कोई भी अच्छा काम शुरू करने से पहले कहते हैं श्रीगणेश करो। मतलब हर कार्य की शुरुआत गणेश की स्थापना से करते हैं। लेकिन क्या सिर्फ उनको याद करना ही काफी है। हम सिर्फ गणेश जी की महिमा ना गाएं, बल्कि खुद ही श्रीगणेश जैसे बन जाएं। गणेश जी के अगर हम एक- एक अंग को देखें, तो वे हमें सही जीवन जीने का तरीका सिखाते हैं। गणेश जी का मस्तक बड़ा दिखाया जाता है। जो दिव्य और विशाल बुद्धि का प्रतीक है। उनकी आंखें बहुत छोटी दिखाई जाती हैं। मतलब जो दिव्य बुद्धि वाला होगा वो दूरांदेशी होगा। मतलब कर्म करने से पहले उस कर्म के परिणाम के बारे में सोचना। गणेश जी का छोटा मुंह होना यह बताता है कि हमें कम बोलना है। लेकिन कान बड़े हैं मतलब ज्यादा सुनना और अच्छी बातों को ग्रहण करना है। फिर गणेश जी का एक दांत टूटा हुआ दिखाते हैं। आज हमारे जीवन में दोहरापन है। जहां अहंकार होगा वहां दोहरापन होगा। परमात्मा यही सिखाते हैं कि मैं आत्मा हूं, तुम भी एक आत्मा हो। इससे हमारा विश्व एक परिवार बन जाता है। जब यह दिव्यता जीवन में आ जाती है तब दोहरापन खत्म हो जाता है। फिर गणेश जी की सूंड दिखाते हैं। उसकी विशेषता है कि वह एक पेड़ भी उखाड़ लेती है तो एक बच्चे को भी प्यार से उठा लेती है। मतलब आत्मा जो दिव्य बन जाएगी, वो बहुत विनम्र होगी, लेकिन बहुत शक्तिशाली भी होगी।
आध्यात्मिकता का मतलब है, जीवन में संपूर्ण संतुलन। विनम्र लेकिन बहुत शक्तिशाली। फिर गणेश जी का पेट बड़ा दिखाते हैं। माना जाता है दिव्य आत्मा वह है जो हर बात को अपने पेट में समा ले। जबकि जो सारी बातें सभी से कहते रहते हैं, उनके लिए कहते हैं कि इसके पेट में कोई बात नहीं पचती। फिर गणेश जी की चार भुजाएं दिखाते हैं। एक भुजा में कुल्हाड़ी है। मतलब परमात्मा से मिली ज्ञान की कुल्हाड़ी, जिससे अपनी बुराइयां, नकारात्मकता को काटना है। दूसरे हाथ में रस्सी है। जो यह बताती है कि सही सोच, सही बोल, सही कर्म, सही खान-पान, सही धन कमाने का तरीका, इन्हें मर्यादाओं की रस्सी से बांध लो। फिर तीसरे हाथ को आशीर्वाद देते हुए दिखाते हैं। जो यह बताता है कि हमारा हाथ सदैव देने की मुद्रा में होना चाहिए। मतलब कोई भी आत्मा आए, उसका कैसा भी व्यवहार हो हमारे मन में उनके लिए सिर्फ शुभकामना के संकल्प ही आएं। फिर चौथे हाथ में मोदक है। लेकिन गणेश जी उसको खाते नहीं हैं हाथ में रखते हैं। इसका मतलब है सफलता मिलेगी लेकिन महिमा को स्वीकार नहीं करना है। अहंकार नहीं करना है। सफलता को सिर्फ हाथ में ही रखना है। फिर गणेश जी को बैठा हुआ दिखाते हैं।
जिसमें एक पैर मुड़ा हुआ होता है और एक पैर नीचे होता है। जो पांव नीचे होता है उसका भी सिर्फ अंगूठा नीचे छूता है। मतलब इस दुनिया में रहना है तो पांव नीचे। हमें सबकुछ करना है, सारे रिश्ते निभाने हैं, कारोबार करना है लेकिन सबसे डिटैच भी रहना है। किसी के संस्कार के प्रभाव में आकर मूल्यों को नहीं छोडऩा है। श्रीगणेश का वाहन चूहा दिखाते हैं। हम देखें तो चूहा सारा दिन कुछ न कुछ कुतरता रहता है। ये हमारी कर्म इंद्रियों का प्रतीक है। सारा दिन कुछ भी देख रहे हैं, सुन रहे हैं, कुछ भी खा रहे हैं, नहीं भी जरूरत है तो पीते जा रहे हैं। दूसरा, चूहा छोटी-सी जगह से अंदर घुस जाता है। उसी तरह हमारे जीवन में बुराइयां, खिंचाव, कमजोरियां, पता ही नहीं चलता है कि कब आ जाती हैं। दर्द तो बहुत बाद में होता है। आज हम सब जीवन में बड़ी मेहनत कर रहे हैं। खुशी, स्वास्थ्य, रिश्तों और काम के लिए। हमें अपने लिए समय ही नहीं मिलता है मतलब हम अपनी दुनिया को ही नहीं संभाल पा रहे हैं। लेकिन जिसका संबंध परमात्मा के साथ होगा उसकी हर सोच शुद्ध, हर शद सही होगी। तो गणेश जी हमें जीवन जीने का तरीका सिखाते हैं। जो आत्मा ये सबकुछ कर लेती है उसको विघ्नविनाशक कहते हैं। हम सबको विघ्नविनाशक आत्मा बनना है। सबके दु:ख हरके इस सृष्टि पर सुख लाना है।
शिवानी दीदी
(लेखिका ब्रह्मकुमारी हैं,ये विचार समाज उत्थान के लिए हैं)