कंगाल हो गया पाकिस्तान। जी हां कुछ दिनों पहले आपने खबर सुनी होगी कि पैसों की कमी की मार झेल रहा पाकिस्तान चीन को गधों का निर्यात करके पैसे कमा रहा है और निर्यात में कोई बाधा नहीं आए इसके लिए पाकिस्तान ने गधों की आबादी बढ़ाने की योजना पर भी काम शुरू कर दिया है। पाकिस्तान कर्ज के बोझ तले इतना ज्दाया दब चुका है कि उसकी सेना को भी अपने खर्चों में कटौती करनी पड़ी है। डोनाल्ड ट्रंप के अमेरिकी राष्ट्रपति बनने से पहले तक पाकिस्तान अमेरिका से खूब डॉलर लूटता रहा और एश करता रहा था, लेकिन पहले मदद बंद होने और मददगारों के छिटकने से पाकिस्तान के पास दाने-दाने को मोहताज हो जाने की नौबत आ गयी। पाकिस्तान की यह हालत देख चीन ने मदद तो दी लेकिन शर्ते ऐसी लादी कि चीन को ब्याज चुकाते चुकाते ही पाकिस्तान बर्बादी की राह पर आ खड़ा हुआ है। पाकिस्तान को सिर्फ ब्याज चुकाने पर प्रतिदिन छह अरब पाकिस्तानी रुपये खर्च करने पड़ते हैं।
बात पाकिस्तानी सेना की करें तो उससे देश की आर्थिक समस्याओं को सुलझाने के लिए सरकार द्वारा चलाई गई मितव्ययता की मुहिम के बीच एक अभूतपूर्व स्वैच्छिकक दम उठाते हुए आगामी वित्त वर्ष के लिए अपना रक्षा बजट कम करने का फैसला किया है। इंटर सर्विसेज पब्लिक रिलेशंस के महानिदेशक मेजर जनरल आसिफ गफूर ने ट्वीट किया कि आगामी वित्त वर्ष के लिए रक्षा बजट में स्वैच्छिक कटौती सुरक्षा की कीमत पर नहीं होगी। पाकिस्तान के सेना प्रमुख जनरल कमर जावेद बाजवा का भी इस बारे में कहना है कि एक साल के लिये अपने रक्षा बजट में कटौती करने के सेना के इस क दम का हर क स्म के खतरे से निपटने में उसकी ‘‘जवाबी कार्रवाई की क्षमता’’ पर कोई असर नहीं पड़ेगा। उन्होंने यह भी स्पष्ट किया कि ‘‘वेतन नहीं बढ़ाने का फैसला सिर्फ अधिकारियों पर लागू होगा, अन्य सैनिकों पर नहीं।’’ अब पाकिस्तानी सेना जो स्वेच्छा से कदम उठाने और उस पर वाहवाही बटोरने का काम कर रही है उसके बारे में सच यह है कि यह कोई स्वेच्छा से उठाया गया नहीं बल्कि मजबूरी में उठाया गया कदम है।
दरअसल पिछले महीने जब पाकिस्तान ने कर्ज हासिल करने के लिए अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष के साथ समझौता किया था तो देश पर यह शर्त लगायी गयी थी कि उसे अपने खर्चे कम करने होंगे और इसी कड़ी में पाकिस्तानी सेना को अपने खर्च कम करने पड़े हैं। पाकिस्तान अपने सालाना बजट में रक्षा क्षेत्र पर 18 प्रतिशत खर्च करता है जबकि उसका शिक्षा बजट पर खर्च मात्र दो प्रतिशत और स्वास्थ्य क्षेत्र में खर्च कुल बजट का मात्र 1 प्रतिशत है। पाकिस्तान की सेना कि तना अप्रत्याशित खर्च करती है वह इसी बात से पता लग जाता है कि वर्ष 2018 में हथियारों पर खर्च करने में सबसे आगे रहने वाले देशों में पाकिस्तान 20 वें नंबर पर था। पाकिस्तान में मुद्रास्फीति की बात करें तो वहां वस्तुओं की कीमतें लगातार तेजी से बढ़ रही हैं और इस समय पेट्रोल की कीमत 112 पए प्रति लीटर से ज्यादा जबकि हाई स्पीड डीजल की कीमत 126 रुपये से ज्यादा चल रही है।
यही नहीं दूध की कीमत 120 रुपये से ज्यादा और सब्जी-फलों के दाम भी आसमान छू रहे हैं। पाकिस्तान का शेयर बाजार धड़ाम है और खराब हालात के चलते शेयर बाजार के सीईओ ने हाल ही में इस्तीफा दे दिया था। देश के हालात को देखते हुए विदेश निवेश नहीं के बराबर है, व्यापार घाटा बढ़ता जा रहा है, नौकरियां नहीं हैं और देश की इस साल विकास दर 2.9 प्रतिशत रहने का अनुमान है। पाकिस्तान की आर्थिक स्थिति कितनी खराब है इस बात का अंदाजा इसी बात से लग जाता है कि विश्व बैंक ने अनुमान जताया है कि 2020 तक पाकि स्तान की महंगाई दर साढ़े 13 प्रतिशत तक पहुँच जायेगी। पिछले दिनों पाकिस्तान के प्रधानमंत्री इमरान खान को सरकारी खर्चों में कटौती और राजस्व उगाही के लिए प्रधानमंत्री कार्यालय की कारों और यहां तक कि भैसों तक को बेचना पड़ा था जिससे दुनिया के सामने एक चीज पूरी तरह स्पष्ट हो गयी थी कि पाकिस्तान की अर्थव्यवस्था पूरी तरह खोखली हो चुकी है। पाकिस्तान अधिकांश सरकारी कंपनियां तथा संपत्तियां तक बेच चुका है। बहरहाल, पाकिस्तान को चाहिए कि भारत से सामरिक होड़ करने की बजाय अपनी अर्थव्यवस्था को सुधारने पर ध्यान दे। अगर उसने ऐसा नहीं किया तो देश में गृहयुद्ध तक की नौबत आ सकती है। एक बात पूरी तरह स्पष्ट हो चुकी है कि पाकिस्तान एक देश के रूप में हर मोर्चे पर विफल साबित हो चुका है। दुनिया इस अंतर को देख रही है कि एक साथ आजाद हुए दो देश भारत और पाकिस्तान आज कहाँ हैं?
नीरज कुमार दुबे
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं , ये उनके निजी विचार हैं )