वैसे तो 31 अक्टूबर से जम्मू-कश्मीर पुनर्गठन विधेयक के वजूद में आने के बाद ही राज्य का झंडा हटाया जाना था, पर इसकी शुरुआत 25 अगस्त रविवार को ही हो पाई। इस लिहाज से अब सिर्फ तिरंगा लहराएगा। आजादी के बाद जम्मू-कश्मीर शेष भारत से अलग-थलग पड़ा हुआ था। अनुच्छेद 370 के कारण केन्द्र सरकार के ढेर सारे कानून लागू नहीं हो पाते थे। विशेष दर्जें के कारण राज्य का अपना अगल संविधान, अलग झंडा और दंड संहिता था। यही खासियत अलगाविदियों की सियासत को मजबूती देने का काम करती थी। आतंकवाद एक बड़ी समस्या के रूप में बीते सात दशकों से जम्मू-कश्मीर के वाशिंदों की जिन्दगी को जहुन्नम बनाए हुए था। इसी वजह से अब तक सेना और राज्य के तकरीबन 41 हजार लोगों की जानें जा चुकी हैं। यही नहीं इसका देश के अन्य हिस्सों पर भी प्रतिकूल प्रभाव पड़ रहा था।
पाकिस्तान की शह पर राज्य में अलगावादी निजामे मुस्तफा के सपने दिखाकर नवांकुरों के जहन में जहर भर रहे थे। पत्थरबाज युवाओं की यही कहानी बताते हुए नहीं थकते थे। कश्मीर की समस्या को राजनीतिक बताने के तर्क दिये जाते थे। पर इसकी आड़ में पाकिस्तान की मंशा को पूरा करने की चालें चली जाती थी। शायद इसीलिए विशेष दर्जे के खत्म होते ही तथाकथित विशेष दर्जे के खत्म होते ही तथाकथित राजनीतिक समस्या बेमायने हो गयी है और इसी वजह से घाटी के चंद अलदाववादी नेता और पाकिस्तानी निजाम हैरान-परेशान हैं। इन दिनों विदेश दौरे पर प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने भी देश का नजरिया स्पष्ट करते हुए कहा है कि अनुच्छेद 370 से जम्मू-कश्मीर भारत से घुल-मिल नहीं पा रहा था। अब वो दीवार हटा दी गयी है। मोदी सरकार के अप्रत्याशित दांव से पाकिस्तान पहले से बौखलाया हुआ था और अब पिछले दिनों यूएई में सर्वोच्च नागरिक सम्मान से मोदी को सम्मानित किये जाने के बाद उसकी हालत यह हो गई है कि उसके सीनेट सदस्यों का स्पीकर के साथ यूएई का दौरा पहले से प्रस्तावित था, तो रद्द कर दिया दया।
हालांकि पाकिस्तान की खीझ स्वाभाविक है, उसे इस्लामिक देशों से बड़ी उम्मीद थी। पहले कश्मीर पर उन देशों से पाकिस्तान के समर्थन में बयान सामने आते थे लेकिन ऐतिहासिक फैसले के बाद ऐसे किसी भी देश की तरफ से विवादास्पद बयान नहीं आया है। निश्चित तौर पर यह भारत की दृढ़ता और सबल राजनय की जीत है। इस सबके बीच देश के भीतर भी विपक्ष के लिए बदले हुए कश्मीर को स्वीकारना अच्छा नहीं लगा रहा। अभी दो दिन पहले कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष राहुल गांधी के साथ अन्य दलों का एक प्रतिनिधिमंडल जम्मू-कश्मीर गया था लेकिन श्रीनगर एयरपोर्ट पर ही रोक लिया गया। इस नेताओं का तर्क था कि वे लोग हालात का जायजा लेने गये थे। खुद राज्यपाल सतपाल मलिक ने राहुल गांधी को कश्मीर आकर हालात का जायजा लेने का निमंत्रण दिय़ा था। अब जब विपक्ष श्रीनगर पहुंचा तो उसे वास्तिवकता जानने से रोका गया। विरोधी दलों का मानना है कि राज्य में हालात सामान्य नहीं हैं। इसीलिए उन्हें रोका जा रहा है। विपक्ष का कहना सही है कि दो हफ्ते में हालात सामान्य नहीं हो पाये हैं, सरकार देश को अंधेरे में रख रही है। इस नजरिये का दो दूसरा हिस्सा है उसी पर सियासत करवे की कोशिश हो रही है।