अवसाद की स्थिति चिंताजनक

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अवसाद में आकर आत्महत्या की घटनाओं में वृद्धि चिंताजनक है। ये मानव की ऐसी स्थिति है, जिसमें वह न केवल अपने को खत्म करने का निर्णय कर लेता है बल्कि वह अवसाद में आकर दूसरों को भी नुकसान पहुंचा सकता है। ये भी एक तरह की बीमारी है परंतु इस बीमारी से ग्रसित व्यक्ति या तो स्वयं को समाज से अलग कर लेता है या उसके व्यवहार से समाज के लोग उससे किनारा कर लेते हैं। दोनों ही स्थितियां उचित नहीं है। अवसाद एक बीमारी है इस बीमारी से ग्रसित व्यक्ति को सबल की जरूरत होती है परंतु स्थिति विपरीत है। लोग अवसादित व्यक्ति को सबल देने के बजाय उसके व्यवहारों को लेकर प्रतिक्रिया देने लगते हैं। इससे अवसादी व्यति और भी बीमारी से जकड़ता जाता है। कुछ मामलों को छोड़ दें तो अवसाद के लिए काफी हद तक हम ही जिम्मेदार हैं। खानपान इसके लिए प्रमुख रूप से जिमेदार है। खाने में कुछ वस्तुयें ऐसी हैं जो कि अवसाद का स्तर बढ़ाती हैं। इसमें कुछ डिम्बाबन्द फलों के रस भी हैं जिनमें ऐसे रसायन मिलाये गये होते हैं जिससे तनाव, अवसाद में वृद्धि होती है, खाने में सोड़ा, अल्कोहल, सफेद ब्रेड व कैचप भी अवसाद में वृद्धि करते हैं। इसके साथ ही इन वस्तुओं का लम्बे समय तक सेवन किया जाए तो व्यक्ति के अवसाद में जाने की संभावना बढ़ जाती है।

अवसाद के लिए भागदौड़ की जिन्दगी भी काफी हद तक जिम्मेदार है। जिन्दगी में काम के दबाव ने रहन-सहन को अनियमित कर दिया है। न सोने का समय है और न ही जागने का निश्चित समय। यहां तक कि परिवार वालों के लिए भी समय नहीं है। अपनी इच्छाओं की पूर्ति व आर्थिक दबाव के चलते लोग अपनी जीवन शैली की तरफ ध्यान नहीं दे पाते और धीरे-धीरे अवसाद की जद में कब आ जाते हैं उन्हें पता ही नहीं चलता। उन्नति के लिए महत्वाकांक्षा होना जरूरी है परंतु इसकी सीमा नियत होनी चाहिए। लेकिन सब कुछ पा लेने व ऐश्वर्य की जिन्दगी जीने के लिए लोग सीमा से परे जाकर अति महत्वाकांक्षी हो जाते हैं। जब महत्वाकांक्षा पूरी नहीं होती तो अवसाद अपने आगोश में ले लेता है। मनोवैज्ञानिकों के अनुसार अवसाद के तीन स्तर होते है जिनमें प्रथम स्तर अलार्मिंग स्टेज होता है। इसमें व्यक्ति को महसूस तो होता है परन्तु वह इसे नजरन्दाज करता रहता है। दूसरा स्तर माडरेट स्टेज होता है इसमें अवसाद के कारण व्यति के रोजमर्रा की जिंदगी पर प्रभाव पडऩे लगता है। तीसरी और अंतिम स्टेज क्रानिक डिप्रेशन का होता है यह अधिक खतरनाक होता है इसमें व्यक्ति मानसिक रूप से टूटने लगता है और धीरे-धीरे आत्महत्या जैसे निर्णय की तरफ जाने की आशंका बढ़ जाती है।

चिकित्सकों का मानना है कि अवसाद का सबसे बड़ा कारण रासायनिक परिवर्तनों के चलते मस्तिष्क में तनाव को नियंत्रित करने में परिवर्तन हो जाता है। कोशिका के स्तर तक तनाव बढऩे से शरीर का तन्त्र अपने ही विरूद्ध काम करने लगता है। डिप्रेशन की दवायें ब्रेन के न्यूरोट्रांसमीटर पर नियंत्रण करती हैं। दवाओं का असर देर से दिखाई देता है। अवसाद के कारण इजाज आदि के उपरान्त देखते हैं कि इस बीमारी की चिकित्सा सुविधायें पर्याप्त नहीं हैं। मेडिकल कॉलेजों में इसके विभाग तो हैं परन्तु वहां काफी भीड़ के चलते चिकित्सक सभी मरीजों पर विशेष ध्यान नहीं दे पाते जबकि इस बीमारी में इसकी नितान्त आवश्यकता होती है। जिला चिकित्सालयों में इसके विशेषज्ञ चिकित्सकों की कमी है। अधिकांश में मनोचिकित्सक नहीं हैं। सभी महानगरों में विक्षिप्त महिलाएं व पुरूष घूमते दिखाई देते हैं। इनकी कोई सुध लेने वाला नहीं है। लावारिस सड़कों पर घूमते रहते हैं। असर ये दुर्घटनाओं के शिकार हो जाते हैं। विक्षिप्त महिलाओं संग हैवानियत हो जाती है। अनेक लावारिस घूमने वाली महिलायें हैवानियत के कारण गर्भवती हो जाती हैं। अपनी विशेष स्थिति के कारण अपराध के बारे में बता भी नहीं पाती। अत: समाज से इन्हें न्याय भी नहीं मिल पाता।

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