हम कैसे रामभक्त हैं ?

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अयोध्या में राम मंदिर का शिलान्यास होनेवाला है, यह एक बड़ी खुश-खबर है। सर्वोच्च न्यायालय के फैसले को सभी पक्षों ने मान लिया है, यह भारत के सहिष्णु स्वभाव का परिचायक है लेकिन राम मंदिर बनानेवाला हमारा यह वर्तमान भारत क्या राम चरित का अनुशीलन करता है ? हमारे नेताओं ने राम मंदिर बनाने पर जितना जबर्दस्त जन-जागरण किया, क्या उतना जोर उन्होंने राम की मर्यादा के पालन पर दिया ? मर्यादा पुरुषोत्तम राम को भगवान बनाकर हमने एक मंदिर में बिठा दिया, वहां जाकर घंटा-घड़ियाल बजा दिया और प्रसाद खा लिया। बस इतना ही काफी है। हम हो गए रामभक्त ! पूज लिया हमने राम को ! यहां मुझे कबीर का वह दोहा याद आ रहा है, जिसमें उन्होंने कहा है कि ‘जो पत्थर पूजे हरि मिले तो मैं पूजूं पहाड़।’ राम के चरित्र को अपने आचरण में उतारना ही राम की सच्ची पूजा है।

सीता पर एक धोबी ने उंगली उठा दी तो राम ने सीता को अग्नि-परीक्षा के लिए मजबूर कर दिया ? क्यों कर दिया? क्योंकि राजा या रानी या राजकुमारों का चरित्र संदेह के परे होना चाहिए। सारे देश या सारी प्रजा या सारी जनता के लिए वे आदर्श होते हैं। यही सच्चा लोकतंत्र है। लेकिन हमारे नेताओं का क्या हाल है ? धोबी की उंगली नहीं, विरोधी पहलवानों के डंडों का भी उन पर कोई असर नहीं होता। देश के बड़े से बड़े नेता तरह-तरह के सौदों में दलाली खाते हैं, उन पर आरोप लगते हैं, मुकदमे चलते हैं। और वे बरी हो जाते हैं। नेताओं की खाल गेंडों से भी मोटी हो गई है। राम ने दशरथ की वचन-पूर्ति के लिए सिंहासन त्याग दिया और वन चले गए लेकिन आज के राम दशरथों को ताक पर बिठाकर सिंहासनों पर कब्जा करने के लिए किसी से भी हाथ मिलाने को तैयार हैं।

वनवासी राम ने किस-किसको गले नहीं लगाया ? उन्होंने जाति-बिरादरी, ऊंच-नीच, मनुष्य और पशु के भी भेदभावों को पीछे छोड़ दिया लेकिन राम नाम की माला जपनेवाले हमारे सभी नेता क्या करते हैं ? इन्हीं भेदभावों को भड़काकर वे चुनाव के रथ पर सवार हो जाते हैं। वे कैसे रामभक्त हैं ? राम ने लंका जीती लेकिन खुद उसके सिंहासन पर नहीं बैठे। न ही उन्होंने लक्ष्मण, भरत या शत्रुघ्न को उस पर बिठाया। उन्होंने लंका विभीषण को सौंप दी। लेकिन हमारे यहां तो परिवारवाद का बोलबाला है। सारी पार्टियां मां-बेटा पार्टी या भाई-भाई पार्टी या बाप-बेटा पार्टी या पति-पत्नी पार्टी बन गई हैं। राम ने राजतंत्र को लोकतंत्र में बदलने की कोशिश की लेकिन हम रामभक्त हिंदुस्तानी लोकतंत्र को परिवारतंत्र में बदलने पर आमादा हैं !

डा.वेदप्रताप वैदिक
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं, ये उनके निजी विचार हैं)

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