ट्रंप के दौरे से क्या हासिल होगा ?

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पिछले साल प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अमेरिका का दौरा किया और दुनिया की ऊर्जा राजधानी कहे जाने वाले ह्यूस्टन में ‘हाउडी मोदी कार्यक्रम हुआ। इसकी जैसी हाइप बनी थी और जितना प्रचार हुआ था उससे ऐसा लग रहा था कि दोनों देशों के बीच अब किसी तरह की दूरी नहीं रहने वाली है और दोनों देश दो जिस्म एक जान होने वाले हैं। पर हकीकत यह है कि दौरे के बाद भी देश के वाणिज्य मंत्री पीयूष गोयल अमेरिका में रूके रहे और दोनों देशों के बीच व्यापार संधि नहीं हो सकी। सरकार की ओर से कहा जाता रहा कि जल्दी ही यह संधि हो जाएगी पर ऐसा नहीं हुआ। अब अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप भारत के दौरे पर आ रहे हैं और उनकी यात्रा की भी वैसी ही हाइप बनाई जा रही है, जैसी मोदी के अमेरिका दौरे की बनी थी।

ट्रंप के समान में अहमदाबाद में बने दुनिया के सबसे बड़े मोटेरा स्टेडियम में ‘नमस्ते ट्रंप कार्यक्रम का आयोजन किया जा रहा है। ट्रंप को रास्ते में ‘गुजरात मॉडल न दिख जाए इसलिए झुग्गियों के सामने दीवार खड़ी की जा रही है और उन झुग्गियों में रहने वालों को कहीं और चले जाने के लिए कहा गया है। अहमदाबाद में उनके ढाई घंटे के दौरे पर 120 करोड़ रुपए खर्च किए जा रहे हैं। पर साथ ही यह भी कहा जा रहा है कि इस बार भी भारत और अमेरिका के बीच व्यापार संधि नहीं होने जा रही है। हालांकि ट्रंप के साथ अमेरिका के वाणिज्य मंत्री भारत के दौरे पर आ रहे हैं पर संधि की कुछ शर्तों को लेकर गतिरोध है, जिससे संधि होने की संभावना नहीं है।
असल में ट्रंप एक खालिस बिजनेसमैन की तरह काम कर रहे हैं। उनके अपने देश के कारोबारियों की रक्षा करनी है और अपने लोगों की नौकरी बचानी है। वे पहले दिन से इसी के लिए काम कर रहे हैं। तभी उन्होंने भारत को ऐसे विकासशील देशों की सूची से बाहर किया है, जिनको अमेरिका राहत देता है। असल में अमेरिका में विकासशील देशों की एक सूची है, जिसमें ऐसे देशों को रखा जाता है, जिनको अमेरिका अपने देश के कारोबार के लिए खतरा नहीं मानता है। ऐसे देशों के कारोबार में शुल्क से कई किस्म की राहत दी जाती है।

ट्रंप ने भारत को इस सूची से बाहर कर दिया है। यानी अमेरिका अब भारत को अपने घरेलू कारोबार के लिए चुनौता मान रहा है। इससे कुछ देशभक्त लोग खुश भी हो सकते हैं कि भारत अब अमेरिका के लिए चुनौती या खतरा बन गया है पर हकीकत यह है कि भारत की वस्तुओं पर ज्यादा शुल्क लगाने और अपनी वस्तुएं रियायती शुल्क पर भारत में बेचने के मकसद से ट्रंप ने यह काम किया है। यहीं काम ट्रंप ने चीन के साथ भी किया है। तभी अमेरिका ने व्यापार संधि में डेयरी उत्पादों को लेकर पेंच डाला है। ध्यान रहे बिना आयात शुल्क के विदेश से डेयरी उत्पाद भारत में आने दिया गया तो कृषि और पशुपालन पर निर्भर भारत के करोड़ों दुग्ध उत्पादकों का जीवन मुश्किल होगा। इसी वजह से भारत ने एशिया प्रशांत के देशों के साथ समग्र और व्यापक व्यापार संधि पर दस्तखत नहीं किए। क्योंकि ऐसा करने पर ऑस्ट्रेलिया और न्यूजीलैंड के सस्ते डेयरी प्रोडक्ट भारत में भर जाते। अमेरिका भी यहीं चाहता है कि उसके डेयरी उत्पाद भारत में कम शुल्क पर आने दिया जाए। पर भारत ऐसा नहीं कर सकता है। यह कारोबार के लिहाज से भी खराब फैसला है और राजनीतिक रूप से तो आत्महत्या करने वाला फैसला साबित होगा। अमेरिका के साथ भले व्यापार संधि नहीं हो पर फिर भी ट्रंप भारत से खाली हाथ नहीं लौटेंगे। वे भारत के साथ कुछ हथियार, सेना के लिए हेलीकॉप्टर और कुछ विमानों आदि का करार हाथ में लेकर लौटेंगे। उनकी यात्रा के दौरान दोनों देशों के बीच कई हथियार सौदों पर दस्तखत होना है। भारत अमेरिका से 24 मल्टीरोल हेलीकॉप्टर खरीद का सौदा कर सकता है। यह करीब ढाई अरब डॉलर यानी करीब 17 हजार करोड़ रुपए का सौदा होगा। इसके अलावा लंबी दूरी के छह सर्विलेंस एयरक्राट का सौदा भी हो सकता है और कुछ अन्य अपाचे हेलीकॉप्टर की खरीद का सौदा भी हो सकता है। जाहिर है अमेरिका एक कारोबारी देश है और उसके कारोबारी राष्ट्रपति का मकसद अपनी कंपनियों के लिए करार हासिल करना है।

(लेखक अजित कुमार पत्रकार हैं ये उनके निजी विचार हैं)

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