हाथरस केस : सीबीआई पर भरोसा कायम

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मृत्यु पूर्व दिए गए बयान को आधार मानते हुए सीबीआई ने हाथरस कांड के आरोपियों के खिलाफ न्यायालय में आरोप पत्र दाखिल किया। पुलिस के दावे को नकारते हुए माना कि बिटिया के साथ सामूहिक दुष्कर्म हुआ था। जांच एजेंसी ने भारतीय साक्ष्य अधिनियम की धारा 32 को आधार मानते हुए हाथरस अनुसूचित जाति जनजाति विशेष न्यायालय में चारों अभियुतों संदीप, लवकुश, रवि और राजकुमार उर्फ रामू के खिलाफ हत्या की धारा 302 दुष्कर्म की धारा 376 सामूहिक दुष्कर्म धारा 376 डी और दुष्कर्म के कारण मौत या शरीर विकृत होने की धारा 376 ए के अलावा अनुसूचित जाति जनजाति अत्याचार निवारण अधिनियम की धाराओं के तहत लगभग दो हजार पेज का आरोप पत्र दाखिल किया है। दाखिल आरोप पत्र और आरोपियों के खिलाफ जिन धाराओं में आरोप पत्र दाखिल किया गया है उसमें अधिकतम सजा मृत्यु दंड है। सीबीआई ने हाथरस चर्चित सामूहिक दुष्कर्म व हत्या के मामले की जांच अटूबर में अपने हाथ में ली थी 67 दिन तक चली जांच जिसमें हाथरस की बिटिया के साथ हुए सामूहिक दुष्कर्म और हत्या के चारों आरोपियों के पॉलीग्राफ और बीआईओ प्रोफाइल जांच गुजरात के गांधीनगर से कराई थी।

सीबीआई द्वारा जवाहरलाल नेहरू मेडिकल कॉलेज एंड हॉस्पिटल के डॉक्टरों से भी बातचीत की थी। इसी अस्पताल में पीडि़ता का इलाज भी हुआ था। दलित वर्ग की इस बिटिया के साथ हुए सामूहिक दुष्कर्म और हत्या के मामले को लोगों ने गंभीरता से लेते हुए धरना प्रदर्शन करके शासन प्रशासन को सचेत किया था। राजनीतिक दल भी इस घटना में आगे आकर बिटिया और उसके परिवार को न्याय की मांग कर रहे थे। प्रिंट मीडिया और इलेट्रॉनिक मीडिया ने भी पल-पल की खबर देकर हाथरस के गांव का लाइव प्रसारण भी किया था। इस घटना से पूर्व दिल्ली में पैरामेडिकल की छात्रा के साथ दुष्कर्म की घटना घटी थी और उसको देश की जनता ने धरना प्रदर्शन करके दरिंदों को फांसी दिलाने की मांग की थी। उसी सार्वजनिक आवाज के तहत सामूहिक दुष्कर्म करने वालों के खिलाफ एट भी बनाया गया है। पैरामेडिकल की छात्रा के साथ हुई घटना जिसमें बहुत प्रयास करने के बावजूद भी उस छात्रा को नहीं बचाया गया था उसके आरोपियों को सजा-ए- मौत न्यायालय द्वारा हो गई है। उसी पुनरावृति को दोहराते हुए उत्तर प्रदेश के हाथरस के गांव के एक दलित परिवार की युवती के साथ गांव के ही चार लोगों ने सामूहिक दुष्कर्म किया था इसमें पुलिस की कार्यशैली संदेह और संतोषजनक नहीं रही थी।

इस घटना के बाद प्रदेश सहित देश के अन्य राज्यों से भी दलित वर्ग की इस बिटिया के साथ हुए दुष्कर्म और हत्या के मामले ने जोर पकड़ लिया। प्रदर्शन आंदोलन भी किए गए उत्तर प्रदेश उच्च न्यायालय ने स्वयं संज्ञान उक्त मामले में लिया था। न्यायालय में दाखिल आरोपपत्र के मुताबिक सीबीआई एजेंसी में 80 लोगों से उत मामले में पूछताछ की है सीबीआई को ऐसे सबूत नहीं मिल सके जिसमें चारों अपराधियों को निर्दोष साबित हो सके। आरोपियों ने इस सामूहिक दुष्कर्म और हत्या के मामले को ऑनर किलिंग की ओर मोडऩे की भी कोशिश की थी इसीलिए परिजनों ने मांग की थी कि यह मामला सीबीआई को सौंप दिया जाए. सीबीआई ने 67 दिन तक सभी पहलुओं पर जांच की 80 लोगों से अलग-अलग तरीके से पूछताछ के बाद सीबीआई ने पीडि़ता के बयान को अहम आधार मानते हुए चारों अपराधियों के खिलाफ न्यायालय में आरोप पत्र दाखिल कर दिया। देश की एजेंसियों में आज भी लोगों की आस्था और विश्वास सीबीआई पर बना हुआ है इसलिए संगीन अपराधों गुत्थी को सुलझाने के लिए और अपराधियों को सजा दिलाने के लिए आखिर में पीडि़त पक्ष मामले को सीबीआई को देने की की मांग कर रहा था।

हाथरस कांड के अपराधियों के खिलाफ दो हजार पृष्ठों का जो आरोप पत्र दाखिल किया गया है इससे सीबीआई के प्रति लोगों की आस्था और विश्वास बढ़ता नजर आ रहा है। चर्चाओं में सीबीआई के कार्य की सराहना भी लोग कर रहे हैं। अब सवाल यह उठता है कि सीबीआई ने चारों अपराधियों के खिलाफ जिन धाराओं में आरोप पत्र अनुसूचित जाति जनजाति अत्याचार निवारण विशेष न्यायालय में दाखिल किया है। अब उस पर अभियोजन पक्ष इस मामले को किस प्रकार लेकर अपने पक्ष को मजबूती से न्यायालय के सम्मुख रखता है और पीडि़त परिवार को न्याय दिलाकर चारों आरोपियों को सजा दिलाता है। यह अभी भविष्य के गर्भ में है लेकिन यह कहना न्याय संगत होगा कि अपराध और अपराधी को उसके द्वारा किए गए अपराध की सजा मिलनी ही चाहिए। अब सीबीआई का कार्य पूरा होने के बाद परिवार और लोगों की निगाह न्यायालय और अभियोजन पक्ष की ओर लगी हुई है कि वह साक्ष्य को अपराधियों को सजा दिलाने के लिए कितनी मजबूती से न्यायालय में पेश करता है?

जगतपाल सिंह
(लेखक स्तंभकार और एडवोकेट हैं ये उनके निजी विचार हैं)

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