कहते है मनुष्य और पशु-पशियों पर ही नहीं निजींवों तक पर संगीत का प्रभाव पड़ता है और यदि मीका सिंह जैसा मधुर संगीत हुआ तो फसल उजाड़ने आए जंगली जानवर तक भाग जाते हैं। संगीत की विशेष समझ के कराण भैंस का नाम भी इससे विशेषरूप से जुड़ा हुआ है। वाद्य यंत्रों में बीन भैंस का प्रिय वाद्य है। वैसे सांप के सामने भी बीन बजाई जाती है, जबकि वैज्ञानिकों के अनुसार सांप सुन नहीं सकता। सुन सकता तो शायद ऐसी भद्दी बीन बजाने के कारण सपेरे को जिंदा नहीं छोड़ता। भैंस वैसे तो बहुत सहनशील प्राणी है लिकन अति सर्वत्र वर्जयेत। अतिशय रगड़ करे जो कोई, अनल प्रकट चन्दन ते होई। प्रदर्शनकारी भैंस को मला पहनाकर लाए और उसके आगे बीन बजाने लगे। इस प्रकार वे प्रशासन द्वारा जनता की पुकार अनसुनी किए जाने के प्रतीक को साकार दिखाना चाहते थे। इस अजिबोगरीब प्रदर्शन को देखकर कार्यकर्ताओं के साथ-साथ राहगीर भी मुस्कुराने लगे। व्यंग्य तो आखिर भैंस भी समझती है। इसलिए अचानक वहां भैंस हिंसक हो गई और कांग्रेस कार्यकर्ताओं पर हमला कर दिया। हमने जब यह किस्सा तोताराम को सुनाया तो बोला-बिलकुल ठीक किया भैंस ने। उसे किसी से क्या लेना है। गाय होती तो फिर भी गौभक्ति के चक्कर में आ जाती लेकिन भैंस का तो खरा खेल है फरुखाबादी। जब तक दूध देती है तब तक मालिक खिलाता है। यदि फायदे का सौदा नहीं होता तो कसाई को बेच देता है। इतने लोग घेर लें, भागने का कोई रास्ता न हो और ऊपर से बीन। ऐसे में यह सब तो होना ही था। सभी तो भारत के जनता नहीं होते।
हमने कहा – भैंस का भारत की जनता से क्या संबंध है? बोला – तुझे पूरे समाचार का पता नहीं। बस, पार्टी के वाट्सऐपियों की तरह आधी-अधूरी जानकारी लेकर ट्रोल करने लगता है। हुआ यग कि संगीत सम्मेलन में विवादास्पद समापन के बाद उस भैंस को जब पुलिस के पास ले जाया गया तो पता है उसने क्या कहा? बोली – मैं मैंस हूं। दूध देती हूं तो खिलाने वाला हजार बार झक मारकर खिलाएगा। मैं किसी मनरेगा, जन-धन और भामाशाह कार्ड की मोहताज नहीं हूं। न मुझे कोई ऋण माफ करवाना, न ही नीरव मोदी और विजय माल्या कीतरह अपना कर्ज एनपीए में डलवाना है, न ही चुनाव में पार्टी का टिकट चाहिए और न ही मुझे एनपीआर रजिस्टर में नाम पर जुड़वाना या कटवाना। ‘मन की बात’ बात की तरह भूखे रहकर चुपचाप बीन सुनती रहूंगी, मुझे भारत की अनुशासित जनता समझ रखा है क्या? इतना कहकर तोताराम ने हमारी तरफ सिर, कुछ इस हिंसक तरीके से हिलाया कि हम उछलकर एक तरफ हो गए। हमने कहा- यह क्या? क्यों महिषासुर हुआ जा रहा है?
बोला – एक ही झलक मं हवा खिसक गई। अब उन जीवों के बारे में सोच जो सत्तर साल के नेताओं का ‘बीन-वादन’ सुन रहे हैं। हमने कहा- वे सब निश्चित रूप से या तो बहरे हैं या उन्होंने अपने कानों में रुई ठूंस रखी है या फिर कोम में है।
लेखक
रमेश जोशी