ट्रंप का तरीका सही नहीं

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कुछ राष्ट्रपति चुनावों से पहले मुसीबत में फंसते हैं तो विदेश में कहीं युद्ध छिड़वाकर ध्यान भटकाते हैं। ट्रप शायद घर में ही युद्ध शुरू कर ऐसा करना चाहते हैं। सचेत रहें, उनकी इच्छा शायद पूरी हो जाए। ट्रंप की टीम द्वारा कोरोना को संभालने के बारे में इतिहासकार बस इतना ही लिखेंगे कि ‘उन्होंने ऐसे बात की जैसे चीन की तरह लॉकडाउन कर देंगे। ऐसे काम किया जैसा स्वीडन की तरह हर्ड इयुनिटी पा लेंगे। लेकिन तैयारी दोनों की नहीं की और दावा दोनों से बेहतर होने का किया। अंत में अमेरिका अनियंत्रित वायरस और भयंकर बेरोजगारी का शिकार हो गया। बिजनेस बंद हो गए, स्कूल-यूनिवर्सिटी लकवाग्रस्त हो गए। ट्रंप के चुनावी आंकड़े गिर गए। जो बिडेन की राष्ट्ररीय सर्वे में 15 अंकों की बढ़त के साथ शुरुआत हुई। इसलिए अपने अभियान को बचाने को आतुर ट्रंप को मध्य-पूर्व के तानाशाह की आधिकारिक हैंडबुक में वह मिल गया जिसे वे तलाश रहे थे। ‘क्या करें जब आपके लोग आप ही के खिलाफ हो जाएं?’ शीर्षक का अध्याय। जिसका जवाब था उन्हें एक-दूसरे के खिलाफ खड़ा कर दें और फिर खुद को कानून-व्यवस्था के एकमात्र स्रोत की तरह पेश करें।’ खुशकिस्मती से अमेरिका सीरिया नहीं है, फिर भी ट्रप वही तरीका अपना रहे हैं जो बशर अल-असद ने 2011 में अपनाया था, जब सीरिया में लोकतांत्रिक सुधारों की मांग के लिए शांतिपूर्ण प्रदर्शन शुरू हुए थे।

अल-असद सत्ता साझा करना नहीं चाहते थे इसलिए उन्होंने सुनिश्चित किया कि प्रदर्शन शांतिपूर्ण न रहें। उन्होंने गोलियां चलवाईं, गिरतारियां करवाईं और अंत में यह अल-असद की नुसैरी शिया सेना और विभिन्न सुन्नी जिहादी समूहों के बीच गृह युद्ध में बदल गया। अल-असद को वह मिल गया जो वे चाहते थे। इस्लामी उग्रवादियों के बीच युद्ध, जिसमें वे रूस और ईरान के समर्थन के साथ कानून व्यवस्था देने वाले राष्ट्रपति बन सकें। अंत में उनका देश बर्बाद हो गया, हजारों सीरियाई मारे गए। लेकिन अस-असद सत्ता में हैं। मैं हिंसा का सहारा लेने वाले किसी भी प्रदर्शनकारी के खिलाफ हूं, क्योंकि इससे परिवारों, व्यापारों को नुकसान होगा, जिनमें से कई अल्पसंयकों के हैं। लेकिन जब मैंने सोमवार को ट्रप को कहते सुना कि वे उन अमेरिकी शहरों में फेडरल सेनाएं भेजेंगे, जहां के स्थानीय मेयरों ने उन्हें निमंत्रित नहीं किया है, तो मेरे दिमाग में पहला शब्द आया, ‘सीरिया।’ ट्रप ने कहा, ‘न्यूयॉर्क, शिकागो, फिलाडेल्फिया, बाल्टिमोर और ऑकलैंड को अतिवादी वामपंथी चला रहे हैं। अगर बिडेन आ गए तो पूरा देश यही चलाएंगे। हम देश को नर्क में नहीं जाने देंगे।’ ऐसे खतरे के सामने वामपंथ को होशियार होना होगा। ‘पुलिस की फंडिंग रोकने’ की मांग बंद करें। पुलिस का पैसा रोकना, पुलिस अधिकारियों को सूअर कहना, पूरे मोहगों को घेर लेना, ये सब गलत संदेश देते हैं।

ट्रप इनका फायदा उठा सकते हैं। वाशिंगटन पोस्ट-एबीसी न्यूज पोल में पाया गया है कि ‘ज्यादातर अमेरिकी ‘ब्लैक लाइव्स मैटर’ आंदोलन का समर्थन करते हैं और 69 प्रतिशत कहते हैं कि अश्वेतों व अन्य अल्पसंयकों को न्याय व्यवस्था में श्वेतों के समान नहीं माना जाता। लेकिन जनता पुलिस फंडिंग को सामाजिक कार्यों में लगाने की मांग या गुलाम बनाने वाले जनरलों या राष्ट्रपतियों की मूर्तियां हटाने के खिलाफ है।’ सड़क पर हिंसा और पुलिस फंडिंग रोकने की मांग का असर ट्रंप के टीवी विज्ञापनों में भी दिख रहा है। एक विज्ञापन ऐसा है फोन की घंटी बजती है और रिकॉर्डिंग शुरू होती है, ‘आपने 911 पुलिस इमरजेंसी पर फोन किया है। पुलिस फंडिंग रुकने के कारण यहां आपका फोन उठाने वाला कोई नहीं है। दुष्कर्म की रिपोर्ट के लिए 1, मर्डर के लिए 2 और चोरी के लिए 3 दबाएं। अन्य अपराधों के लिए नाम-पता बताएं। हम आपसे संपर्क करेंगे। आपका इंतजार समय 5 दिन है।’ आज प्रदर्शनकारियों को ट्रंप से जीतने के लिए एक अन्य विदेशी नेता, एक उदारवादी, एकरम इमामोग्लू का तरीका अपनाना चाहिए, जो अनुदार एर्डोगन की तमाम गंदी चालों के बावजूद 2019 में इस्तांबुल के मेयर का चुनाव जीते।

इमामोग्लू के अभियान की रणनीति को ‘अतिवादी प्रेम’ कहा गया। इसका मतलब था एर्डोगन के ज्यादा पारंपरिक और धार्मिक समर्थकों से मिलना, उनकी बातें सुनना, उन्हें समान दर्शाना और यह स्पष्ट करना कि वे ‘दुश्मन’ नहीं थे, बल्कि प्रगति के लिए जरूरी एकता और आपसी समान के दुश्मन एर्डोगन उनके असली दुश्मन थे। इमामोग्लू की रणनीति पर द जर्नल ऑफ डेमोक्रेसी में प्रकाशित लेख के मुताबिक उन्होंने एर्डोगन पर जीत हासिल करने के लिए ‘समावेशन के संदेश, एर्डोगन के समर्थकों के समान और रोजी-रोटी के मुद्दे पर ध्यान केंद्रित किया जिससे विरोधी राजनीतिक गुट के मतदाता भी एक हो सके।’ इमामोग्लू 23 जून को अब तक के सबसे बड़े जनादेश के साथ फिर इस्तांबुल के मेयर बने। अतिवादी प्रेम। वाह। मैं मानता हूं कि यह अमेरिका में भी हो सकता है। यह ट्रंप के राजनीतिक बंटवारे का सटीक जवाब होगा और ऐसी रणनीति होगी जिसकी वे कभी नकल नहीं करेंगे।

थॉमस एल. फ्रीडमैन
(लेखक तीन बार के पुलित्जर अवार्ड विजेता हैं ये उनके निजी विचार हैं)

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