सुस्ती से कैसे निकलेगी जीडीपी ?

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अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष (आईएमएफ) ने 20 जनवरी को चालू वित्त वर्ष की अनुमानित जीडीपी विकास दर 6.1 प्रतिशत से घटाकर 4.8 प्रतिशत कर दी है। उसने आने वाले सालों के लिए भी विकास दर अनुमान को कम किया है। आईएमएफ के अनुसार, भारत की जीडीपी वृद्धि दर विा वर्ष 2020-21 में 5.8 प्रतिशत और 202122 में 6.5 प्रतिशत रहेगी। सरकार का कहना है कि भारत की सुस्ती की वजह बाहरी माहौल में है, लेकिन इसके उलट आईएमएफ का मानना है कि भारत में जीडीपी वृद्धि दर कम होने के चलते विश्व अर्थव्यवस्था की सुस्ती बढ़ रही है। जारी विा वर्ष में नॉमिनल जीडीपी (यानी मौजूदा बाजार मूल्यों पर आधारित जीडीपी) दर में भी कमी आने के आसार हैं। इस साल यह 7.5 प्रतिशत रह सकती है, जो बीते 42 सालों में सबसे निचला स्तर होगा। पिछले विा वर्ष में नॉमिनल जीडीपी 11.2 प्रतिशत थी। वित्त वर्ष 2018-19 के मुकाबले 2019-20 में खनन, सार्वजनिक प्रशासन और रक्षा क्षेत्र के अलावा बाकी सभी क्षेत्रों में कम वृद्धि होने के आसार हैं।

कृषि और संबद्ध क्षेत्रों में इस साल 2.8 प्रतिशत की दर से वृद्धि होने की संभावना है, जबकि पिछले साल समान अवधि में इसमें 2.9 प्रतिशत की दर से वृद्धि हुई थी। कृषि, सहकारिता और किसान कल्याण विभाग द्वारा जारी मौजूदा विा वर्ष के लिए सभी खरीफ फसलों का उत्पादन अनुमान 1405.7 लाख टन है, जबकि पिछले विा वर्ष में सभी खरीफ फसलों का उत्पादन 1415.9 लाख टन हुआ था। उद्योग में इस साल 2.5 प्रतिशत की दर से वृद्धि हो सकती है, जबकि पिछले साल इस क्षेत्र में 6.9 प्रतिशत की दर से वृद्धि हुई थी। उद्योग में खराब प्रदर्शन का कारण इसके सभी उप-क्षेत्रों का प्रदर्शन खराब होना है। विनिर्माण क्षेत्र (मैन्युफैक्चरिंग) में इस साल 2.5 प्रतिशत की दर से वृद्धि हुई है, जबकि पिछले साल इस क्षेत्र में 6.9 प्रतिशत की दर से वृद्धि हुई थी। इसी तरह निर्माण क्षेत्र (कॉन्स्ट्रक्शन) में इस साल 3.2 प्रतिशत की दर से वृद्धि होने का अनुमान है, जबकि पिछले साल यह 8.7 प्रतिशत दर्ज की गई थी। सेवा क्षेत्र में इस साल 6.9 प्रतिशत की दर से वृद्धि होने का अनुमान है, जबकि पिछले साल इस क्षेत्र में 7.5 प्रतिशत की दर से वृद्धि हुई थी।

इसके उपखंडों जैसे, वित्त, रीयल एस्टेट और व्यावसायिक सेवाओं की वृद्धि दर 6.4 प्रतिशत रहने का अनुमान है, जबकि पिछले साल इनमें 7.4 प्रतिशत की वृद्धि देखने को मिली थी। इस साल वर्ष दर वर्ष के आधार पर और स्थिर मूल्य के आधार पर अंतिम उपभोग व्यय में 6.5 प्रतिशत की दर से बढ़ोतरी होने का अनुमान है, जबकि बीते साल इसमें 8.3 प्रतिशत की दर से वृद्धि हुई थी। निजी अंतिम उपभोग व्यय में इस साल 5.8 प्रतिशत की दर से वृद्धि होने का अनुमान है, जबकि पिछले साल इसमें 8.1 प्रतिशत की दर से वृद्धि हुई थी। मौजूदा वित्त वर्ष में वर्ष दर वर्ष के आधार पर सरकारी अंतिम उपभोग व्यय में 10.5 प्रतिशत की दर से वृद्धि होने का अनुमान है, जबकि पिछले साल इसमें 9.2 प्रतिशत की दर से वृद्धि हुई थी। अगर मौजूदा विा वर्ष के दौरान साल दर साल के आधार पर कुल अंतिम उपभोग की बात करें तो दूसरी छमाही में इसमें 6 प्रतिशत की दर से वृद्धि होने का अनुमान है, जो राशि में 48.96 लाख करोड़ रुपये है। पहली छमाही में इसमें 8 प्रतिशत की दर से वृद्धि हुई थी, जो राशि में 52.48 लाख करोड़ रुपये थी।

