आयकर विभाग ने बेनामी संपत्ति कानून के तहत 400 करोड़ रुपये की प्रापर्टी जब्त कर ली है। इसका संबंध उत्तर प्रदेश की पूर्व मुख्यमंत्री मायावती के भाई एवं बसपा के उपाध्यक्ष आनंद कुमार और उनकी पत्नी विचित्रलता से है। नोयडा में स्थित एक एकड़ जमीन की मौजूदा बाजार की कीमत मूल कीमत से कहीं ज्यादा की बताई जाती है। मिले दस्तावेजों की पड़ताल से यह सच भी सामने आया है कि इसकी खरीदारी हवाला के जरिये हुई थी। वैसे वर्ष 2009 में ही अकूत सम्पत्ति को लेकर मायावती के भाई पांच एजेंसी के रडार पर आ गये थे लेकिन दिक्कत थी कि तब तक बेमानी संपत्ति के सिलसिले में कोई कारगर कानून नहीं था लेकिन वर्ष 2016 में नरेन्द्र मोदी की सरकार में इस कानून में संशोधन करके बेमानी संपत्तियों को जब्त करने का अधिकार दिया गया। यह कार्रवाही इसी की देन है। वैसे पहले से आनंद कुमार और इनका पत्नी की 13 सौ करोड़ की बेनामी संपत्ति को लेकर जांच चल रही है।
हालांकि दर्जन भर कंपनियों के निदेशक के तौर पर दावे का सच भी सामने आ रहा है। बताया जाता है कि आधा दर्जन कंपनियां खोखा यानि फर्जी है, कागजी हैं। अब इस कार्रवाई से आनंद कुमार की मुश्किल बढ़नी तक है लेकिन इसकी आंच मायावती तक भी पहुंच सकी है क्योंकि उन्ही मुख्यमंत्री रहते हाजारों गुण आनंद की संपत्ति में इजाफा हुआ है। बेमानी संपत्ति कानून को सही ढंग से इस्तेमाल करने की मौजूदा वक्त में बहुत जरूरत है। जो भी लाभ के पद पर हैं और रसूखदार हैं उनके बीच संपत्तियों का अंबार खड़ा करने की होड़ लगी हुई है। इस दौड़ में नेता और नौकरसाही शामिल है। चिंता की बात यह है कि इन्हीं पर लोकतांत्रिक व्यवस्था के संचालन की जिम्मेदारी होती है। देश के विकास का एजेंट बनने के बजाय उनकी भूमिका जब मलाई काटने की होती है तब आम लोगों का निराश होना बेमानी नहीं लगता जो छवि नेता और नौकरशाही की बन रही है उसे तोड़ने की सख्त जरूरत है और यह आश्वस्त करने वाली बात है कि मोदी सरकार भ्रष्टचार के मामले में कड़ाई से पेश आ रही है।
इस सबके बीच विपक्ष के इस सवाल को भी खारिज करने का कोई तुक नहीं प्रतीत होता कि बेमानी संपत्ति के राजनीतिक सर्किल में जितने मामवे अब तक सामने आये हैं। क्या सत्ताधारी दल में ऐसे लोग नहीं हैं जिन्होंने बेमानी संपत्ति खड़ी की है? यह सवाल विपक्ष उठाकर ऐसी कार्रवाही को राजनीतिक विद्वेष से हुई कार्रवाही बताता है। इससे ऐसे अभियानों के मकसद को लोग संशय की दृष्टि से देखने लगते हैं तो इसमें कुछ भी आस्वाभाविक नहीं है। कालेधन पर सख्त प्रहार की जरूरत है ताकि जो गलत तरीकों से पैसा बनाने की जुगत में दिन-रात लगे रहते हैं उनमें कानून को लेकर खौफ हो। कालेधन की वापसी के वादे के साथ मोदी सरकार 2014 में सत्ता में आयी थी। यह ठीक है कि इस दिशा में सख्त कानून बने। स्विस बैंक में भारतीय निर्माण की रफ्तार नहीं थम रही। जरूरत है देश के भीतर उस रास्तों पर नजर रखने की जिससे काला धन प्रवेश करता है। देश के भीतर काला धन का साम्राज्य छित्र-भिन्न हो तो उम्मीद है काफी कुछ बदल जाएगा।