तब्लीगी जमात है आधुनिकता की विरोधी

0
437

इसमें आश्चर्य नहीं होना चाहिए कि तलीगी जमात के लोग चिकित्साकर्मियों तथा पुलिस से अवैधानिक व असभ्य कृत्य कर रहे हैं। जिस विचार तथा जीवन दृष्टि पर इस अभियान का जन्म हुआ, वह आधुनिकता से असहमति और घुलनशीलता की विरोधी है। यह जमात मूल रूप से वहाबी विचारधारा पर आधारित है जो मजहबी शुद्धि में विश्वास रखती है। भारत में वहाबी विचारधारा 19 वीं शतादी के उत्तरार्ध में यूपी के रायबरेली के रहने वाले सैयद अहमद द्वारा प्रचाारित की गई थी। इस विचारधारा को संस्थागत रूप देने के लिए दारूल-उलूम की स्थापना की गई। साथ ही, धार्मिक विद्वानों का एक संगठन जमीयत उलेमा-ए-हिंद अस्तित्व में आया जो विशुद्ध इस्लाम का प्रचारक संगठन बन गया। इसका दुष्परिणाम यह निकला कि मजहब की परिधि सीमित कर दी गई, आस्थावान की परिभाषा में केवल सुन्नियों को ही रखा गया, सूफीवाद, शिया विचारधारा, तथा अन्य धार्मिक सुधार आंदोलनों को निश्चित विश्वास की सीमा से बाहर करने के प्रयास शुरू हो गए। यहां तक कि आधुनिक शिक्षा का भी प्रबल विरोध होने लगा। सर सैयद अहमद खान के अलीगढ़ शिक्षा आंदोलन का विरोध भी वहाबी विचारधारा को मानने वाले करने लगे, आज भी आधुनिक शिक्षा की विरोधी है।

कोरोना महामारी के इस संकटकाल में तलीगी जमात के नकारात्मक तथा विद्रोही व्यवहार के कारण देश भयानक संकट का शिकार होता जा रहा है, शंकाओं ने देश को भयभीत कर दिया है। ऊपर से जमातियों का कोरोना वायरस के अखिल भारत विस्तार के लिए तलीगी जमात को आरोपित किया जा रहा है। शासन मानता है कि उसने सूचनाओं को छिपाया और जन स्वास्थ्य के प्रावधानों की अवहेलना की। जो तलीगी जमात की विचारधारा और कार्यशैली को जानते और समझते हैं, उनके लिए जमातियों का वर्तमान व्यवहार नया नहीं है। केवल भारत में ही नहीं, पूरे उपमहाद्वीप में तलीगी जमात ने संकट पैदा कर दिया है। पाकिस्तान में प्रतिबंध के बाद भी लाहौर में एक विशाल धार्मिक सम्मेलन का आयोजन किया गया, जिसमें एक लाख से अधिक जमाती एकत्र हुए। इस सम्मेलन में चीन सहित अनेक देशों से लोग आए थे, जिससे पाकिस्तान के पंजाब प्रांत में कोरोना फैल गया। आज पाकिस्तान की स्थिति बहुत खराब होती जा रही है। वहां तो संक्रमण के परीक्षण भी पर्याप्त व्यवस्था नहीं है। इस कारण हजारों की पहचान भी नहीं हो पाई होगी। पाकिस्तान से मलेशिया और इंडोनेशिया वापस गए धर्म प्रचारकों ने वहां भी संक्रमण फैला दिया, इन दोनों देशों की सरकारें बहुत परेशान हैं।

असल में, तबलीगी जमात अपने अनुयायियों को 14 शतादी पूर्व की जीवन शैली अपनाने के लिए प्रेरित करती है, जिसमें विज्ञान तथा युगानुरूप परिवर्तित आवश्यकताओं का कोई स्थान नहीं होता। अत: संगठित रूप से यह प्रचारित किया गया कि आस्थावान लोगों को कोई भी महामारी प्रभावित नहीं कर सकती। इस प्रचार का दुष्परिणाम सामने है कि नए संक्रमित रोगियों में 97 प्रतिशत तलीगी जमात के लोग ही हैं। तलीगी इस्लाम का एक प्रचार अभियान है, यह धर्म से जुड़ा एक कर्म है जो शताब्दियों से होता आया है। लेकिन व्यवस्थित, योजनागत तथा संगठित रूप से यह अभियान के तौर पर यह सन 1927 में अस्तित्व में आया। पश्चिमी उत्तर प्रदेश के कस्बे कांधला के रहने वाले मौलवी मुहम्मद इलियास ने इस अभियान की आधारशिला रखी, यह आर्य समाज आंदोलन की प्रतिक्रिया में स्थापित किया गया था। उन्होंने अपना पहला अभियान पंजाब में आरंभ किया। व्यतिगत रूप से मेवात में धर्म प्रचार करते समय, उन्होंने अन्य लोगों को भी इस कार्य के लिए प्रशिक्षित किया और स्थान-स्थान पर भेजने की योजना बनाई। मुगल काल में हिंदुओं का जो वर्ग कथिततौर पर मुस्लिम हो गया था, वह व्यावहारिक मुसलमान नहीं बन पाया था। दूसरी ओर आर्य समाज ऐसे लोगों को वापस हिंदू धर्म में ला रहा था। उसने यह पृथक संगठन भी तैयार कर लिया था जो ऐसे वर्गों की खोज करता था जो मुस्लिम होने पर भी उसके नियमों को स्वीकार नहीं करते।

