बात उन दिनों कि है जब नेता जी सुभाष चन्द्र बोस कॉलेज में पढ़ा करते थे। उनके घर के सामने एक बूढ़ी भिखारिन रहती थी। वे देखते थे कि वह हमेशा भीख मांगती थी और दर्द साफ दिखाई देता था। उसकी ऐसी अवस्था देखकर दिल दहल जाता था। वह सोचते भिकारिन से मेरी हालात कितनी अच्छी है। यह सोच कर वह अक्सर शर्म महसूस करते।
उन्हे भिखारिन को देखकर बहुत कष्ट होता। उसे दो टाइम का खाना नसीब नहीं होती। बरसात, तूफान, कड़ी धूप और ठंड से वह अपनी रक्षा नहीं कर पाती यदि हमारे समाज में एक भी व्यक्ति ऐसा है कि वह अपनी आवश्यकता को पूरा नहीं सकता तो मुझे सुखी जीवन जीने का क्या अधिकार है और उन्होंने ठान लिया कि केवल सोचने से कुछ नहीं होगा, कोई ठोस कदम उठाना ही होगा।
सुभाष के घर से उसके कॉलेज की दूरी 3 किलोमीटर थी। जो पैसे उन्हें खर्च के लिए मिलते थे उनमें उनका बस का किराया भी शामिल था। उस बुढ़िया की मदद हो सके, इसीलिए वह पैदल कॉलेज जाने लगे और किराए के बचे हुए पैसे वह बुढ़िया को देने लगे। सुभाष जब विद्यालय जाया करते थे तो मां उन्हें खाने के लिए भोजन दिया करती थी। विद्यालय के पास ही एक बूढ़ी महिला रहती थी।
वह इतनी असहाय थी कि अपने लिए भोजन तक नहीं बना सकती थी। प्रतिदिन सुभाष अपने भोजन में से आधा भोजन उस बुढ़िया को दिया करते थे। एक दिन सुभाष ने देखा कि वह बुढ़िया बहुत बीमार है। सुभाष ने 10 दिन तक उस बुढ़िया की मन से सेवा की और वह बुढ़िया ठीक हो गई।