कर्तव्य ही तो निभा रहे हैं भारत के लोग!

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संविधान स्वीकार किए जाने की 70वीं सालगिरह के मौके पर संसद के साझा सत्र में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कहा कि 70 साल से इस बात पर जोर रहा है कि भारत के लोगों को बुनियादी अधिकार क्या हैं और उन्हें कैसे मिलेंगे पर अब लोगों को अपना कर्तव्य निभाने के बारे में भी सोचना चाहिए। राष्ट्रपति ने रामनाथ कोविंद ने भी देश के लोगों को मौलिक अधिकार और बुनियादी कर्तव्यों के बारे में बताया। उप राष्ट्रपति वेंकैया नायडू ने तो यहां तक कहा कि मौलिक कर्तव्यों के बारे में छात्रों को पढ़ाया जाना चाहिए। संविधान दिवस के एक समारोह में कानून मंत्री रविशंकर प्रसाद ने भी यहीं बात कही। उन्होंने भी कहा कि भारत के लोगों में संविधान में तय किए गए बुनियादी कर्तव्यों को भी निभाना चाहिए। सवाल है कि अचानक मौलिक कर्तव्यों पर इस तरह से जोर देने की बात कहां से आ गई?

ध्यान रहे देशभक्त लोगों की एक बड़ी जमात ऐसी है, जो कहती रही है कि आप ये मत पूछो की देश ने आपको क्या दिया, यह सोचो की आपने देश को क्या दिया। यह असल में सरकारों की विफलताओं से ध्यान हटाने के दुष्प्रचार का हिस्सा रहा है। इसी का विस्तार यह बात है कि लोगों को अपने कर्तव्य निभाने चाहिए। किसी भी नागरिक से कर्तव्य पूरे करने के लिए कहने से पहले जरूरी है कि उसे सारे मौलिक अधिकार दिए जाएं। पर उसके बिना ही भारत में कर्तव्यों की बात शुरू हो गई है।

इस पूरे मामले में एक दूसरी खास बात यह है कि मौलिक कर्तव्य का अनुच्छेद मूल संविधान में नहीं था। इसे इमरजेंसी के दिनों में इंदिरा गांधी ने 1976 में 42वें संविधान संशोधन के जरिए संविधान के चौथे भाग में शामिल किया। सोचें, यह कैसी समानता है। जिस सरकार ने इमरजेंसी लगाई थी, जिसके लिए भाजपा और उसका पूरा नेतृत्व आज तक कांग्रेस को कठघरे में खड़ा करता है। उस सरकार ने संविधान में जो अनुच्छेद जोड़ा उसे लागू कराने के लिए भाजपा की सरकार जोर लगा रही है। यह भी अनायास नहीं है कि भाजपा की मौजूदा सरकार के ऊपर भी तानाशाही के आरोप लग रहे हैं और अघोषित इमरजेंसी लगाने के आरोप भी लग रहे हैं।

बहरहाल, संविधान ने भारत के नागरिकों को कुछ मौलिक अधिकार दिए और इमरजेंसी के समय इंदिरा गांधी ने कुछ मौलिक कर्तव्य तय कर दिए। अब राष्ट्रपति, उप राष्ट्रपति, प्रधानमंत्री और कानून मंत्री सभी देश के लोगों से इन्हीं नागरिक कर्तव्यों का पालन करने को कह रहे हैं। सवाल है कि भारत के नागरिकों को क्या सारे मौलिक अधिकार मिल रहे हैं? सबसे बुनियादी मौलिक अधिकार वाक-अभिव्यक्ति की आजादी और सम्मान के साथ जीने का है। क्या देश के लोगों को सम्मान का जीवन मिल रहा है? हकीकत यह है कि देश के 130 करोड़ में से ज्यादातर लोगों का जीवन सम्मानजनक नहीं है। और जहां तक कर्तव्यों की बात है तो इस देश का आम नागरिक सात दशक से पूरी निष्ठा से अपना कर्तव्य निभा रहा है।

भारत के पिछले 70 साल में या इमरजेंसी के बाद पिछले 43 साल में नागरिकों को उनके मौलिक अधिकार नहीं मिले हैं। पर वे अपने मौलिक कर्तव्य निभा रहे हैं। मौलिक कर्तव्यों में राष्ट्रीय प्रतीकों जैसे राष्ट्रगान और राष्ट्रीय झंडे के सम्मान की बात कही गई है। तो भारत के नागरिक इनका सम्मान करते हैं। अब तो सिनेमाघरों में फिल्म शुरू होने से पहले राष्ट्रगान बजता है और अदालत के आदेश से लोगों को उसके सम्मान में खड़ा होता है। इसी तरह अगर तिरंगे का अपमान भी कहीं कहीं नेता लोग ही करते हैं, आम नागरिक तो उसके सम्मान की लड़ाई लड़ता है। हां, यह अलग बात है कि भाजपा की सांसद प्रज्ञा सिंह ठाकुर राष्ट्रपिता का अपमान करती हैं और फिर भी उनके ऊपर कोई कार्रवाई नहीं होती है।

इसी तरह देश के संविधान का पालन करना, आजादी की लड़ाई के मूल्यों की रक्षा करना, राष्ट्रीय सद्भाव बढ़ाना, देश की एकता व अखंडता बनाए रखने के लिए काम करना, राष्ट्रीय प्रतीकों और ऐतिहासिक विरासतों की रक्षा करना, सार्वजनिक संपत्ति को नुकसान नहीं पहुंचाना, वैज्ञानिक सोच विकसित करना आदि भारत के नागरिकों के बुनियादी कर्तव्य हैं। हकीकत यह है कि पिछले 70 साल में बहुत कम मौके ऐसे आए हैं, जब नागरिक अपने कर्तव्य निभाने में विफल रहे हैं।

ऐसे मौके भी राजनीतिक दलों की विभाजनकारी नीतियों और वोट बैंक की राजनीति के कारण आए हैं। हाल ही में अयोध्या मामले पर आए सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद देश के लोगों ने जिस तरह शांति बनाए रखी और सद्भाव दिखाया, वह मिसाल है। खुद प्रधानमंत्री ने इसके लिए लोगों की तारीफ की। ऐसा नहीं है कि लोगों ने ऐसा इसलिए किया क्योंकि ऐसा संविधान में लिखा हुआ है। लोगों ने सहज, स्वाभाविक भावना के तहत और इस देश की सदियों की परंपरा के तहत ऐसा किया।

नागरिक हमेशा अपने कर्तव्यों का पालन करते हैं या सरकारें उनसे करवा लेती हैं। जैसे अगर कोई आदमी सार्वजनिक संपत्ति को नुकसान पहुंचाता है या राष्ट्रीय प्रतीकों को नुकसान पहुंचाता है तो उसके खिलाफ कार्रवाई के लिए कानून बना हुआ है। अगर कोई कर की चोरी करता है त उसे सजा देने के सख्त प्रावधान हैं। पर अगर कोई सरकार मौलिक अधिकार छीनती है तो उसके खिलाफ कार्रवाई का प्रावधान नहीं है। इस देश में राहुल बजाज जैसे व्यक्ति जब सरकार से सवाल पूछते हैं तो उनको परेशान किया जाता है, जबकि हमारा संविधान वाक और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता देता है और किसी भी सभ्य समाज में लोकतंत्र की मजबूती के लिए यह सबसे जरूरी और पहली शर्त होती है।

सुशांत कुमार
लेखक स्तंभकार हैं, ये उनके निजी विचार हैं

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