएबल ने झूठ तंत्र विकसित किया था। कभी-कभी युवा स्वप्न में स्वयं को सफेद घोड़े पर सवार देखता है। दुष्टों की कैद से सुंदर किशोरी को छुड़ाकर वह उसे साथ लेता है व घोड़ा उडऩे लगता है। स्वप्न के इस घोड़े पर चमड़े की जीन कसी हुई है। स्वप्न में भी उन्हें अपनी सुरक्षा का इतना ध्यान है कि जीन कसे हुए घोड़े पर बैठते हैं। कैफी आजमी का ‘हकीकत’ के लिए लिखा गया गीत, ‘वो जवानी जो खूं में नहाती नहीं’ वाला युवा आज नजर नहीं आता। आजकल तो बाजार में खुशबू की बोतलें खूब बिक रही हैं। उन दिनों एरिक सेगल का ‘लव-स्टोरी’ प्रकाशित हुआ था। युवा टेक्नोलॉजी से प्रेम कर स्मार्ट मोबाइल, लैप-टॉप पर धमा चौकड़ी मचाता है। फिल्म ‘ए वेडनसडे’ में पुलिस को हैकर की सेवा लेकर अपराधी के ठिकाने को जानना जरूरी है। युवा हैकर कहता है कि पुलिस का कम्प्यूटर मॉडल बहुत पुराना है। इसे अटाले में फेंक देना चाहिए। उस युवा ने स्वेच्छा से कॉलेज छोड़ दिया है, उसे शिक्षा व्यवसाय सड़ी-गली लगती है। हैकर चंद मिनटों में पुलिस की समस्या का हल खोज लेता है।

दो पीढिय़ों की विचार-प्रणाली में अंतर होता है। जेनरेशन गैप पर बहुत विचार किया जा चुका है। वर्तमान में 3 वर्ष के अंतर से जन्मे भाईयों के विचार नहीं मिलते। जन्म में कुछ समय का अंतर भी विचार प्रणाली बदल देता है। स्मार्ट फोन के नए मॉडल बाजार में आ जाते हैं। रंग-बिरंगे स्मार्ट फोन इंद्रधनुष का आभास देते हैं। राज कपूर कॉमिक्स पढऩा पसंद करते थे, पात्र डॅगवुड का किशोर वय का बेटा प्रेम करता है। पिता डॅगवुड उसे समझाते हैं कि यह उम्र नहीं है प्यार की। इसी संवाद से राज कपूर ने ‘बॉबी’ फिल्म का आंकल्पन किया। विठ्ठलभाई पटेल ने गीत रचा- ‘वो कहते हैं हमसे अभी उम्र नहीं है प्यार की, नादां हैं हम क्या जाने कब खिली कली बहार की, अभी उम्र नहीं है श्रृंगार की, यही रीत है संसार की।’ यह गीत कभी रिकॉर्ड नहीं किया गया। राज कपूर संजिदा पटकथा पर फिल्म नहीं बनाते थे। वे निरंतर बदलाव और सुधार करते हुए आगे बढ़ते थे। यह गीत राज कपूर की आवाज में ट्विटर हैंडल बॉबी टॉप सिनेमा पर उपलब्ध है। विट्ठलभाई के पुत्र संजय पटेल ने यह क्लिप उपलब्ध कराई है। ज्ञातव्य है कि यही गीत फिल्म ‘दरियादिल’ में लिया गया है। राजेश रोशन और इंदीवर ने इसमें परिवर्तन किए हैं। वयस्क होने की उम्र को सरकार ने घटा दिया और चुनाव परिणाम में चमत्कार होने लगे। मौज-मस्ती मंत्र को जपने वाले युवा को इतिहास बोध नहीं है। वह वर्तमान में जीता है, विगत का मलाल नहीं, भविष्य की चिंता नहीं। युवा ऊर्जा, बाढ़ पर आई नदी की तरह फूल-सितारे तोड़कर किनारे पर कूड़ा करकट छोड़ रही है। उत्सव की नदी में बाढ़ बारह मासी नहीं होती। महामारी संक्रमण ने आने वाली वैश्विक मंदी की पृष्ठभूमि रच दी है। मौज-मस्ती गैंग, हैंग ओवर से मुक्त होकर युवा प्रचार तंत्र के जादू से भी मुक्त होगा और समाजवाद के आदर्श पर लौटेगा। वह सुबह कभी तो आएगी, वह सुबह युवा वर्ग ही लाएगा।

