स्किल डवेलपमेंट की क्लास लगानी पड़ेगी…

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आज तोताराम ने आते ही हमारे सामने एक विश्वसनीय अखबार का ताजा अंक पटकते हुए कहा – क्या मास्टर, इस देश में हर चीज का स्तर गिरता जा रहा है। हमने कहा-बन्धु, सत्ता के लालच में व्यक्ति को उचित-अनुचित का ध्यान नहीं रहता। वह अपना पद, गरिमा सभी को भूलकर गली के उचक्के और थर्ड क्लास गुंडे की तरह गाली-गलौज, घटिया मजाक और फिकरों पर उतर आता है। वह इसी में अपनी विजय देखता है। यह नहीं समझता कि देश और समाज का कितना वैचारिक नुकसान हो रहा है। उसे आदर्श मानने वाले युवा जल्दी ही इस घटिया स्तर और भाषा को अपना लेते हैं। शक्ति और पद मिलने पर व्यक्ति को और विनम्र होना चाहिए लेकिन लोग हैं कि जितने बड़े पद पहुंचते हैं, अपनी औकात का उतना ही भोड़ा प्रदर्शन करते हैं।।

तोताराम ने हमारे पैर पकड़ते हुए कहा- प्रभु यह क्या नेता जी की तरह जैसे ही मंच और माइक देखा नहीं कि शुरु हो गए-भाइयों, बहनों। मैं विधानसभा चुनावों की बात नहीं कर रहा हूं। जहां भारतीयता का तो कोई प्रशन ही नहीं बल्कि सामान्य शिष्टाचार तक का ध्यान नहीं रखा जा रहा है। चुनाव में जीत समाज की समरसता और सौहार्द से बड़ी नहीं होती। जब समाज में प्रेम-भाव ही नहीं रहेगा तो क्या चाटोगे कुर्सी को? चुनावों का क्या है? हर 5 साल में तो आ ही जाते हैं। यदि लूट के माल के बंटवारे में सहमति नहीं बनी तो चुनाव पहले भी हो सकते हैं, लेकिन लोगों में एक दूसरे के प्रति घृणा और शक पैदा हो गए तो सदियों लगती हैं, घाव भरने में।।

मैं नेताओं के स्तर की नहीं बल्कि समाज में अपराध के गिरते स्तर के बारे में कह रहा था। समाचार दे, चूरू जिले के बीदासर कस्बे के एक पेट्रोल पम्प के कर्मचारी पिता-पुत्र दो दिन का कलेक्शन 20 लाख रुपये बैंक में जमा कराने जा रहे थे। रास्ते में मोटर साइकिल सवारों ने उसकी आखों में मिर्ची झोककर रुपये लूट लिए। हमने कहा- तुम्हारे शब्दों में लगता है कि तुम्हें लूट से अधिक दुःख लूट के तरीके के कराण है। लूट तो लूट है। किसी भी तरीके से की जाए। इस तरीके में भी क्या बुराई है? पहले तो लोग आंखों में धूल झोंककर लूट लेते थे। धूल तो मुफ्त में आती है। मथानिया की असली मिर्ची 100 रुपये किलो से भी मंहगी आती हैं। इस साहब से तो स्तर गिरा कहां? बोला – मेरे कहने का मतलब यह नहीं था। अपराधियों में कुछ संवेदनशीलता तो होनी ही चाहिए। मुझे पता है मिर्च से आंखें खराब हो सकती हैं। कितनी दर्द होता? आखिर पीड़ितों के भी तो कोई मानवाधिकार होते हैं कि नहीं? क्या आंखें फोड़ना? हमने कहा-तुम्हारे अनुसार क्या होना चाहिए? इस पुण्य-कार्य को किस प्रकार किया जाए? बोला -एक क्या अनेक तरीके हैं। प्रचीन काल पर नजर दौड़ा। इंद्र अपना सिंहासन बचाने के लिए कभी किसी ऋषि-मुनि पर हथियारों का प्रयोग नहीं करता था। एक सुन्दर सी अप्सरा भेज दी। वही आती थी, नाचती थी, तपस्वी को रिझाती थी। किसी को कोई कष्ट नहीं होता था और मजे मजे में इंद्र का काम हो जाता था। जब तक मुनि को होश आता तब तक तो जमानत जब्त हो चुकी होती थी। कितना सौम्य और शालीन तरीका था। हमने कहा – आज की बात कर। बोला आज भी तरीकों की कौन सी कमी है? जी.एस.टी लागू करके लूटा जा सकता था, काले धन के बहान नोटबंदी करके लूटा जा सकता था, 15 लाख खातों में भेजने के नाम पर लूटा जा सकता था, जुमलों से लूटा जा सकता था, धर्म के नाम पर दंगे करवाकर लूटा जा सकता था, गौ-रक्षा या गौ-मांस के नाम पर लूटा जा सकता था। यह क्या कि बेचारे पिता-पुत्र की आंखों में मिर्च ही झोंक दी। नासमझ युवक। इनकी स्किल डिवेलपमेंट की क्लास लगानी पड़ेगी।।

   लेखक
रमेश जोशी

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