पाकिस्तान चौधरी बन बैठा

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अफगानिस्तान में सरकार के गठन में मतभेद की खबरें हैं। सत्ता हाथ में लेने के लिए बंदूकधारी नेता आपस में भिड़ गए हैं। यह देख पाकिस्तान चौधरी बन गया है। गुटों के बीच सुलह-समझौते के लिए उसने अपनी खुफिया एजेंसी आईएसआई (इंटर सर्विसेज इंटेलिजेंस) के चीफ जनरल फैज हामिद को काबुल भेज दिया है। अफगानिस्तान पर तालिबान के कजे के बाद क्षेत्र में समीकरण पूरी तरह बदल चुके हैं। चीन इन बदले समीकरणों में सबसे ज्यादा मलाई मारने की जुगत में है। भारत को टारगेट करते हुए वह इस खेल में बहुत सोच-समझकर चालें चल रहा है। इसके लिए भारत को अपने लक्ष्य तय करने होंगे। वहीं, अफगानिस्तान में पुरानी हुकूमत जाने के बाद अफगानी परेशानी से जूझ रहे हैं। लाखों देश के अंदर ही विस्थापित हो चुके हैं। बड़ी संख्या में अफगानियों ने देश छोड़ा है। जो रह रहे हैं वो पहरे में हैं। तालिबान की बदसलूकी का भी सामना कर रहे हैं। सत्ता के लिए सिर-फुटव्वल: अमेरिकी फौजों के लौटने के बाद अफगानिस्तान अस्त-व्यस्त है। तालिबान के हाथों में अफगानिस्तान आए 21 दिन बीत चुके हैं। लेकिन, सरकार बनाने का रोडमैप नहीं बन सका है। बताया जाता है कि मुल्ला अब्दुल गनी बरादर और हकानी नेटवर्क के बीच शीर्ष पदों को पाने के लिए सिर फुटव्वल शुरू हो गया है।

इस तरह के दावे हैं कि हकानी नेटवर्क के नेता अनस हकानी का बरादर और मुल्ला याकूब से झगड़ा भी हुआ है। याकूब तालिबान के संस्थापक मुल्ला उमर का बेटा है। इसकी आशंका पहले से थी। दरअसल, तालिबान में 10-12 गुट हैं। ऐसे में पहले से आसार थे कि ये सभी सरकार में ऊंचे ओहदे पाने के लिए दावा करेंगे। इस संभावना को देखते हुए ही भारत सहित कई देशों ने वेट एंड वॉच की पॉलिसी अपनाई हुई है। यह आशंका सच भी साबित होती दिख रही है। तालिबान के लिए स्क्रिप्ट लिखने वाले पाकिस्तान को इस बात का एहसास नहीं था कि यह भी हो सकता है। ऐसे में उसने अपने सबसे भरोसेमंद सिपहसालार को क्राइसिस-मैनेजमेंट के लिए काबुल रवाना कर दिया है। पाकिस्तान की खुफिया एजेंसी आईएसआई के प्रमुख फैज हामिद गुटों के बीच चौधरी की भूमिका निभाने अफगानिस्तान पहुंच गए हैं। माना जाता है कि वह इन गुटों में घमासान शांत कराने पहुंचे हैं। पाकिस्तान बिल्कुल नहीं चाहता कि अंत समय में उसके सब करे-धरे पर पानी फिर जाए। गुटों के बीच विवाद की जड़ में कई चीजें हैं। इनमें सैन्य आयोग का पद अहम है। याकूब इसकी कमान संभालना चाहता है। चंदे की जुटाई गई रकम को लेकर भी फसाद है। इसे तालिबान ने कबायली सरदारों से जुटाया है।

इसका इस्तेमाल अफगानिस्तान पर कब्जे के बाद होना था। हकानी नेटवर्क इस रकम में हिस्सा मांग रहा है। कुल मिलाकर कई पेच फंसे हैं। इन मतभेदों को देखते हुए ही शायद नई सरकार का ऐलान टला है। जबकि पहले ऐसा कहा गया था कि शुक्रवार तक नई सरकार की घोषणा कर दी जाएगी। यहां तक कुछ लोगों के नाम भी सामने आ गए थे। या है चीन का गेम: इन सबके बीच अपनी आदत के अनुसार ड्रैगन बिल्कुल चुप है। वह जानता है कि उसे इस खेल में ज्यादा उछल-कूद करने की जरूरत नहीं है। इसके लिए उसके कर्ज के एहसान तले दबा पड़ोसी ही काफी है। जिस तरह दुनिया ने तालिबान के लिए इमदाद और कर्ज के सारे रास्ते बंद कर दिए हैं तो ले-देकर उसे चीन के कांटे में फंसना ही है। तालिबान भी कह चुका है कि वह चीन को अपने सबसे महत्वपूर्ण पार्टनर के तौर पर देख रहा है। हालांकि, वह भूल रहा है कि चीन उससे इसकी कितनी बड़ी कीमत वसूलेगा। चीन की विस्तारवादी सोच से भला कौन परिचित नहीं है। तालिबान के चीन के पास लुढ़कने से वह बिना किसी अवरोध के अफगानिस्तान में अपने बेल्ट एंड रोड प्रोजेट को पूरा कर पाएगा। शॉर्ट टर्म में यह निश्चित ही एशिया में उसकी स्थिति को बेहद मजबूत करेगा। वह लगातार क्षेत्र में अपनी ताकत बढ़ाता जा रहा है।

