पाक का कुबूलनामा

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यूएनओ री बैठक में भाग लेने के लिए अमेरिका गए पाकिस्तान के प्रधानमंत्री इमारान खान ने खुद स्वीकार किया है कि सेना और आईएसआई अफगानिस्तान भेजने के लिए आतंकियों को प्रशिक्षित करती थी। तो इस तरह पाकिस्तान पूरी विश्व बिरादरी के सामने आतंकियों से रिश्ते को लेकर बेनकाब हो गया है। भारत तो बार-बार इस बात की दुहाई दे रहा है कि जम्मू-कश्मीर समेत देश के दूसरे हिस्सों में आतंकी वारदातों के पीछे पाकिस्तानी निजाम का हाथ है। मुंबई में 26/11 हो या फिर संसद पर आतंकी हमले की साजिश, और इसी के साथ जम्मू- कश्मीर में उसकी बदनीयती भरे कारनामे, यहां तो किसी से छिपा नहीं था लेकिन अब पूरी दुनिया वाकिफ हो गयी है। खुद पाक पीएम ने ही कुबूल किया है। इसी कड़ी में बिल्कुल ताजा मामला यह जुड़ा है कि यूएन सेक्योरिटी कौंसिल में पाक सरकार ने हाफिज सईद के पक्ष में अर्जी देते हुए कहा है कि उसे अपने खातों को संचालित करने का अधिकार बहाल किया जाए ताकि वह अपने परिवार का खर्च उठा सके ।

हाफिज सईद आतंकियों का आका कहा जाता है। हालांकि वह मौलवी है पर आतंकी तंजीम का हेड होने के नाते उसके खाते सीज चल रहे हैं। वैसे वहां उसे समाजसेवी के तौर पर पेश किया जाता है। अमेरिका की तरफ से बढ़ते दबाव के कारण जरूर इधर उस पर सख्ती हुई है। पर इसी तरह के रिश्ते रखने के चलते खुद पाकिस्तान भी कंगाली की कगार पर पहुंच गया है। उसके दोहरे चेहरे से दुनिया अब परिचित हो गई है। यही वजह है कि कश्मीर को अन्तर्राष्ट्रीय मुद्दा बनाने की उसकी कोशिश नाकामयाब हो गयी है। खुद पाक पीएम स्वीकारते हैं कि दुनिया भारत के पीएम नरेन्द्र मोदी की बातों पर विश्वास और गौर करती है। मुस्लिम मुल्क जो कभी पाकिस्तान की हां में हां मिलाया करते थे, वे भी अब वक्त के साथ बदल रहे हैं। उनके यहां भी खुलेपन की मांग बढ़ रही है। ज्ञान-विज्ञान और संवाद को समावेशी बनाने की जरूरत महसूस की जा रही है।

संयुक्त अरब अमीरात में शरिया का शिकंजा ढीला पड़ रहा है। यह एहसास भी गहरा हुआ है कि इस्लामी विस्तार की मंशा से बदलती दुनिया के बीच अपनी प्रासंगिकता बनाए रख पाना मुश्किल होगा। यही वजह है कि ज्यादातर मुस्लिम मुल्कों से भारत के रिश्ते बेहतर हो रहे हैं। इसीलिए कश्मीर के सवाल पर पाकिस्तान को मुस्लिम मुल्कों का पहले जैसा साथ नहीं मिल पा रहा है। निश्चित तौर पर इससे पाक की हताशा बढऩा स्वाभाविक है। लेकिन इसके लिए तो खुद पाकिस्तान जिम्मेदार है। भारत ने सदैव एक अच्छे सहयोगी पड़ोसी की भूमिका का निर्वाह किया है। बदले में पाकिस्तान की तरफ से जरूर कारगिल, उरी और पुलवामा में बड़े पैमाने पर आतंकी साजिशों को अंजाम दिया गया। यह बात और है कि भारतीय फौजों ने माकूल जवाब दिया। मौजूदा भारतीय नेतृत्व की कश्मीर पर नीतिगत स्थिरता से पाकिस्तानी निजाम की बौखलाहट बढ़ी है।

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