डंके व डंके के फंडे

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कुछ दिनों पहले दिल्ली की चिड़ियाघर के पिंजरे नंबर 19 के एक तोते हिरामन के बारे में छपा था कि जब लोग उससे हाल पूछते हैं तो वह कहता है- अच्छा हूं। हमने भी जब तोताराम से क हा- अब शिकायत मत करना कि ‘अच्छे दिन’ का क्या हुआ? एक बार अखबार और मीडिया और भाजपा के मंत्रियों का विश्वास न भी करें लेकिन अब तो पशु-पक्षी तक मोदी जी का समर्थन कर रहे हैं। बोला- यह हिरामन ही क्या, सब चतुर लोग दाख- छुहारे के लालच में गुण गा रहे हैं। सीबीआई तो बहुत पहले से ही ‘तोते’ के रू प में प्रसिद्ध है। हमने कहा- चल, मत मान पशु-पक्षियों की; जे.पी.नड्डा जी की बात तो माननी ही पड़ेगी।

महाराष्ट्र बीजेपी की विशेष कार्यसमिति बैठक को संबोधित करते हुए नड्डा ने कहा, ‘हमने कहा था अच्छे दिन आने वाले हैं, देश बदल रहा है। आज मैं डंके की चोट पर कहता हूं कि अच्छे दिन आ गए हैं और देश बदल गया है। इसको हमें समझाने की जरूरत नहीं।’ बोला- नड्डा जी भी कहते हैं, और लगता है तू भी आश्वस्त है तो चल, एक ट्राई और मार लेते हैं। हमने कहा- अब और क्या ट्राई मारना बाकी रहा क्या? बोला- भाई साहब, अपना हाल तो सूरदास जी वाला है। कोई खीर के बारे में लाख उदाहरण देकर बताए लेकिन हमें तो तभी समझ में आएगा जब खीर खा लेंगे। हमने पूछा- खीर से तेरा क्या मतलब है।

राजधानियों में खीर नहीं, खिचड़ी पकती है। अब यह पता नहीं कि उस खिचड़ी का मतलब काने वाली खिचड़ी होता है या षड्यंत्र वाली खिचड़ी या पिर कभी न पकने वाली बीरबल की खिचड़ी या फिर राजधानियों में बजट बनाने के दिनों में अधिकारी वित्त मंत्री के साथ जनता के टेक्स के पैसे से देशी घी का हलवा खाते हैं। वैसे दिल्ली चलकर क्या ट्राई मारेगा? बोला – यही कि इन अच्छे दिनों में अपने पे कमीशन के 31 महीने के एरियर का भी कोई प्रावधान है या नही? कहीं यह भी कोई जुमला तो नहीं हका-हमारे हिसाब से तो चुप रहना ही ठीक है, क्योंकि जो डंके की चोट पर कह सकते हैं, वे डंडे की चोट पर भी मनवा सकते हैं।

रमेश जोशी
लेखक वरिष्ठ व्यंगकार हैं, ये उनके निजी विचार हैं…

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