चिट्ठी लिखने वाले नेता क्या करेंगे?

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यह यक्ष प्रश्न है कि जिन नेताओं ने नेतृत्व परिवर्तन या सामूहिक नेतृत्व के लिए चिट्ठी लिखी वे अब क्या करेंगे? कांग्रेस की अंतरिम अध्यक्ष सोनिया गांधी ने भले कह दिया कि उनके मन में कोई दुर्भावना नहीं है और अब आगे बढ़ कर सबको एकजुटता के साथ कांग्रेस को मजबूत करना चाहिए। पर गांठ तो पड़ गई। उन नेताओं के प्रति संदेह तो पैदा हो गया। ऊपर से यह भी खबर आई है कि कांग्रेस कार्य समिति की बैठक के बाद सोमवार की शाम को चिट्ठी लिखने वाले कम से कम नौ नेता गुलाम नबी आजाद के घर पर जुटे थे। वे जानना चाहते थे कि कार्य समिति की बैठक में उनकी चिट्ठी पर क्या चर्चा हुई। कांग्रेस नेतृत्व इस पर भी नजर रखे हुए है। चिट्ठी लिखने वाले ज्यादातर नेताओं के साथ मुश्किल है कि वे कांग्रेस से बाहर होने के बारे में तो सोच सकते हैं पर भाजपा में जाने के बारे में नहीं सोच सकते। उन्होंने कई-कई दशक तक कांग्रेस में रहते हुए अपनी जो वैचारिक पहचान बनाई है उसमें उनके लिए भाजपा में जाना मुश्किल है। दूसरे, भाजपा में उन्हें ज्यादा कुछ हासिल भी नहीं होना है। इसलिए उनके सामने दो विकल्प हैं। पहला विकल्प तो यह है कि वे कांग्रेस में ही पड़े रहें और किसी तरह से नेतृत्व का विश्वास जीतने का प्रयास करें।

दूसरा विकल्प यह है कि कांग्रेस छोड़ कर गए दूसरे क्षत्रपों की मदद से पार्टी तोड़ कर अलग पार्टी बनाएं और कुछ हासिल करने की कोशिश करें। यह काम ज्यादा मुश्किल है क्योंकि चिट्ठी लिखने वाले नेताओं में कोई इतना उद्यमशील नहीं है कि पार्टी बना कर अलग राजनीति करे। किसी में इतनी क्षमता भी नहीं है कि वह सड़क पर उतरे और आम लोगों की राजनीति करे। वैसे ये भी लगता है कि कांग्रेस नेता राहुल गांधी ने गुस्से में अपने पैरों पर कुल्हाड़ी मार ली। उन्होंने चिट्ठी लिखने वाले नेताओं से नाराजगी जताते हुए चिट्ठी की टाइमिंग का सवाल उठाया और कहा कि जिस समय सोनिया गांधी बीमार थीं उस समय यह चिट्ठी लिखी गई। यहां तक तो ठीक था पर इसी रौ में ऐसा लग रहा है कि उन्होंने चिट्ठी लिखने वाले नेताओं पर भाजपा से मिलीभगत का आरोप लगा दिया। हालांकि बाद में खुद राहुल गांधी ने फोन करके सिबल को सफाई दी और कांग्रेस के बाकी नेताओं ने कहा कि राहुल ने ‘भाजपा से मिलीभगत’ क्या इससे मिलती जुलती कोई बात नहीं कही थी।

अब सवाल है कि राहुल ने नहीं कही थी तो फिर बात कहां से निकली? और यह भी सवाल है कि अगर कही भी थी तो बैठक के बीच में किस नेता ने यह बात लीक की? ध्यान रहे कपिल सिबल कांग्रेस कार्य समिति के सदस्य नहीं हैं। फिर उनको रियल टाइम में कार्य समिति की बैठक की जानकारी कौन दे रहा था? कांग्रेस को गंभीरता से इस बात का पता लगाना चाहिए और अनुशासन की कार्रवाई भी करनी चाहिए। यह भी पूछना चाहिए कि कांग्रेस अध्यक्ष को लिखी चिट्ठी कैसे मीडिया में लीक हुई? इस पूरे मामले में एक रहस्य का मामला यह भी है कि सिबल तो बाहर थे, लेकिन गुलाम नबी आजाद तो बैठक में शामिल थे, फिर अगर राहुल गांधी ने भाजपा से मिलीभगत की बात नहीं कही थी तो फिर उन्होंने यह प्रतिक्रिया यों दी थी कि अगर भाजपा से मिलीभगत की बात साबित होती है तो वे इस्तीफा दे देंगे। इसका मतलब है कि गुस्से में राहुल गांधी के मुंह से यह बात निकली, जिस पर आजाद ने प्रतिक्रिया दी और बाद में सिबल भी बोले। जब इस नुकसान का अंदाजा हुआ तब ऐसा लग रहा है कि राहुल ने सिबल को सफाई दी और किसी के जरिए गुलाम नबी आजाद को समझाया गया। यह डैमेज कंट्रोल एसरसाइज था, जो राहुल की बात से हुए नुकसान का अंदाजा लगने के बाद चलाया गया। अब कांग्रेस नेताओं में यह गांठ स्थाई रहने वाली है।

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