हर काम में सांसद माहिर!

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हम तोताराम के प्रश्नों से परेशान हो जाते हैं, लेकिन वैसे नहीं जैसे किसी की कुछ भी न सुनते हुए, अपनी-अपनी ही कहे जाने वाले नेताओं से या सस्ते रूम दिलाने वाले ट्रिवागों के विज्ञापन वाले लड़के से जो किसी भी कार्यक्रम के बीच में टपक पड़ता है। पश्न ही संवाद और समाधान की राह है। प्रश्न ही ज्ञान की राह भी है। प्रश्न से ही शिष्य और गुरु दोनों सीखते हैं। तोताराम का प्रश्न था – मास्टर, लोग सासंद क्यों बनते हैं? हम क्या उत्तर देते? हा- जैसे हम पेट के लिए मास्टर बने वैसे ही लोग सांसद बनते होंगे। बोला- ठीक है। तू इससे अधिक के लायक था भी नहीं। वे तो आज से साठ वर्ष पहले के अच्छे दिन थे जो मास्टरी मिल गई। आज होता तो पांच हजार पए महीने में प्राइवेट स्कूल में या संविदा पर मास्टरी कर रहा होता। सेवा के काम को पेट से जोडक़र माननीयों की महानता को कम मत कर। यदि पेट पालन की ही बात होती तो गोयल, जेटली और योगीजी जैसे लोग सांसद क्यों बनते? हमने कहा- क्या कहें?

योगीजी के चुनावों के दौरान और कल ही प्रज्ञाजी के स्टेटमेंट से यह तो बताया जा सकता है कि कुछ लोग सांसद क्यों नहीं बने? योगीजी ने 2019 के चुनावों में चुनाव आयोग द्वारा उनके बोलने पर पर दो दिन का प्रतिबन्ध लगाए जाने पर कहा था- हम चुप रहने के लिए राजनीति में नहीं आए हैं। मतलब बोलने के लिए सांसद बनना ज़रूरी है। तभी सासंद या मंत्री बनने के बाद व्यक्ति बात, बिना बात बकर- बकर बोले ही चला जाता है। यदि न बोले तो ये मीडिया वाले उसे बोलने के लिए मज़बूर कर देते हैं। तोताराम ने कहा- सांसद भी दो तरह के होते हैं। कुछ बनते हैं कुछ बनाए जाते हैं जैसे साध्वी प्रज्ञा ने कहा- हमें शौचालय साफ करने के लिए सांसद नहीं बनाया गया। हम जिस काम के लिए बनाए गए हैं उसे पूरी ईमानदारी से करेंगे। मतलब प्रज्ञाजी तो अध्यात्मिक चिंतन और भगवद्भक्ति में लीन रहना चाहती थीं लेकिन देश के कल्याण के लिए मोदीजी ने उनसे आग्रह किया कि वह सांसद बनें। तभी उन्होंने कहा कि हमें शौचालय साफ करने के लिए सांसद नहीं बनाया गया है।

मतलब कि वे बनीं नहीं उन्हें बनाया गया है। सच है सीधे-सादे संतों को चतुर लोग बनाते हैं। इन्हें भी बना दिया गया। हमने पूछा- लेकिन किस लिए बनाया ? बोला- इस बारे में तो खुद साध्वीजी भी स्पष्ट नहीं हैं । हिडन एजेंडा सबको पता भी नहीं होता। तभी बोलीं- हम जिस काम के लिए बने हैं उसे ईमानदारी से करेंगे। जिस काम के लिए बनाया गया है जब उसका पता चल जाएगा तब उसे ईमानदारी से करेंगे। लेकिन यह तय है कि वह शौचालय साफ़ करने के लिए नहीं बनीं हैं। हो सकता है जिनका काम शौचालय साफ़ करना हो उनसे उनका काम करवाने के लिए इन्हें सांसद बनाया गया हो। हमने कहा- यदि प्रज्ञाजी साध्वी नहीं बनतीं तो भी ‘सिंह’ मतलब क्षत्रिय तो थीं ही और शौचालय साफ़ करना न तो क्षत्रियों का काम है और साध्वियों का। बोला- लेक न गांधीजी तो कहते थे कि मैं अगले जन्म में भंगी बनना चाहता हूं जिससे उनकी पीड़ा का वास्तव में अनुभव कर सकूं। महाराष्ट्र के ब्राह्मण परिवार में जन्मा विजय दीवान गांधीजी के इसी दर्शन के तहत मरी गायों की खाल उतारता है। हमने कहा- ऐसे फालतू नाटकों के कारण ही तो गांधी इनकी गुडबुक्स में नहीं हैं।

रमेश जोशी
(लेखक वरिष्ठ व्यंगकार हैं ये उनके निजी विचार हैं)

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