ईवीएम पर विपक्ष को भरोसा नहीं

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आम चुनाव के पांच चरण बीत चुके हैं। आरोप-प्रत्यारोप और हार जीत के दावों के बीच विपक्ष की तरफ से ईवीएम पर सवाल उठना बदस्तूर जारी है। हालांकि मंगलवार को सुप्रीम कोर्ट ने साफ कर दिया है कि गणना को लेकर दिया गया पिछला आदेश यथावत रहेगा। 21 दलों की समवेत पुनर्विचार याचिका को नये सिरे से स्वीकार नहीं किया जा सकता। विपक्षी दलों की मांग थी कि 50 फीसदी ईवीएम से वीवीपैट की पर्चियां का मिलान हो, भले ही नतीजे आने में एकाध हफ्ते का समय लग जाए। इससे लोगों का लोकतंत्र पर विश्वास और सुदृढ़ होगा। पर सुप्रीम कोर्ट की मनाही के बाद 25 फीसदी ईवीएम से वीवीपैट की पर्चियों के मिलान की भी बात उठी। बहरहाल कोर्ट ने स्वष्ट कह दिया है कि पिछले आदेश के मुताबिक किन्हीं पांच बूथों पर ईवीएम से वीवीपैट की पर्चियों का मिलान होगा।

वैसे इस नई प्रक्रिया से भी नतीजों में तीन-चार घंटे की देर होगी। इस सबके बीच विपक्ष ने एक बार फिर चुनाव आयोग की तरफ रूख करने का निर्णय किया है। इस पूरी कवायद का एक ही निहितार्थ है कि विपक्ष ईवीएम पर सवाल उठाना जारी रखेगा। अब इसके पीछे मौजूदा सरकार और चुनाव आयोग की मंशा को लेकर विपक्ष का कोई पूर्वाग्रह है या फिर यह सारी बातें इसलिए कि 23 मई को नतीजे अनुकूल नहीं आये तो कहने को रहेगा कि ईवीएम में कोई खेल हो गया। क्योंकि यही आशंका पिछले दिनों महाराष्ट्र के कद्दावर नेता शरद पवार ने भी जताया, कहा कि बारामती में उनकी बेटी सुप्रिया सुले चुनाव हारती हैं तो इसका सीधा मतलब होगा ईवीएम में गड़बड़ी की गई है। वैसे विपक्ष जनसभाओं में मोदी पर जिस तरह हमलावर है और 23 मई को सत्ता परिवर्तन की उम्मीद बांध रहा है, उससे तो पहले से ही किसी बहाने की तलाश करना स्वाभाविक नहीं लगता।

या फिर ये अभी से मान लिया जाए कि तमाम शोर-शराबे के बाद भी विपक्ष को अपने ऊपर सत्ता में लौटने का भरोसा नहीं है। जहां तक ईवीएम का सवाल है तो कई चुनाव विपक्ष ने ईवीएम के भरोसे ही जीते हैं। हाल में कांग्रेस ने राजस्थान, छत्तीसगढ़ और मध्यप्रदेश में वापसी की है। उसकी जीत का माध्यम ईवीएम ही था। तब उसे लेकर कोई सवाल नहीं उठा। तो बदली परिस्थितियों में क्यों? ईवीएम एक जगह, सही तो दूसरी जगह गलत कैसे हो सकता है? फिलहाल 23 मई को नतीजे आने के बाद यदि विपक्ष की मंशा पूरी ना हुई तो ईवीएम को लेकर लड़ाई फिर जेत होगी। हो सकता है इस लड़ाई के बहाने 2019 के फैसले को भी कमतर करने की कोशिश होती दिखे। विपक्ष के आचरण से तो यही प्रतीत होता है। सियासी महाभारत के नेताओं की आक्रमकता हैरान करती है। यूपी में गठबंधन के नेताओं में पीछे बिगड़े हुए हैं। हालांकि भाजपा के नेता भी आक्रमक बयानबाजी में पीछे नहीं हैं। कांग्रेस तो अपनी आक्रमकता के चलते सुप्रीम कोर्ट के चक्कर भी लगा रही है। राहुल गांधी और प्रियंका गांधी वाड्रा की तनी भौंहें और जवाबी कड़वे बोल आम लोगों के सामने एक अलग धारण प्रस्तुत कर रहे हैं। बचे दो चरणों के बीच मोदी ने राजीव गांधी को बोफोर्स दलाली में कथित भूमिका का जिक्र करके चुनावी अभियान को आक्रामक बना दिया है।

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