पवार का पावर पंच

0
322

आखिरकार महाराष्ट्र में सत्ता उलट-पुलट का चल रहा खेल मुख्यमंत्री देवेन्द्र फडणवीस और उपमुख्यमंत्री अजित पवार के इस्तीफे से तो खत्म हो गया लेकिन अब विकास अघाड़ी के साझा नेता चुने गए शिवसेना प्रमुख उद्धव ठाकरे के साथ ही नई सरकार में मलाईदार पोर्टफोलियो को लेकर एक नई जद्दोजहद शुरू हो गई है। हालांकि इस पूरे खेल के रेफरी एवं एनसीपी प्रमुख शरद पवार की महाराष्ट्र की राजनीति में चला आ रहा दबदबा एक बार फिर साबित हुआ है। जिस तरह अपने भतीजे अजित पवार को मनाने की हर संभव कोशिश की। जिसमें पारिवारिक रिश्तों की दुहाई भी शामिल है। उससे यह स्पष्ट हो गया कि राजनीति और परिवार दोनों में बिग बॉस वही हैं। भाजपा के रणनीतिकार को भी यह अब भली भांति समझ में आ गया होगा। यह सियासत ही तो है कि महाराष्ट्र में तीसरे नंबर की पार्टी बदली परिस्थितियों में प्रभाव की दृष्टि से नंबर एक हो गई है। भाजपा के हाथ से सत्ता छिटक गई है और उसकी सहयोगी रही शिवसेना के साथ मिलकर एनसीपी अब पूरी हनक के साथ सत्ता में लौट रही है।

देश का सबसे धनी राज्य के तौर पर पहचान रखने वाले महाराष्ट्र के मुम्बई को आर्थिक राजधानी कहा जाता है। देश की जीडीपी में इसकी सर्वाधिक भागीदारी होती है। यही वजह है कि कांग्रेस की चौथे नंबर की पार्टी होने और वैचारिक तौर पर विपरीत ध्रुव वाली पार्टी शिवसेना के साथ सत्ता में साझेदारी के लिए तैयार हो गई। बेशक शुरू आती कुछ हिचक थी। दक्षिण के कई राज्यों से नेताओं ने शिवसेना के साथ सत्ता बनाने से परहेज करने को कहा था और आगाह भी किया था कि सेकुलर इमेज पर सवाल उठेगा जिससे चुनावों में नुकसान होगा। पर सारी हिचक शायद इसलिए दूर हो गई कि बैकडोर से सही महाराष्ट्र की सत्ता में पार्टी को लौटने का एक अवसर मिल रहा है। इसीलिए साझा न्यूनतम कार्यक्रम आगे रखकर एक शुरूआत हो रही है। इसका नफा-नुकसान भविष्य की बात है लेकिन फिलहाल संतोष इसी में है कि भाजपा शासित राज्यों में से एक राज्य महाराष्ट्र कम हो गया है। कांग्रेस को शायद इस राजनीतिक घटक में भविष्य का खाका भी दिख रहा है। शिवसेना से दोस्ती करके इसकी शुरूआत हुई है।

वाकई भाग्य से छींका फूटा है और निश्चित रूप से इसके लिए विशेष रूप से भाजपा जिम्मेदार है, उससे एनसीपी नेता अजित पवार पर भरोसा कर आनन-फानन में सरकार बनाने का निर्णय लेने में चूक हो गई। अब तो पार्टी के भीतर भी इसे लेकर आवाजें उठने लगी हैं। स्वाभाविक है, इतीन हड़बड़ी क्यों दिखाई गई? आखिर किस बात का अंदेशा था। अब तो जिस तरह फडणवीस की अस्सी घंटे की भीतर महाराष्ट्र की सत्ता से विदाई हुई है। उससे पार्टी की छवि को आघात लगा है। यदि राष्ट्रपति शासन की अवधि तक पार्टी के रणनीतिकार रूक जाते और शिवसेना-एनसीपी और कांग्रेस के भीतर जिस तरह की खिचड़ी पक रही थी उसे पकने देते। जाहिर है, अन्तर्विरोध इतने हैं कि सत्ता संचालन में तमाम दिक्कतें आएंगी। उद्धव ठाकरे के साथ कमजोर पक्ष उनकी अनुभवहीनता है जबकि उनके सहयोगी दल अति अनुभवी हैं। कांग्रेस के तो दो पूर्व मुख्यमंत्री भी विकास अघाड़ी का हिस्सा बना रहे हैं। इसलिए इन परिस्थितियों में कुछ भी संभव है। पर बाद की परिस्थितियों का भाजपा लाभ उठा पाएगी, अभी कहना मुश्किल है।

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here