आंध्रप्रदेश के मुख्यमंत्री जगनमोहन रेड्डी ने सांप की बॉबी में हाथ डाल दिया है। उन्होंने उप-राष्ट्रपति वेंकय्या नायडू, आंध्र के पूर्व मुख्यमंत्री चंद्रबाबू नायडू और आंध्र के अन्य नेताओं को अपने एक ऐसे तर्क में लपेट लिया है, जो मूलतः गलत है लेकिन जिसने सभी नेताओं की बोलती बंद कर दी है। जगन ने सारे आंध्र की सरकारी पाठशालाओं में सभी विषयों को पढ़ने-पढ़ाने का माध्यम अंग्रेजी कर देने की घोषणा कर दी है।
याने अब आंध्र के बच्चे किसी भी विषय को सीखना चाहें तो उसे वे तेलुगु या उर्दू माध्यम से नहीं सीख सकेंगे। इस नई व्यवस्था को लागू करने के पीछे उनका तर्क यह है कि अंग्रेजी विश्वभाषा है और उसके माध्यम से ऊंचे रोजगार पाना देश और विदेशों में भी आसान होता है। सरकारी स्कूलों में पढ़नेवाले गरीबों, ग्रामीणों और पिछड़ों के बच्चों को इस लाभ से वंचित क्यों रखा जाए?
जब जगन रेड्डी का इस घोषणा का विरोध वैंकय्या और चंद्रबाबू नायडू जैसे नेताओं ने किया तो उन्होंने पूछा कि ये नेता यह क्यों नहीं बताते कि इनके बच्चों को उन्होंने अंग्रेजी माध्यम से क्यों पढ़ाया है ? सवाल तो ठीक है। लेकिन जगन रेड्डी जैसा जवान नेता भेड़चाल क्यों चलना चाहता है? हमारे सभी नेता बौद्धिक दृष्टि से दिवालिए हैं। हमारे सभी राजनीतिक दल वोट और नोट के गुलाम हैं। उनके सोच को लकवा मार गया है। यदि उनमें अक्ल होती तो 72 साल में भारत की शिक्षा व्यवस्था में क्रांतिकारी परिवर्तन हो जाते।
दुनिया के किसी भी शक्तिशाली और संपन्न देश में बच्चों की शिक्षा का माध्यम विदेशी भाषा को नहीं बनाया जाता है। बच्चों की शिक्षा सर्वश्रेष्ठ माध्यम मातृभाषा होती है। इसका अर्थ यह नहीं कि वे विदेशी भाषा न सीखें। जरुर सीखें और बहुत अच्छी तरह से सीखें।
किसी एक विदेशी भाषा को अपनी मातृभाषा और पितृभाषा का दर्जा देना तो शुद्ध दिमागी गुलामी है। अगर जगनमोहन रेड्डी जैसे युवा नेता खुद को इस गुलामी से मुक्त कर सकें तो अपने बुजुर्ग नेताओं को वे उल्टी पट्टी पढ़ाना बंद कर देंगे। मैं तो चाहता हूं कि जगन-जैसे युवा नेता सरकारी नौकरियों, अदालतों और संसद में थुपी हुई अंग्रेजी की गुलामी से भारत को आजादी दिलाएं।
डॉ. वेदप्रताप वैदिक
लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं, ये उनके निजी विचार हैं