चीन ने वैसे तो पूरी दुनिया को कोरोना वायरस की समस्या में उलझाया है पर भारत को उसने इसके साथ-साथ एक दूसरी मुश्किल में भी डाला है। उसने कोरोना वायरस के बढ़ते संकट के बीच सीमा पर नया विवाद खड़ा किया है। पहली बार ऐसा हो रहा है कि उसने दशकों से गैर-विवादित रहे इलाकों पर अपना दावा किया है, जिससे उसकी बदनीयती स्पष्ट होती है। दूसरी ओर भारत सरकार को समझ में नहीं आ रहा है कि वह इस समस्या से कैसे निपटे। इसका कारण यह है कि एक तरफ चीन लगातार बातचीत से समस्या सुलझाने यानी डिसएंगेज्मेंट और डिइस्कालेशन की बात कर रहा है तो दूसरी ओर वास्तविक नियंत्रण रेखा पर ऐसे इलाकों पर दावा कर रहा है, जो कभी भी उसका हिस्सा नहीं रहे हैं। वह भारत को बातचीत में उलझाए रख कर सीमा पर अपनी मौजूदगी भी बढ़ा रहा है और अपने को मजबूत भी कर रहा है। इसका मतलब है कि वह लंबे समय की तैयारी के साथ आया है।
ध्यान रहे भारत मई के महीने से ही चीन के साथ सैन्य स्तर की वार्ता कर रहा है और साथ ही कूटनीतिक स्तर पर भी वार्ता कर रहा है। पर इसका कोई नतीजा नहीं निकल रहा है। इन तमाम वार्ताओं के बावजूद लद्दाख में चीन पीछे नहीं हट रहा है। उसने जिन नए इलाकों में घुसपैठ की है वहां उसने अपनी ताकत और बढ़ाई है। देश के सामरिक जानकार बता रहे हैं कि लद्दाख के हॉट स्प्रिंग, गोगरा, कोंग्का ला और पैंगोंग झील के सेक्टर में चीन ने घुसपैठ की है। भारत के सैन्य कमांडरों के बीच 12-12 घंटे की वार्ता होती है और इन इलाकों से पीछे हटने की बात होती पर चीन एक इंच पीछे हटने को राजी नहीं है। पिछले शनिवार को यानी आठ अगस्त को सैन्य कमांडरों के बीच देपसांग में पीपुल्स लिबरेशन आर्मी, पीएलए के घुसपैठ पर चर्चा हुई और चीन को पीछे हटने के लिए कहा गया पर वह राजी नहीं हुआ।
अपनी दोहरी नीति के तहत बीजिंग ने हाल में एक बयान जारी किया है, जिसमें उसने कहा है- दोनों पक्षों को सीमा के इलाके में शांति और सुरक्षा कायम रखने के लिए साझा तौर पर काम करना चाहिए और दोपक्षीय संबंधों के विकास में निरतंरता बनाए रखनी चाहिए। भारत के लिए उसकी इस बात का कोई मतलब नहीं होना चाहिए, जब तक उसकी सेना पीछे नहीं हटती है और पूरे लद्दाख के इलाके में वास्तविक नियंत्रण रेखा पर अप्रैल के आखिरी हफ्ते वाली स्थिति नहीं बहाल हो जाती है।
पर मुश्किल यह है कि अगर चीन इसके लिए तैयार नहीं होता है तो भारत क्या करेगा? भारत के पास चीन को पीछे हटाने का क्या रास्ता है? भारत के पास ले-देकर एक ही रास्ता बचता है और वह सीमित युद्ध शुरू करने का रास्ता है। भारत ने लद्दाख के सेक्टर में और अपनी सैन्य मौजूदगी बढ़ाई है। ज्यादा सैनिक तैनात किए गए हैं, टैंक रेजिमेंट भी तैनात है और वायु सेना ने भी पूरी तैयारी कर रही है। ज्यादातर सामरिक विशेषज्ञ मान रहे हैं कि पहाड़ पर युद्ध हुआ तो भारत बेहतर स्थिति में रहेगा। इसलिए भारत को ताकत के दम पर चीन को पीछे धकेलने का प्रयास करना चाहिए। अगर चीन बातचीत के जरिए पीछे हटने को तैयार नहीं होता है और भारत की जमीन पर अपना दावा करता रहता है तो ताकत के दम पर उसे पीछे हटाना होगा।
भारत मौजूदा स्थिति को यथास्थिति मान कर चीन को नहीं छोड़ सकता है। यह एक तरह से चीन का कब्जा स्वीकार करना होगा। अगर भारत ने ऐसा किया तो चीन का हौसला और बढ़ेगा। वह भारत की थाह लेने के लिए ही यह काम कर रहा है। तभी उसने लद्दाख से लेकर अरुणाचल प्रदेश तक नया मोर्चा खोला है। भूटान के पूर्वी हिस्से पर दावा करना बीजिंग की इसी रणनीति का इशारा है कि वह अगली बार में अरुणाचल पर कब्जा करने पहुंचेगा। इसलिए भारत को हर हाल में लद्दाख में चीन को रोकना होगा। जिस तरह चीन की सेना बिहार रेजिमेंट के साथ हिंसक झड़प के बाद गलवान घाटी से पीछे हटी है वैसे ही उसे देपसांग, पैंगोंग झील, गोगरा, हॉट स्प्रिंग से लेकर पूर्वी सीमा पर डोकलाम तक से पीछे हटाना होगा।
यह दक्षिण एशिया में भारत की कूटनीतिक, सामरिक और आर्थिक तीनों तरह से वर्चस्व के लिए जरूरी है कि चीन को सबक सिखाया जाए। चीन इस अहंकार में है कि उसकी जीडीपी 13 खरब डॉलर की है और भारत तीन खरब डॉलर पर ही है और इसलिए भारत अपनी जीडीपी की चिंता करता रहेगा और युद्ध के बारे में नहीं सोचेगा। यह सही है कि भारत के मुकाबले चीन की आर्थिक ताकत चार गुने से ज्यादा है पर उससे सैन्य ताकत का अंदाजा नहीं लगाया जा सकता है। पर चीन को लग रहा है कि भारत उससे लड़ने की स्थिति में नहीं है। तभी उसने पूर्वी और उत्तरी सीमा पर भारत को उलझा कर कूटनीतिक रूप से भारत की घेराबंदी कर रहा है।
ध्यान रहे पाकिस्तान, नेपाल, श्रीलंका और बांग्लादेश इन चार देशों को चीन ने पूरी तरह से अपने वश में किया हुआ है। हाल ही में उसने पाकिस्तान को एक अरब डॉलर का कर्ज दिया है, जिससे पाकिस्तान ने सऊदी अरब के कर्ज का एक हिस्सा चुकाया है। खबर है कि श्रीलंका भी अपने कर्ज उतारने के लिए चीन से पैसे लेने वाला है। नेपाल की कम्युनिस्ट सरकार पूरी तरह से चीन के नियंत्रण में है तो बांग्लादेश में भी चीन की आर्थिक कूटनीति रंग दिखा रहा है। पाकिस्तान को छोड़ कर बाकी तीनों देश तटस्थ हो सकते हैं या फिर से भारत के साथ जुड़ सकते हैं, अगर भारत लद्दाख में चीन को सबक सिखाता है। अगर भारत हाथ पर हाथ धरे बैठा रहा तो पड़ोसी देशों के बीच उसकी स्थिति और कमजोर होगी।
अजीत कुमार
(लेखक पत्रकार हैं ये उनके निजी विचार हैं)