सर्वोच्च न्यायलय ने राजनीति को अपराधियों से मुक्त करने का जो आदेश जारी किया है उसका स्वागत है लेकिन वह अधूरा है। यह तो ठीक है कि सभी राजनीतिक दल अपने उम्मीदवारों के अपराधों का विस्तार से ब्यौरा दें और नामजद करने के 48 घंण्टो में उसे प्रचारित करें या उम्मीदवारी का फार्म जमा करने के दो हफ्ते पहले बताएं। अदालत ने यह नहीं बताया कि वे उस ब्यौरे को कौन से अखबारों और टीवी चैनलों पर प्रचारित करें। यह नियम तो पहले भी था लेकिन उम्मीदवारों ने ऐसे अखबार चुने, जिन्हें बहुत कम लोग देखते हैं। अखबारों में अपने अपराध के विज्ञापन इतने छोटे और चैनलों पर ऐसे वक्त देते जब बहुत कम लोग देखते हैं उनका कोई अर्थ नही होता है। इस बार अदालत ने कहा है कि राजनीतिक दलों को यह भी बताना होगा अपराधी होने के बावजूद फंला उम्मीदवार को क्यों चुना। उसकी योग्यता क्या है और उसकी उपलब्धिया कितनी हैं। यह शर्त निरर्थक है। क्यों कि भारत में किसी भी उम्मीदवार की एक मात्र योग्यता है कि वह 21 साल का हो। अदालत कहती है कि उसमें चुनाव जीतने की योग्यता है यह तर्क नहीं माना जाएगा तो वह यह बताए तो पार्टियां और कौन सी योग्यताओं को देखे अपने उम्मीदवार तय करते हुए।
चुनाव जीतने के लिए पैसा, जाति, धर्म , झूठे वादे नफरत आदि अपने आप में योग्यता बन जाते हैं यदि कोई पार्टी किसी उम्मीदवार की हवाई योग्यताओं की या उपलब्धियों का फर्जी ब्यौरा दे तो चुनाव आयोग और अदालत क्या कर सकती है। अदालत कहती है कि यदि यह ब्यौरा निश्चित अवधि में कोई पार्टी न दे तो चुनाव आयोग मानहानि का मुकदमा दायर कर सकती है । अदालत ने यह नही बताया ऐसे मुकदमों का फैसला कितने दिनों, महीनों या वर्षो में आएगा अधर में लटके हुए चार करोड़ मुकदमों की तरह क्या यह चुनावी मुकदमा भी नहीं लटक जाएगा। चुनाव आयोग यदि किसी उमीदवार या पार्टी का चुनाव चिन्ह जब्त कर ले तो कर लेए उससे वह उनका क्या बिगाड़ लेगा। सारी पार्टियों का तर्क यह होगा कि मुकदमा तो आप किसी पर भी चला सकते हैं। अपराध का आरोप आप किसी पर भी लगा सकते हैं। लेकिन किसी मुकदमे या आरोप से यह सिद्ध थोड़े ही हो जाता है कि वह आदमी अपराधी है। उस उमीदवार कोए जब तक उसका अपराध सिद्ध न हो जाए, कोई अदालत या कोई चुनाव आयोग चुनाव लडऩे से नहीं रोक सकता। इस समय संसद के 43 प्रतिशत सदस्य ऐसे हैं, जिन पर अपराधिक मुकदमे चल रहे हैं। मैं पूछता हूं कि पार्टियों ने ऐसे उमीदवारों का चुना ही क्यों? यदि देश में लाखों लोगों को विचाराधीन कैदी अंडरट्रायल प्रिजनर्स की तरह बरसों जेलों में बंद रखा जा सकता है तो संगीन अपराधी नेताओं की उमीदवारों को रद्द क्यों नहीं किया जा सकता।
डा. वेदप्रताप वैदिक
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं ये उनके निजी विचार हैं)