साल की दूसरी छमाही में निजी अंतिम उपभोग व्यय में 7 प्रतिशत की दर से वृद्धि होने का अनुमान है, जबकि पहली छमाही में इसमें 4 प्रतिशत की दर से वृद्धि हुई थी। दोनों छमाहियों के बीच निजी उपभोग का बढऩा दिखाने वाला यह आंकड़ा सकारात्मक है, लेकिन इस विा वर्ष में जीडीपी के समग्र विकास में सबसे महत्वपूर्ण भूमिका सरकारी अंतिम उपभोग व्यय की रही है। ठोस तौर पर, चालू विा वर्ष की दूसरी तिमाही में हुई कुल वृद्धि में सरकारी खर्च का योगदान 40 प्रतिशत का रहा। दूसरे शब्दों में कहें तो दूसरी तिमाही में जीडीपी में 4.5 प्रतिशत की दर से वृद्धि हुई थी, जिसमें सरकारी अंतिम उपभोग व्यय का योगदान 1.9 प्रतिशत था। उपलब्ध मासिक आंकड़ों के अनुसार केंद्र सरकार द्वारा किए जाने वाले व्यय में ब्याज भुगतान को छोड़कर नवंबर महीने से लगातार वृद्धि हो रही है। अगले विा वर्ष में नॉमिनल जीडीपी विकास दर 10 प्रतिशत की दर से आगे बढऩे के अनुमान के आधार पर कहा जा सकता है कि विा वर्ष 2020-21 के लिए लक्षित विाीय घाटा 3.5 प्रतिशत रह सकता है, जो राशि में 7.9 लाख करोड़ रुपये हो सकता है।

आगामी साल के लिए सकल उधारी लगभग 8 लाख करोड़ रुपये और राज्य सरकारों की उधारी लगभग 8 लाख करोड़ रुपये हो सकती है। इस प्रकार कुल उधारी लगभग 15 लाख करोड़ रुपये हो सकती है। सन 2025 तक 5 ट्रिलियन अमेरिकी डॉलर का जीडीपी लक्ष्य हासिल करने के लिए मौजूदा विा वर्ष में लगभग 3.2 ट्रिलियन डॉलर यानी लगभग 225 लाख करोड़ रुपये का जीडीपी लक्ष्य हासिल करना होगा, हालांकि, केंद्रीय सांयिकी संगठन (सीएसओ) ने अनुमान 204 लाख करोड़ रुपये का ही लगाया है। इस अनुमान को पूरी तरह हकीकत में बदल दिया जाए तो भी लक्ष्य को ध्यान में रखते हुए लगभग 21 लाख करोड़ रुपये का अंतर रह ही जाएगा। नॉमिनल जीडीपी में देखी जा रही मौजूदा वृद्धि दर को लगातार जारी रखा जा सके तो भी सन 2025 तक नॉमिनल जीडीपी 4.5 से 4.7 ट्रिलियन डॉलर ही रह सकता है। लेकिन वास्तविक जीडीपी के लिए इसमें से मुद्रास्फीति के आंकड़े कई बार घटाने होंगे। अमेरिका और ईरान के बीच जारी तनाव से मुद्रास्फीति बढऩे की आशंका बनी हुई है, जो एक अनुमान के मुताबिक 6.8 प्रतिशत तक जा सकती है। विकास की राह में यह एक प्रमुख रोड़ा है।

सतीश सिंह
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं ये उनके निजी विचार हैं)

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