जब भगवान शिव ने परमपिता ब्रह्मा को दिया श्राप

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इस विश्व की उत्पत्ति परमपिता ब्रह्मा ने की है, जितने भी जीव जंतु हैं वे सब ब्रह्मा से उत्पन्न हुए हैं। ब्रह्मा बुद्धि के देवता हैं और चारों वेद ब्रह्मा के सिर से उत्पन्न हुए हैं। ब्रह्मा, विष्णु और शिव इस सृष्टि का आधार हैं। भगवान विष्णु मानवजाति के पालनहार के रूप में, ब्रह्मा सृष्टि की रचना के रूप में और भगवान शिव पाप का नाश करने के लिए जाने जाते हैं। लेकिन आपको पता है परमपिता ब्रह्मा से कुछ ऐसा हो गया था जिसकी वजह से भगवान शिव को गुस्सा आ गया था और उन्होंने ब्रह्मा को श्राप दे दिया था। आपने मंदिरों में देखा होगा कि सिर्फ विष्णु और शिव की ही पूजा होती है, लेकिन ब्रह्मा की नहीं की जाती।

सोचा कभी आपने कि आखिर ब्रह्मा की पूजा क्यों नहीं होती है,जबकि ब्रह्मा ने ही दुनिया बनाई है। एक बार ब्रह्माजी व विष्णु जी में विवाद छिड़ गया कि दोनों में श्रेष्ठ कौन है। ब्रह्माजी सृष्टि के रचयिता होने के कारण श्रेष्ठ होने का दावा कर रहे थे और भगवान विष्णु पूरी सृष्टि के पालनकर्ता के रूप में स्वयं को श्रेष्ठ कह रहे थे। तभी वहां एक विराट लिंग प्रकट हुआ। दोनों देवताओं ने सहमति से यह निश्चय किया गया कि जो इस लिंग के छोर का पहले पता लगाएगा उसे ही श्रेष्ठ माना जाएगा।

अत: दोनों विपरीत दिशा में शिवलिंग की छोर ढूढंने निकले। छोर न मिलने के कारण विष्णुजी लौट आए और ना ही ब्रह्मा जी सफल नहीं हुए। परंतु उन्होंने आकर विष्णुजी से झूठ कहा कि वे छोर तक पहुँच गए थे। उन्होंने केतकी के फूल को इस बात का साक्षी बताया। ब्रह्मा जी के असत्य कहने पर स्वयं शिव वहाँ प्रकट हुए और उन्होंने ब्रह्माजी की एक सिर काट दिया और केतकी के फूल को श्राप दिया कि पूजा में कभी भी केतकी के फूलों का इस्तेमाल नहीं होगा और न ही ब्रह्माजी की पूजा की जाएगी। इसलिए ब्रह्माजी पूजा नहीं होती है।

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