चर्चा कम, सियासत ज्यादा

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राजनीतिक दलों की दुविधा यही है कि वे दंगे जैसे संवेदनशील मसले को अपनी सुविधा के हिसाब से देखते-समझते हैं। बुधवार-गुरूवार को क्रमश: लोकसभा और राज्यसभा में दिल्ली दंगे पर हुई चर्चा का लबोलुबाब है। इसकी गंभीरता का अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि इस पर मुख्य रूप से कांग्रेस चर्चा की मांग बीते 2 मार्च से करती आ रही थी और इसी को लेकर संसद शोर-शराबे के कारण चल नहीं पाया पर जब चर्चा का जवाब सुनने का समय आया तो वाकआउट कर गयी। इसे क्या कहेंगे? अपना पक्ष रखे जाने के बाद सरकार के पक्ष को भी सुना जाना चाहिए था। जवाब सुनने का मतलब सहमति थोड़े ही होता है। विरोधी दलों ने कई महत्वपूर्ण प्रश्न खड़े किये। अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प के दिल्ली छोडऩे के बाद ही उपद्रवियों पर पुलिस सखत हुई, यह भी कहा जा सकता है कि पूरी हरकत में आई। यह ढिलाई ना होती तो शायद हालात बहुत खराब ना हुए होते। हालांकि गृहमंत्री अमित शाह ने पुलिस को उसकी तत्परता के लिए सदन में खुलकर सराहना की। यह बहुत स्वाभाविक है।

जहां तक दंगों की जांच के तरीके का मामला है तो उस पर बिना ठोस तथ्य के विपक्ष को भी आरोप से बचना चाहिए। सदन के भीतर दंगों पर धार्मिक आधार पर बहस बेमानी है। माननीयों से यह अपेक्षा नहीं की जा सकती। चुने जाने के बाद तो वह सबका प्रतिनिधि होता है। पर विसंगति यही है चुनावी राजनीति की। लोग चुनाव दौरान की तिकडऩे और बहसे सदन तक ले आते हैं इसीलिए कोई भी चर्चा विभाजित-सी होती है जबकि उसमें एक तारतम्यता होनी चाहिए। बीते दो दिनों से संसद के निचले और उच्च सदन में हुई चर्चा का यही निष्कर्ष है। विषय पर चर्चा कम, विषयान्तर पर ज्यादा फोकस हुआ। आरोप-प्रत्यारोप में बहस का मकसद सिरे-से गायब रहा। वैसे यह पहला मौका नहीं है, जब चर्चा का मतलब सदन से अपने वोट बैंक को संबोधित करना रहा है। इस मामले में सभी दलों का हाल-हवाल एक जैसा है। कांग्रेस को इसीलिए एक ही समुदाय विशेष की पीड़ा समझ में आई। इस मामले में असुद्दीन ओवैसी तो महारथी हैं।

पर अब सभी दलों के लिए समय आ गया है कि हेट स्पीच के व्यापक खतरे को ईमानदारी से समझा जाए। इसमें चयनित दृष्टिकोण नहीं होना चाहिए। दिल्ली दंगे इसी हेट स्पीच का नतीजा है, इससे इनकार नहीं किया जा सकता। 14-15 मार्च को सड़क पर उतरने का आह्वान से लेकर इतने करोड़, इतने करोड़ पर भारी तथा सड़क खाली कराने के लिए एक दल के नेता द्वारा खुली धमकी-ये सब दंगे का परिवेश तैयार करने में महत्वपूर्ण कारक रहे हैं। पार्टी लाइन से ऊपर उठकर इसकी निष्पक्ष जांच होनी चाहिए और तथ्य सामने आने पर दंडित किया जाना चाहिए। यदि इसमें दलगत राजनीति ने प्रवेश किया तो एक महत्वपूर्ण अवसर हाथ से निकल जाएगा। हालांकि गृहमंत्री ने भरोसा दिलाया है कि जांच सही ढंग से होगी। हेट स्पीच की अलग से जांच इसलिए जरूरी होता है ताकि भविष्य में किसी भी दल के नेता अपने वोट बैंक को साधने की गरज से ऐसी दिल दुखाने और नफरत पैदा करने वाली बात ना कहें कि रिश्ते ही दरकने लगे।

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