खाड़ी में भारत की दोस्ती मजबूत

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खाड़ी के देश आज सुरक्षा एवं निवेश की दृष्टि से विकल्प के तौर पर एक अच्छे मित्र की तलाश कर रहे हैं क्योंकि ऐसा आभास हो रहा है कि अमेरिका, उसकी अपनी नीतियों के चलते, अब खाड़ी के देशों, विशेष रूप से सऊदी अरब, के लिए विश्वास करने योग्य एक अच्छा सहयोगी नहीं रह गया है। साथ ही, खाड़ी के देशों में 75 लाख से ज़्यादा भारतीय काम करते हैं, जो हर साल क़रीब 55 अरब डॉलर की रक़म स्वदेश भेजते हैं तथा भारत की ऊर्जा निर्भरता भी बड़ी हद तक खाड़ी के देशों पर ही है। उक्त कारणों के चलते भारत के खाड़ी देशों के साथ संबंध वर्ष 2014 से लगातार मज़बूत होते चले गए हैं। पिछले क़रीब साढ़े पांच वर्षों में देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने खाड़ी के देशों की 7 बार यात्रा की है। इन यात्राओं के सकारात्मक नतीजे भी देश को मिलने शुरू हो गए हैं।

सऊदी अरब एवं संयुक्त अरब अमीरात जैसे देशों ने भारत को अन्तरराष्ट्रीय स्तर पर अपना पूरा सहयोग दिया है। चाहे वह, पाकिस्तान से सम्बंधित कोई मुद्दा रहा हो अथवा कश्मीर का। सऊदी अरब के बादशाह मोहम्मद बिन सलमान ने तो भारत के प्रधानमंत्री मोदी को हाल ही में स दी अरब के सर्वोच्च नागरिक सम्मान किंग अब्दुल्ला अजीज साश से सम्मानित किया है। इसके पहले संयुक्त अरब अमीरात भी मोदी को अपने सर्वोच्च नागरिक सम्मान ज़ायद मेडल से सम्मानित कर चुका है। मोदी की सऊदी अरब की दो दिवसीय यात्रा के परिप्रेक्ष्य में, भारत के सऊदी अरब के साथ हाल ही के समय में, मज़बूत हो रहे रिश्तों की यहां विशेष रूप से चर्चा की जा रही है। दोनों देशों को दरअसल एक दूसरे की बेहद जरूरत है। भारत जहाँ फारस की खाड़ी से 70 प्रतिशत से भी अधिक कच्चा तेल आयात करता है और इस क्षेत्र में काम करने वाले भारतीयों की संख्या भी काफी अधिक है, वहीं सऊदी अरब ने भारत में लगातार बढ़ रही आर्थिक संभावनाओं पर ध्यान देते हुए रेफ़ायनिंग, पेट्रोकेमिकल, इंफ्रास्ट्रक्चर, मिनरल्ज़, माइनिंग एवं कृषि समेत कई क्षेत्रों में 10,000 करोड़ अमेरिकी डॉलर के निवेश किए जाने की योजना बनाई है।

इसके अतिरिक्त दोनों देशों के बीच ऊर्जा के क्षेत्र में सहयोग निरंतर बढ़ रहा है। अब दोनों देशों के बीच रिश्तों के नये आयाम देखने को मिल रहे हैं। तेज़ी से बदलती क्षेत्रीय और अंतरराष्ट्रीय परिस्थितियां भारत और सऊदी अरब के संबंधों को घनिष्ठ बनाने में मदद कर रही हैं। इस सबके बीच पहले सऊदी प्रिंस का भारत दौरा और अब भारतीय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के दो दिन के सऊदी अरब दौरे ने दोनों देशों के रिश्तों के लिए नई संभावनाओं को जगह दी है। भारत और सऊदी अरब कुछ वर्षों पूर्व तक केवल क्रेता और विक्रेता की भूमिका में दिखाई देते रहे हैं लेकिन अब देखा जा रहा है कि इससे ऊपर उठकर दोनों देश सामरिक भागीदारी की ओर आगे बढ़ रहे हैं। दोनों देशों के बीच व्यापारिक रिश्ते तो पहले से ही हैं लेकिन इतने उच्च स्तर पर ये रिश्ते अभी हाल ही में विकसित हुए हैं। अब तो यह संबंध नई दिशा की ओर जा रहे हैं और गहरे हो रहे हैं। सऊदी अरब इस्लामिक विश्व का एक अगुआ देश है। उस हिसाब से धारा 370 के मुद्दे पर सऊदी अरब का भारत को समर्थन भी महत्वपूर्ण माना जाना चाहिए।

पिछले 70 वर्षों से इस क्षेत्र से भारत के रिश्ते मूलत: तेल के आयात और भारतीय मूल के लोगों का वहां होना, इन दो चीजों पर आधारित थे। अब दोनों देशों के बीच रिश्तों के लिहाज से विविधता आ रही है। भारत का वैश्विक कद बहुत बढ़ रहा है अत: सऊदी अरब भारत से अपने रिश्तों में विविधता लाना चाह रहा है। आतंकवाद के विरुद्ध युद्ध में भी दोनों देश भागीदारी करना चाह रहे हैं। आर्थिक क्षेत्र में भी दोनों देश विविधता लाना चाह रहे हैं। सऊदी अरब के लिए भारत एक बहुत बड़ा बाज़ार है एवं निवेश के लिए एक बहुत बड़ा गंतव्य है। सऊदी अरब ने भारत को पहचान लिया है कि भारत एशिया का पावर हाउस बनने की ओर अग्रसर है। अत: दोनों देशों को एक दूसरे की ज़रूरत है। सऊदी अरब में दिनांक 29 अक्तूबर 2019 को आयोजित भविष्य निवेश पहल (एफ आईआई), जिसे मरुस्थल का डावोस भी कहा जा रहा है, को भारत के प्रधानमंत्री ने मुख्य वक्ता के रूप में सह्यबोधित किया, साफ है कि भारत को लगातार महत्व मिल रहा है।

भारत और सऊ दी अरब मिलकर अफगानिस्तान में भी अपनी महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकते हैं जिससे इस क्षेत्र में स्थरिता आएगी। पाकिस्तान को भी दृढ़ संकेत गया है कि सऊदी अरब उनके सहयोग में एक हद तक ही आगे आएगा। सऊदी अरब के लिए अब भारत एक प्राथमिकता है। दोनों देशों के रिश्ते अमरीका से भी बहुत अच्छे हैं। दोनों देशों के बीच सामरिक साझेदारी काउन्सिल भी बनाई जा रही है। यह काउन्सिल भारत के प्रधानमंत्री एवं सऊदी अरब के किंग की अध्यक्षता में बनाई जा रही है। यह दोनों देशों के बीच रिश्तों को और मजबूत करने की ओर एक महत्वपूर्ण क़दम है। सऊदी अरब के साथ ही संयुक्त अरब अमीरात, ओमान, बहरीन आदि देशों के साथ भी भारत ने इस दौरान परस्पर समझदारी से सुरक्षा सहयोग, सैन्य शक्ति को मज़बूत करने व समुद्री सुरक्षा सहयोग जैसे मसलों पर कई समझौते किए हैं। इन रिश्तों की पृष्ठभूमि में सैन्य शक्ति को मज़बूत करने के लिए कई समितियाँ बनाई गई हैं एवं परस्पर सैन्य अभ्यास करने के निर्णय भी लिए गए हैं।

प्रल्हाद सबनानी
(लेखक स्तंभकार हैं ये उनके निजी विचार हैं)

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