क्या है लोहड़ी का महत्व

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लोहड़ी
लोहड़ी

लोहड़ी का त्योहार 13 जनवरी को मनाया जाता है। खास बात ये है कि इसी दिन सिखों के 10वें गुरु पूज्यनीय गुरु गोविंद सिंह जी की 352वीं जयंती भी है। लोहड़ी के दिन को पौष माह का अंत और माघ के महीने की शुरुआत मानी जाती है। लोहड़ी का त्‍योहार एक-दूसरे से मिलने-मिलाने और खुशियां बांटने का त्‍योहार है। लोहड़ी शब्द तीन अक्षरों से मिलकर बना है ल से लकड़ी, ओह से गोहा यानि जलते हुए उपले व ड़ी से रेवड़ी। लोहड़ी को लाल लाही, लोहिता व खिचड़वार नाम से भी जाना जाता है।

नए साल का पहला त्योहार लोहड़ी नाच-गाने के साथ मनाए जाने वाला पर्व है। कुल मिलाकर यह दिन धार्मिक लिहाज से काफी अहम रहने वाला है। गुरुद्वारों में भजन, कीर्तन और सत्संग होगा तो शाम को पंजाब के लोकनृत्य पर झूमते लोग नजर आएंगे। सिन्धी समाज भी इसे लाल लाही पर्व के रूप में मनाया जाता है।लोहड़ी की लोह मतलब अग्नि दक्ष प्रजापति की पुत्री सती के योगाग्नि-दहन की याद में जलाई जाती है। यज्ञ पर अपने जामाता महादेव का भाग न निकालने के दक्ष प्रजापति के प्रायश्चित्त के रूप में इस अवसर पर परिजन अपनी विवाहिता पुत्रियों के घर से वस्त्र, मिठाई, रेवड़ी, फल आदि भेजे जाते हैं।

लोहड़ी
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लोहड़ी को पहले कई स्‍थानों पर लोह कहकर भी बुलाया जाता था। लोह का अर्थ होता है लोहा. यहां लोहे को तवे से जोड़कर देखा जाता है। लोहड़ी के मौके पर पंजाब में नई फसल काटी जाती है। गेहूं के आटे से रोटियां बनाकर लोह यानी तवे पर सेकीं जाती हैं। इसलिए पहले इस त्योहार को लोह के नाम से भी जाना जाता था। लोहड़ी का त्योहार फसल की बुआई और उसकी कटाई से जुड़ा हुआ है। किसान अपने नए वित्तीय वर्ष की शुरुआत के रूप में लोहड़ी मनाते हैं। लोहड़ी की रात को साल की सबसे लंबी रात माना जाता है। लोहड़ी के दिन अग्नि व महादेवी के पूजन से दुर्भाग्य दूर होता है, पारिवारिक क्लेश समाप्त होता है तथा सौभाग्य प्राप्त होता है।

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