11 फरवरी 1923 को इस कार्य को विधिवत सफल बनाने के लिए स्वामी श्रद्धानंद द्वारा शुद्धि सभा की स्थापना की गई। इसका पहला लक्ष्य पंजाब की वंचित जातियां थीं। मेध, ओंड और रहलिए जैसी अनेक जातियों को पुनरू वैदिक धर्म में परिवर्तित कर दिया गया। सन 1922 में, आगरा और मथुरा जनपदों में रहने वाले मुस्लिम मलकाना राजपूतों का एक प्रतिनिधि मंडल स्वामी श्रद्धानंद ने मिलता था और आग्रह किया था कि उनको हिंदू धर्म में वापस कर लिया जाए। तीस हजार राजपूतों का शुद्धिकरण मार्च 1923 में किया गया। इस घटना से देश में सांप्रदायिक तनाव की स्थिति पैदा हो गई थी। 18 मार्च 1923 को बंबई में जमीयत उलेमा-ए-हिंद का एक विशाल सम्मेलन आयोजित किया गया। इस सम्मेलन में शुद्धिकरण के अभियान की आलोचना की गई तथा तलीगी को तेज करने पर विचार किया गया। कांग्रेस के अनेक नेताओं का समर्थन भी इस सम्मेलन के प्रस्तावों को मिला। चक्रवर्ती राजागोपालाचारी तथा मोतीलाल नेहरू जैसे नेता आर्य समाज के विरोध में जमात के साथ खड़े हो गए। दीनी आलिमों में यह मंथन तेज होता चला गया कि शुद्धिकरण अभियान को कैसे रोका जाए? उधर कांग्रेस का भी समर्थन ऐसे आलिमों को मिल रहा था। हिंदू समाज के जड़वादी धार्मिक लोग आर्यसमाज के शुद्धि अभियान का विरोध कर रहे थे।

उनका तर्क था कि जो एक बार धर्मविहीन हो गया, उसका पुन: मूल धर्म में लाने की कोई व्यवस्था नहीं है। जब 23 फरवरी 1928 को गोवा के कैथोलिक गौड़ समुदाय को आर्य समाज ने वैदिक धर्म में संस्कारित किया तो गांधीजी पहले से अधिक मुखर हो गए और उन्होंने यंग इंडिया में आर्य समाज की जमकर आलोचना की और शुद्धि अभियान को मानवता के विरोध में बताया। ये सारी घटनाएं तबलीग जमात को प्रोत्साहित कर रही थी। कांग्रेस का समर्थन जमीयत उलेमा-ए-हिंद के नेताओं से बहुत गहरा था। एक समय तो यह मान लिया गया था कि जमात कांग्रेस का ही प्रकोष्ठ है। वहाबी विचारधारा धार्मिक तरीके, वेशभूषा, वैयतिक व्यवहार, लौकिक संबंध तथा राजनीतिक व्यवस्था आदि पर आधारित है। इस विचारधारा को आम आदमी तक पहुंचाने का कार्य तलीगी जमात का है और विचार के स्तर पर कार्य करना दारूल उलूमए देवबंद का है।

पृथक-पृथक अस्तित्व रखते हुए भी ये संस्थाएं तथा समूह एक-दूसरे से समन्वित हैं। वर्तमान में तलीगी जमात ने वैश्विक आकार ग्रहण कर लिया है। इसके वर्तमान अमीर मौहम्मद साद के अधिनायकवादी व्यवहार के कारण यह जमात अनेक भागों में विभाजित हो गई है। इससे विभाजित हुए एक भाग का मुख्यालय भोपाल में है तो एक अन्य भाग का कार्यालय पुरानी दिल्ली में है। लेकिन निजामुद्दीन का मरकज लगभग नौ दशक पुराना है, इसलिए इसकी मान्यता सर्वाधिक है। सबसे विचित्र बात यह है कि यह संगठन न तो पंजीकृत है और न ही मरकज में बाहरी लोगों को आवासीय सुविधा देने के लिए शासकीय प्रावधानों के तहत अनुमन्य है। प्रत्येक स्तर पर कानून की अवहेलना की गई। देखना है कि या संबंधित समाज के मध्य ही इस संस्था की कार्य शैली तथा विचार में परिवर्तन की पहल होगी?

अशोक त्यागी
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं, ये उनके निजी विचार हैं।)

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here