छोटे किसान बन गए हैं मजदूर

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अगर ऐसा हुआ तो मनरेगा लागू होने के दस साल बाद इस लोकसभा चुनाव में किसान और कृषि बड़ा मुद्दा न बनते, जैसा कि अब दिखाई दे रहा है। अलबत्ता मनरेगा ने छोटे किसानों को मजदूर बना दिया है, मनरेगा लागू होने से पहले 12 करोड़ 70 लाख किसान थे, जो घट कर अब 12 किरोड़ से भी कम रह गए हैं। किसानों की दुर्दशा और बेरोजगारी 2019 के लोकसभा चुनाव के दो बड़े मुद्दे हैं।

ऐसे आंकड़े मौजूद नहीं है कि मनरेगा से किसानों के जीवन स्तर में कोई सुधार हुआ। अगर हुआ होता तो मनरेगा लागू होने के दस साल बाद लोकसभा चुनाव में किसान और कृषि बड़ा मुद्दा न बनते, जैसे कि अब दिखाई दे रहा है। अलबत्ता मनरेगा ने छोटे किसानों को मजदूर बना दिया है, मनरेगा लागू होने से पहले 12 करोड़ 70 लाख किसान थे, जो घट कर अब 12 करोड़ से भी कम रह गए है। किसानों की दुर्दशा और बेरोजगारी 2019 के लोकसभा चुनाव से पहले मनरेगा लागू करने वाली कांग्रेस ने अब 2019 के चुनाव में गरीब परिवारों के लिए न्यूनतम आमदनी योजना का वायदा किया है।

2016-17 के आर्थिक सर्वेक्षण में मोदी सरकार के आर्थिक सलाहाकार अरविन्द सुब्रहमन्यम ने न्यूनतम आमदनी की थ्योरी पर चर्चा करते हुए कहा था कि ऐसा करने के लिए सरकार को सब्सिडी वाली सभी योजनाएं बंद करनी होगी। यह आदर्श योजना हो सकती है, लेकिन उस के लिए पहले पूरी तैयारी करनी पड़ेगी ताकि सीधे बैंक ट्रांसफर का लाभ गलत हाथों में न जाए। आधी अधूरी योजना भी नुकसानदायक होगी, जैसा कि राहुल गांधी के आर्थिक सलाहकार पूर्व वित्तमंत्री पी. चिदम्बरम ने कहा है कि कांग्रेस आईसीडीएस जैसी योजनाओं को बंद नहीं करेगी। आठ अप्रैल को जारी होने वाली कांग्रसे के घोषणा पत्र में भी न्यूनतम आमदनी योजना का पूरा प्रारुप पेश नहीं करेगी।

आठ अप्रैल को जारी होने वाली कांग्रेस के घोषणा पत्र में भी न्यूनतम आमदनी योजना का पूरा प्रारुप पेश नहीं किया जाएगा क्योंकि अगर इसे पेश किया गया, तो वह चुनावों में घोटे का सौदा हो सकता है। कांग्रेस का लक्ष्य कम आमदनी वाले देश के 115 जिलों की उन 123 सीटों को प्रभावित करना है, जिनमें से आधी सीटें 2014 में भाजपा के खाते में गई थी। इन 15 जिलों में कम आमदनी वाले ज्यातर परिवार या तो दलित है या मुस्लिम और यही दो समुदाय हैं, जिन्हें लक्ष्य बना कर कांग्रेस ने न्यूनतम आमदनी का फार्मूला पेश किया है।

स्वाभाविक है कि जब योजना के विभिन्न पहलुओं की गहराई में जाएंगे तो यह बात सामने आएगी ही कि विभिन्न समाज कल्याण योजनाएं और न्यूनतम आमदनी की योजनाएं एक साथ नहीं चल सकती। पी. चिदम्बरम ने इस सवाल के खतरे को भांपते हुए आईसीडीएस जैसी योजना का जिक्र किया कि उसे बंद नहीं किया जाएगा। यानी न्यूनतम आमदनी योजना लागू होगी, तो बाकी योजनाएं बंद होगी, यह बयान उसी ओर इशार करती है जिसका जिक्र अरविन्द सुब्रह्मन्यम ने आर्थिक सर्वेक्षण रिर्पोट में किया था। मोदी सरकार आने के बाद अधार कार्ड को विभिन्न योजनाओं के साथ जोड़ने से सब्सिडी में हो रही चोरी रोकी गई है। मनरेगा के फर्जी कार्ड और करोड़ों की तदाद में फर्जी राशन कार्ड रद्द हुए, जिनसे सरकार को हर साल हजारों करोड़ का नुकसान हो रहा था। कांग्रेस अधार कार्ड को लाजिमी करने और नागरिक पहचान पत्र बनाए जाने के न सिर्फ खिलाफ है, बल्कि कांग्रेस के वकीलों ने अधार को बैंक खातों के साथ जोड़ने तक का विरोध किया। कांग्रेस ने डिजिटल ट्रांसफर का भी विरोध किया था।

ऐसे में कैसे कल्पना की जा सकती है कि न्यूनतम आमदनी योजना का लाभ गलत हाथों में नहीं जाएगा। जब तक सब्सिडी को सभी योजनाओं को आधार कार्ड में जोड़ा नहीं जाएगा, तब तक किसी भी योजना की सफलता की उम्मीद नहीं की जासकती। न्यूनतम आमदनी योजना तभी कामयाब हो सकती है जब हर मजदूर को उस की मजदूरी और हर कर्मचारी को उस का वेतन बैंक खाते में मिले। किसानों को उस की उपज के पैसे भी बैंक खाते में मिलें। प्रत्येक परिवार की न्यूनतम आमदनी 12000 रुपये मासिक करने के लिए देश भर में न्यूनतम मजदूरी भी 450 रुपए प्रतिदिन तय की जानी चाहिए। बाकी बचते है दिव्यांग, बेरोजगार और बुजुर्ग, जिन के लिए सरकार को न्यूनतम 12000 रुपये आमदनी की व्यवस्था करनी चाहिए। रोजगार के नए अवसर पैदा किए जाने चाहिए ताकि बेरोजगार सरकारी अनुदान पर निर्भर रह कर कामचोर न बनें।

अजय सेतिया
लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं, ये उनके निजी विचार हैं

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