जो फिल्म कभी नहीं बन सकी: फिल्मकार महेश कौल और महान साहित्यकार अमृतलाल नागर मित्र थे। महेश कौल ने अमृतलाल नागर को मुंबई अमंत्रित किया और दोनों तुलसीदास के जीवन चरित पर फिल्म आकल्पन का काम करने लगे। जब दोनों ने तुलसीदास के जीवन और सृजन के हर पक्ष पर विचार कर लिया तब अमृतलाल नागर ने पूरी पटकथा लिखने के लिए लखनऊ जाना उचित समझा। अमृतलाल नागर अपना कार्य निष्ठा से कर रहे थे कि उन्हें महेश कौल की मृत्यु का दुखद समाचार मिला। अमृतलाल नागर को अपने मित्र के जाने का दुख था और उनके लिए फिल्म का बन नहीं पाना उतना अर्थ नहीं रखता था। अमृतलाल नागर ने ‘मानस का हंस’ नामक उपन्यास लिखा। इसका आधार वह सामग्री थी जो उन्होंने महेश कौल के अनुरोध पर क्रमवार रची थी। ‘मानस के हंस’ की भूमिका में अमृतलाल नागर ने महेश कौल के ‘तुलसीदास जीवन चरित’ बनाने की तीव्र इच्छा का विवरण दिया है। मानस के हंस को बहुत पसंद किया गया। अगर हमारा प्रकाशन तंत्र अमेरिका की तरह होता तो मानस के हंस को बेस्ट सेलर किताब माना जाता। मानस का हंस कई वर्ष तक शिखर पर विराजे होती। उपन्यास पढऩे का समय अनुभव होता है कि पटकथा पढ़ रहे हैं। प्रारंभ होता है रत्नावली के मृत्यु शैया पर पड़े होने के विवरण से। रत्नावली की आंख द्वार पर लगी है। उसे अपने पति तुलसीदास के आने की प्रतीक्षा है। ज्ञातव्य है कि तुलसीदास को ज्योतिष का गहरा ज्ञान था और रत्नावली भी इस विषय में पारंगत थी। विवाह के पूर्व तुलसीदास की कुंडली देखकर रत्नावली यह तो जान गई थी कि यह व्यक्ति अपनी पत्नी से सीमातीत प्रेम करेगा, परंतु लंबे समय तक यह पत्नी से दूर भी रहेगा। कन्या रत्नावली ने लंबे समय के विरह की जानकारी होते हुए भी विवाह इसलिए किया कि तुलसीदास की महानता में वे शामिल होंगी।

तुलसीदास की प्रसिद्धि के सूर्य के ताप से रत्नावली के जीवन में उजास होगा? तुलसीदास अमर हैं, इसलिए रत्नावली भी स्मरण की जाती रही हैं। गुणवंतलाल शाह मनमोहन देसाई, जे. ओमप्रकाश, मोहन कुमार और मनोज कुमार की फिल्मों में पूंजी निवेश करते थे। चार्टर्ड अकाउंटेंट गुणवंतलाल शाह सितारों के आयकर सलाहकार भी थे। खाकसार ने गुणवंतलाल शाह को अमृतलाल नागर के ‘मानस’ की जानकारी दी। उन्होंने तुलसीदास बायोपिक बनाने का विचार किया। तुलसीदास के जीवन में बहुत उतार-चढ़ाव आए, उन पर कुछ स्त्रियां मोहित थीं, जिनमें एक नाचने वाली भी थी। गुणवंतलाल शाह को लगा कि तुलसीदास का पात्र दिलीप कुमार अभिनीत करें तो भूमिका के साथ न्याय होगा और एक सर्वकालिक महान फिल्म बन सकेगी। गुणवंतलाल शाह ने खाकसार का परिचय दिलीप कुमार से कराया। यह तय किया गया कि खाकसार प्रतिदिन दिलीप कुमार को उपन्यास के अंश पढ़कर सुनाएगा। साथ ही दिलीप कुमार को ‘मानसÓ की एक प्रति भी दी गई। इस तरह यह पढऩासुनना कई दिनों तक चला। दिलीप कुमार मानस से इतने प्रभावित रहे कि उन्होंने यह भी तय किया कि वे शूटिंग के लिए विग बनवाने लंदन जाएंगे। इसी बीच गुणवंतलाल शाह का निधन मात्र 41 वर्ष की आयु में हो गया। ज्ञातव्य है कि मध्यम आय वर्ग में जन्मे गुणवंतलाल शाह गुजरात बोर्ड की हाई स्कूल परीक्षा में सबसे अधिक अंक प्राप्त करके स्कॉलरशिप प्राप्त कर सके और मुंबई में हरिदास चार्टर्ड अकाउंटेंट फर्म में इंटर्न रह चुके थे। उनकी मृत्यु के बाद दिलीप कुमार ने ‘तुलसी बायोपिक’ में काम करने से इनकार कर दिया। उन्हें लगा कि हर शॉट देते समय उन्हें मित्र गुणवंतलाल शाह की याद आएगी। बहरहाल, क्या वर्तमान समय में कोई फिल्मकार तुलसी बायोपिक बनाएगा? क्या हमारे यहां ऐसा कलाकार है जो तुलसीदास की भूमिका अभिनीत कर सके? यह भय हो सकता है कि तुलसीदास अभिनीत करने के बाद अन्य भूमिका में कलाकार स्वीकार नहीं किया जाएगा?

जयप्रकाश चौकसे
(लेखक वरिष्ठ फिल्म समीक्षक हैं ये उनके निजी विचार हैं)

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