गठबंधन नियम ज्यादा जरूरी

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ऐसा लग रहा है कि चार दशक पहले जिस तरह से पार्टी में टूट फूट रोकने के लिए दलबदल के नियम बनाए गए और धीरे धीरे उस नियम को मजबूत किया गया उसी तरह अब गठबंधन को नियंत्रित और निर्देशित करने के लिए कुछ नियम बनाने का समय आ गया है। दलबदल के नियम बनने और दो-तिहाई बहुमत बगैर के पार्टियों के नहीं टूटने का नियम बनने का नतीजा यह हुआ है कि अब बड़ी पार्टियों में टूट-फूट मुश्किल हो गई है। इक्का-दुक्का विधायक पार्टी छोड़ते हैं तो उनको अपने पद से भी इस्तीफा देना होता है और फिर उपचुनाव होते हैं।

पार्टियों ने खास कर भाजपा ने इसे भी सांस्थायिक रूप दे दिया है। उसने कर्नाटक में कांग्रेस और जेडीएस के एक साथ 17 विधायकों का इस्तीफा कराया ताकि अपनी सरकार बनाई जा सके। उन सीटों पर पांच दिसंबर को उपचुनाव होने वाले हैं। फिर भी दलबदल के नियमों से पार्टियों में तोड़-फोड़ में कुछ कमी आई है। पर अब दलबदल से ज्यादा गठबंधन बदल होने लगा है। पार्टियां चुनाव पूर्व गठबंधन बना कर किसी के साथ लड़ती हैं और चुनाव के बाद किसी और के साथ सरकार बना लेती हैं। इसे कुछ नियमों के जरिए निर्देशित करने की जरूरत है।

अगर ऐसा कोई नियम बने तो उसका थोड़ा विस्तार करके यह भी उसमें शामिल किया जा सकता है कि जो पार्टियां एक दूसरे के खिलाफ लड़ती हैं, प्रचार करती हैं, गालियां देती हैं वे चुनाव के बाद साथ मिल कर सरकार नहीं बना सकती हैं। हालांकि ऐसा होना अभी मुश्किल दिख रहा है। पर जिस तरह से सारी पार्टियां एक दूसरे पर जनादेश के अपमान का आरोप लगाती हैं उसे देखते हुए इसकी पहल की जा सकती है कि सारी पार्टियां मिल कर जनादेश का अपमान रोकने के लिए नियम बनाएं।

भारत में वैसे तो आम मतदाता सभी पार्टियों को सरकार बनाने के लिए ही मत देता है। किसी को यह कह कर वोट नहीं दिया जाता है कि आप विपक्ष में बैठेंगे। इसलिए चुनाव के बाद सारी पार्टियों को सरकार बनाने का अधिकार होता है, चाहे उसे कितना भी वोट मिला हो या कितनी भी सीटें मिलीं हों। इसलिए कम से कम सीटों वाली पार्टी भी सरकार में शामिल होने का प्रयास करे तो वह गलत नहीं है। पर मुश्किल यह है कि जो पार्टियां चुनाव प्रचार में एक दूसरे को गाली देकर लड़ती हैं, एक दूसरे की पोल खोलती हैं, एक दूसरे में कमियां निकालती हैं वे चुनाव के बाद साथ आ जाती हैं।

जो चुनाव पूर्व गठबंधन बनता है वह चुनाव के बाद टूट जाता है और विरोधी गठबंधन की पार्टियां साथ आ जाती हैं। भारतीय जनता पार्टी और नरेंद्र मोदी व अमित शाह ने इसे भी सांस्थायिक रूप दिया है। प्रधानमंत्री मोदी ने 2014 में जम्मू कश्मीर में मुफ्ती मोहम्मद सईद और उनकी बेटी मेहबूबा मुफ्ती को चार, लूटेरा कहा था। उनकी पार्टी पीडीपी को भाजपा ने आतंकवादियों का हमदर्द बताया था। पर चुनाव के बाद जैसे तैसे भाजपा ने उसके साथ तार जोड़ कर सरकार बना ली। इसी तरह महाराष्ट्र के चुनाव में शरद पवार और उनके भतीजे अजित पवार को मोदी ने चोर, लूटेरा बताया था और चुनाव के बाद उनके समर्थन से सरकार बना ली। 2015 में बिहार में जदयू, राजद और कांग्रेस के गठबंधन की सरकार बनी। पर दो साल बाद भाजपा ने यह गठबंधन तुड़वा दिया और जदयू के साथ सरकार बना ली। इसी का नया रूप महाराष्ट्र में देखने को मिल रहा है।

बिहार में 2017 में जो हुआ वहीं महाराष्ट्र में अभी हो रहा है। बिहार में भाजपा और जदयू का गठबंधन का आमने सामने लड़े थे, जिसमें भाजपा बुरी तरह से हारी थी। पर दो साल बाद भाजपा ने जदयू के साथ सरकार बना लिया। उसी तरह महाराष्ट्र में भाजपा-शिव सेना और कांग्रेस-एनसीपी गठबंधन आमने सामने लड़े थे, जिसमें भाजपा गठबंधन जीता। पर अब शिव सेना ने कांग्रेस और एनसीपी के साथ मिल कर सरकार बनाने का दांव चला है। महाराष्ट्र के लोगों ने भाजपा और शिव सेना को एक बार फिर सरकार बनाने का मौका दिया था। पर शिव सेना इस जनादेश को बदल रही है।

कर्नाटक में भी भाजपा सबसे बड़ी पार्टी थी पर कांग्रेस और जेडीएस ने मिल कर उसे सरकार बनाने से रोक दिया था। हालांकि एक साल बाद भाजपा ने सरकार बना ली। हरियाणा में भी भाजपा, कांग्रेस और जननायक जनता पार्टी ने एक दूसरे का विरोध करते हुए चुनाव लड़ा था। भाजपा और जजपा के नेताओं ने एक दूसरे का घनघोर विरोध किया था। पर चुनाव बाद दोनों ने मिल कर सरकार बना ली।

राज्यों में जिस तरह से एक दूसरे की धुर विरोधी पार्टियां चुनाव के बाद आपस में मिल कर सरकार बना रही हैं वह एक तरह से आम आदमी की समझ और उसके वोट के अधिकार का अपमान है। अगर देश का प्रधानमंत्री किसी पार्टी के खिलाफ प्रचार करे, प्रचार में उस पार्टी के नेता को चोर, लूटेरा, भ्रष्ट बताए और बाद में उसी के साथ सरकार बना ले तो लोग क्या सोचेंगे?

प्रधानमंत्री भले पार्टी के नेता की हैसियत से प्रचार करे पर जब वह कोई बात कहता है तो लोग उस पर यकीन करते हैं। कश्मीर में लोगों ने माना कि बाप-बेटी या बाप-बेटा राज्य को लूटते हैं। महाराष्ट्र में माना कि चाचा-भतीजे राज्य को लूटते हैं। पर चुनाव बाद उन पर कार्रवाई होने की बजाय भाजपा ने उनके साथ ही सरकार बना ली। यह आम आदमी की समझ और उसकी भावनाओं का अपमान है। सो, अब समय आ गया है कि ऐसे नियम बनें कि एक-दूसरे का विरोध करके चुनाव लड़ने वाली पार्टियां या गठबंधन चुनाव के बाद एक साथ नहीं आएंगे।

अजित कुमार
लेखक पत्रकार हैं, ये उनके निजी विचार हैं

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