हार ना जीत बस शुरुआत

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हार न जीत बस एक नई शुरुआत। यही है विविधता से परिपूर्ण भारत जैसे देश के लिए अयोध्या विवाद पर आए इस फैसले का सन्देश। सात दशक तक चली कानूनी लड़ाई, चालीस दिन तक लगातार सुनवाई के बाद अयोध्या विवाद पर सुप्रीम कोर्ट का बहुप्रतीक्षित फैसला आ ही गया। राजनीतिक रूप से संवेदनशील राम जन्मभूमि-बाबरी मस्जिद विवाद पर सुप्रीम कोर्ट के पांच जजों की पीठ ने सर्वसम्मति से ऐतिहासिक फैसला सुनाया। निर्मोही अखाड़े के दावे को खारिज करते हुए रामलला विराजमान और सुन्नी वक्फ बोर्ड को ही पक्षकार माना। टॉप कोर्ट ने इलाहाबाद हाई कोर्ट द्वारा विवादित जमीन को तीन पक्षों में बांटने के फैसले को अतार्किक करार दिया। आखिर में सुप्रीम कोर्ट ने रामलला विराजमान के पक्ष में फैसला सुनाया। कोर्ट ने साथ में यह भी आदेश दिया कि सुन्नी वक्फ बोर्ड को अयोध्या में ही कहीं और 5 एकड़ जमीन दी जाए। यह भी आदेश दिया कि वह मंदिर निर्माण के लिए 3 महीने में ट्रस्ट बनाए। इस ट्रस्ट में निर्मोही अखाड़े को भी प्रतिनिधित्व दिया जाए।

अयोध्या विवाद पर सुप्रीम कोर्ट के फैसले को लेकर एआईएमआईएम के नेता असदुद्दीन ओवैसी ने असहमति जताई है। फैसले को लेकर ओवैसी ने कहा कि मेरी निजी राय है कि हमें मस्जिद के लिए 5 एकड़ की जमीन के ऑफर को खारिज कर देना चाहिए। अपने तीखे बयानों के लिए चर्चित ओवैसी ने कहा कि सुप्रीम कोर्ट सुप्रीम जरूर है, लेकिन इनफिलेबल यानी अचूक नहीं है। हैदराबाद से सांसद ओवैसी ने कहा कि मेरा सवाल है कि यदि 6 दिसंबर, 1992 को मस्जिद न ढहाई जाती तो क्या सुप्रीम कोर्ट का यही फैसला होता। ओवैसी के बाद भी जब तक दुनिया कायम रहेगी, तब तक इस मुल्क में हम बाइज्जत शहरी थे और रहेंगे। हम अपनी कौम को बताते जाएंगे कि 500 साल से यहां मस्जिद थी, लेकिन 6 दिसंबर, 1992 को गिरा दी गई। संघ परिवार ने कांग्रेस की साजिश की मदद से ऐसा किया। जाहिर है ओवैसी साहब को यह तफरके का रास्ता सूट करता है इसलिए उन्हें तो यह बोलना ही था। उन्हें अपने हार्डलाइनर होने का फायदा भी मिलता दिख रहा है। अभी हाल के उपचुनाव में ओवैसी की पार्टी ने कई राज्यों में अपनी निर्णायक उपस्थिति का अहसास कराया है।

बिहार और यूपी को विशेष तौर पर गिनाया जा सकता है। यह पार्टी बिहार में एनडीए पर भारी पड़ी है। यूपी में कांग्रेस से मुस्लिम बहुल सीटों पर आगे रही है। यह सेकुलर पार्टियों के लिए भविष्य के लिहाज से खतरे की घंटी है। यही वजह है एसपी ,बीएसपी और कांग्रेस जैसी पार्टियां हैरत में है कि यह क्या हो रहा है। एक अर्से से ओवैसी की पार्टी एआईएमआईएम की कोशिश सिर्फ एक खास तबके के इर्दगिर्द राजनीति करके अपना स्पेस बनाने की है जिससे देर- सवेर मुस्लिमो की सिरमौर पार्टी के रूप में चिन्हित हो सके। यही वजह है कि पार्टी के निशाने पर सेकुलर पार्टिया रहती हैं। वैसे इस सबके बीच राहत की बात है कि भारतीय मानस हर हाल में समावेशी और धीरज से समृद्ध है।अयोध्या पर आये ऐतिहासिक फैसले के बाद देश का मिजाज पहले जैसा है। कहीं से कोई अप्रिय सूचना नहीं है यह बड़ी बात है। भले ही कुछ ताकतें बदलाव के इस मौके को एक अवांछित रंग देने की कोशिश करें लेकिन लोग भविष्य गढऩे की सोच रहे हैं यह महत्वपूर्ण है।

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