श्रीलंका को पहले ही कर्ज का लॉलीपॉप देकर वह धीरे-धीरे वहां पांव जमा रहा है। भारत का या हो लक्ष्य: क्षेत्र में चीन का बढ़ता दबदबा भारत के लिए सबसे बड़ा खतरा है। पूरे रीजन में भारत ही एक ऐसा देश है जो उसे बराबर की टकर दे सकता है। भारत पहले ही कह चुका है कि वह अफगानिस्तान का हितैषी है। उसकी एक ही इच्छा है कि अफगानिस्तान की जमीन का इस्तेमाल उसके खिलाफ नहीं हो। बदली स्थितियों में भारत की आशंका बेवजह नहीं है। पाकिस्तान में आज भी सैकड़ों टेरर कैंप चल रहे हैं जहां से दुनियाभर में आतंकियों की सप्लाई होती है। भारत को सुरक्षा का सबसे ज्यादा खतरा कश्मीर घाटी में है। अफगानिस्तान से लौटते हुए अमेरिकी सैनिक हथियारों का बड़ा जखीरा पीछे छोड़ गए हैं। इनमें से थोड़ा भी स्मगलिंग के रास्ते आया तो भारत को बड़ा नुकसान हो सकता है। अफगानिस्तान में तालिबान की फतह के बाद लश्कर-ए-तैयबा, जैश- ए-मोहम्मद, अल-कायदा सहित तमाम आतंकी संगठनों का मनोबल बढ़ गया है। पाकिस्तान इन आतंकी समूहों का इस्तेमाल भारत के खिलाफ कर सकता है। चीन हमेशा चाहेगा कि भारत पूर्वी एशिया में खेल से बाहर रहे योंकि वही उसकी राह में अड़चन है। इसे देखते हुए वह पाकिस्तान के साथ मिलकर भी देश को अस्थिर करने की प्लानिंग कर सकता है।

ऐसे में भारत को हर एक चाल पर नजर रखनी होगी और एक-एक कदम फूंककर बढ़ाना होगा। उसने यह बात कही भी है। विदेश सचिव हर्षवर्धन श्रृंगला का यह कहना देशवासियों के लिए राहत की बात है कि अफगानिस्तान में पाकिस्तान की हर हरकत पर अमेरिका और भारत की पूरी नजर है। एयरबेस एटिव: वैसे भी पाकिस्तान इन दिनों बहुत उछल-कूद कर रहा है। उसकी मंशा शक के घेरे में है। अफगानिस्तान के आंतरिक मामलों में पाकिस्तान की खुफिया एजेंसियों को खुलकर दखलंदाजी करते देखा जा सकता है। इस बीच पाकिस्तान एयर फोर्स ने अफगानिस्तान के करीब बलूचिस्तान में ईस्टर्न फ्रंट पर एक एयरबेस को एटिव कर दिया है। पाकिस्तानी वायुसेना ने भारतीय बॉर्डर पर कोटली और रावलकोट नाम के दो अन्य सैटेलाइट एयर बेसेज को भी ऐटिवेट कर दिया है। दुश्मन देश के पास ऑपरेशन के लिए 12 ऐटिव और इतनी ही संख्या में सैटेलाइट हवाई अड्डे हैं। पाकिस्तान एयर फोर्स इन अड्डों को समय-समय पर ऐटिवेट करता रहता है।

इसके बाद पाकिस्तान ने टेस्टिंग की फ्रीवेंसी बढ़ाई है। हर हरकत पर नजर: भारतीय एजेंसियां पाकिस्तान की हर हरकत पर नजर रख रही हैं। उसके हर एक बेस को भारतीय रडारों ने कवर कर रखा है। भारतीय सुरक्षा प्रणाणी पूरी तरह चौकस है। वह रात-दिन नजर रख रही है। एजेंसियों की ईस्टर्न फ्रंट पर भी पाकिस्तान एयर फोर्स की गतिविधियों पर नजर है। यहां शम्सी एयर फील्ड को दोबारा ऐटिवेट किया गया है। युद्धग्रस्त अफगानिस्तान में तालिबान को सहायता देने के लिए ऐसा किया गया। पाकिस्तान ने अमेरिकी और अफगानी सेना के खिलाफ लगातार तालिबान की मदद की ताकि आतंकी समूह अफगानिस्तान पर कब्जा कर सके। इसके जरिये पाकिस्तान अफगानिस्तान पर अपना कंट्रोल रखना चाहता है। पाकिस्तान में शम्सी एयर फील्ड का इस्तेमाल पहले अफगानिस्तान में तैनात अमेरिकी फौजें करती रही हैं। इसके जरिये तालिबान और अल-कायदा के आतंकियों को निशाना बनाया जाता था। अमेरिकी हवाई हमले में पाकिस्तानी सेना के कुछ सैनिकों की मौत के बाद पाकिस्तान ने इसे खाली करा लिया था।

अमित शुक्ला
(लेखक पत्रकार हैं ये उनके निजी विचार हैं)

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