आतंकवाद से निपटें ब्रिस देश

0
123

भारत ने ब्रिस समेलन में आतंकवाद के खिलाफ ब्रिस देशों को मिलकर लडऩे का आदान ऐसे समय में किया है, जब वैश्विक आतंकी गुट तालिबान ने अफगानिस्तान की लोकतांत्रिक सरकार से बंदूक के दम पर सत्ता छीनी है। बेशक इसके लिए अमेरिका पर दोष मढा जा रहा है, लेकिन तालिबान की मदद देने वाले मुल्क अधिक गुनाहगार हैं। अफगानिस्तान में तालिबान के अंतरिम सरकार में विश्व स्तर पर इनामी आतंकियों के शामिल होने के बाद से मध्य एशिया में शांति को लेकर चिंता बनी हुई है। अफगानिस्तान में तालिबान सरकार जिस तरह कड़े फैसले ले रही है, सत्ता की भागीदारी में अफगानी महिलाओं की अनदेखी की है, हर तरफ बंदूकधारियों की आवाजाही है और अफगानिस्तान को इस्लामिक अमीरात घोषित किया है, उससे भारत समेत लोकतंत्र व कानून के राज के समर्थक देशों की चिंत बढऩा लाजिमी है। चूंकि अफगानिस्तान के नव निर्माण में भारत अहम भूमिका निभा रहा था, जो अब तालिबान के आने से लगभग डिरेल हो गया है, इसलिए भारत का कंसर्न अधिक है।

तालिबान सरकार के साथ चीन और पाकिस्तान की नजदीकियां भारत के लिए आतंकवाद को चुनौतियां बढ़ाएंगी। ऐसे में ब्रिस समलन भारत के लिए ऐसा मौका है, जहां से वह चीन व रुस को अफगानिस्तान पर अपनी चिंता से अवगत कराए। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अपने अध्यक्षीय संबोधन में आतंकवाद पर अपनी चिंता को रेखांकित कर दो टूक संदेश दिया कि आतंकवाद का कोई भी रूप वैश्विक शांति, विकास व सुरक्षा के लिए खतरा है। इसके खिलाफ ब्रिस देश एकजुट होकर लड़ें। भारत का रुख स्पष्ट है कि आतंकी गुट का सत्ता तक पहुंचना समूचे विश्व के लिए खतरनाक प्रवृति को बढ़ावा देगा। अफगानिस्तान में तालिबान जिस तरह से सता पर काबिज हुआ है, वह मध्ययुगीन दौर की याद दिलाती है।

21 वीं सदी के विश्व में तालिबान का सरकार में आने का तरीका लोकतंत्र व मानवाधिकारों के संरक्षकों के लिए गंभीर नैतिक व वैचारिक प्रश्न है। ब्रिस समेलन में चीनी राष्ट्रपति शी चिनफिंग का आतंकवाद पर एक शब्द भी नहीं बोलना चीन के दोहरे रवैये को दर्शाता है। पाकिस्तान के संदर्भ में गुड और दंड आतंकवाद कहा जाता था, पर अब बात चीन पर भी लागू होता प्रतीत हो रहा है। चीन ने जिस तरह तालिबान सरकार के साथ पींगे बढ़ाने की दिशा में बिना सोचे समझे जल्द बाजी दिखाई है, उससे लगता है कि उसने भी आतंकवाद को गुड व बैड के नजरिये देखना शुरू किया है। संयुक्त राष्ट्र के पांच स्थाई सदस्यों में शामिल चीन का वैश्विक आतंकी गुट तालिबान की सरकार के साथ काम करने की इच्छा जताना आतंकवाद के खिलाफ यूएन के चार्टर का भी उल्लंघन ही वैश्विक शांति के लिए चीन को अपने फैसले पर पुनर्विचार करना चाहिए।

ब्रिस समेलन में रूस ने अफगानिस्तान का मुद्दा उठाया है। इस वत का यह सबसे जरूरी मुद्दा रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन ने अफगानिस्तान संकट के लिए बेशक अमेरिकी सेनाओं के हटने को जिमेदार ठहराया है, लेकिन यह दिखाया है कि वह आतंकवाद के खतरे के प्रति सचेत है। चीन की तरह का शुतुरमुर्ग नहीं बना हुआ है। पुतिन ने कहा, अभी भी यह साफ नहीं है कि इससे पत्रीय और वैधिक सुरक्षा पर या असर पड़ेगा। यह अच्छी बात है कि जिस देशों ने इस पर फोकस कियाज। चीन से नजदीकी के चलते रुस ने बेशक तालिबान सरकार के खिलाफ अपना स्टेंड अभी तक साफ नहीं किया है, लेकिन जिस तरह वह भारत के साथ वार्ता कर रहा है और ब्रिस में तालिबानी आतंकवाद के खतरे के प्रति चिंता व्यत की है, उससे लग रहा है कि रूस खुलकर कर तालिबान के साथ नहीं जाएगा, वैश्विक हित में उसे जाना भी नहीं चाहिए। इस वत ब्रिस को भारत की चिंता को एड्रेस करना चाहिए और तालिबान सरकार के आने के बाद मध्य व दक्षिण एशिया में आतंकवाद के नए खतरे के खिलाफ ब्रिस देशों को साथ आना चाहिए।

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here