कोविड-19 महामारी की रोकथाम के मद्देनजर देश लॉकडाउन के दूसरे दौर से गुजर रहा है, जो 3 मई तक चलेगा। जाहिर है कि महामारी के जो खतरे पहले थे, वे अभी भी बने हुए हैं। 25 अप्रैल से शुरू हुए इस लॉकडाउन के चलते आवश्यक सेवाओं को छोड़ देश में सार्वजनिक परिवहन, उद्योग, दफ्तर, स्कूल-कॉलेज सभी बंद हैं, और अक्सर इन पर चर्चा भी होती रहती है। इसी दौर में देश भर के करीब 14 लाख आंगनबाड़ी केंद्र भी बंद कर दिए गए हैं। इनसे लाभान्वित होने वाले करीब 8.2 करोड़ बच्चे 6 साल से कम के हैं और 1.9 करोड़ गर्भवती महिलाएं, स्तनपान कराने वाली माएं भी हैं। आंगनबाड़ी कार्यकर्त्रियों को लाभार्थियों के घर जाकर राशन देने के आदेश तो दिए गए हैं, मगर इसमें काफी दिक्कतें आ रही हैं।
आंगनबाड़ी कार्यकर्त्रियां आंगनबाड़ी केंद्रों से राशन के पैकेट लेकर चिह्नित इलाकों में बांटने जाती हैं। कोविड-19 से सबसे अधिक प्रभावित महाराष्ट्र में मार्च के दूसरे पखवाड़े में ही टेक होम राशन वितरण का सर्कुलर जारी कर दिया गया था। इस सर्कुलर में कहा गया था कि कोरोना संक्रमण के प्रसार को रोकने के मद्देनजर उठाए जाने वाले कदमों को सफल बनाने के लिए गांवों, आदिवासी इलाकों व शहरों के आंगनबाड़ी केंद्रों में बच्चे नहीं आएंगे और उन्हें अब ताजा भोजन उपलब्ध कराने की बजाय 15 मई तक घरों में राशन मुहैया कराया जाएगा। महाराष्ट्र में लाभार्थी बच्चों व महिलाओं को यह राशन समय पर उपलब्ध नहीं कराया जा रहा, खासकर आदिवासी इलाके इस समस्या से अधिक जूझ रहे हैं। सरकार जितनी खाद्य सामग्री आदिवासी इलाकों तक पहुंचाने का दावा कर रही है, उसमें गर्भवती महिलाओं व स्तनपान कराने वाली मांओं की तरफ से ऐसी शिकायतें आ रही हैं कि दावे के मुताबिक खाद्य सामग्री पूरी नहीं है।
लाभार्थी बच्चा जब आंगनबाड़ी केंद्र में आता है तो यह सुनिश्चित होता है कि वहां मिलने वाला पौष्टिक आहार वही बच्चा खाएगा। इस पूरक पौष्टिक आहार से कुपोषण वाली श्रेणी से वह धीरे-धीरे बाहर निकल सकता है। आंगनबाड़ी केंद्रों में अति गरीब, गरीब व निम्न सामाजिक-आर्थिक पृष्ठभूमि के बच्चे आते हैं। ध्यान देने वाली बात यह है कि विश्व में भारत ऐसा मुल्क है, जहां कुपोषित बच्चों की संख्या चिंताजनक स्तर पर है। ऐसे बच्चों के लिए आंगनबाड़ी केंद्रों में मिलने वाला पौष्टिक आहार ही दिन भर में मिलने वाला संभवतः इकलौता विकल्प है। यही आहार उनके विकास के लिए आवश्यक पौष्टिक तत्वों की पूर्ति करने में अहम भूमिका निभाता है।
लॉकडाउन में टेक होम राशन व्यवस्था के कदम को लेकर कई तरह की चिंताए व्यक्त की जा रही हैं। यह भी सोचने वाली बात है कि क्या घर में लाभार्थी बच्चों और महिलाओं का आहार पूरा उन्हें ही खाने दिया जाएगा, ऐसे हालात में जब दिहाड़ीदार मजूदरों के घरों में चूल्हे नहीं जल रहे हों, और सभी को भूख लगी हो? इन वजहों से गरीब-वंचित तबके के बच्चे व महिलाएं अलग तरह से प्रभावित हो रहे हैं। इधर महिला व बाल विकास मंत्रालय का दावा है कि उसे मुल्क के इन लोगों का खास ध्यान है, लिहाजा मंत्रालय ने दो लाख से अधिक आंगनबाड़ी कार्यकर्ताओं के साथ डिजिटल मंच के जरिए बच्चों, गर्भवती महिलाओं, स्तनपान कराने वाली मांओं के पौष्टिक आहार की जरूरतों को पूरा करने पर फोकस करने के बारे में संवाद भी किया है और उन्हें इन पर कोविड-19 के मनोवैज्ञानिक प्रभावों पर नजर रखने को भी कहा गया है।
तेलगांना सरकार की आंगनबाड़ी कार्यकर्त्रियां होम विजिट के दौरान गर्भवती महिलाओं को कोविड-19 संबंधी खबरें नहीं सुनने की सलाह दे रही हैं और उन्हें यह भी समझाने का प्रयास कर रही हैं कि उन्हें डिलिवरी या गर्भावस्था में जटिल हालात पैदा होने पर ऐसे अस्पतालों में ले जाया जाएगा, जहां कोविड-19 का कोई भी रोगी नहीं होगा। कोविड-19 की चुनौतियों की लंबी फेहरिस्त में आंगनबाड़ी केंद्र के लाभार्थी व आंगनबाड़ी कार्यकर्त्रियां जिन चुनौतियों का सामना कर रही हैं, उन्हें नजरअंदाज नहीं किया जा सकता, क्योंकि समाज के आखिरी छोर पर रहने वाले वंचित तबकों के बच्चे, महिलाएं पौष्टिक आहार व स्वास्थ्य सेवाओं के लिए इन पर बुरी तरह से आश्रित हैं।
अलका आर्य
(लेखिका वरिष्ठ पत्रकार हैं ये उनके निजी विचार हैं)