विफलता का जवाब देने वाले दस

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आज बरामदे में बैठे थे कि तोताराम नीले रंग की साइड में पट्टी वाली पजामी, टी शर्ट और कैप लगाए फुदकता हुआ हमारे सामने आ खड़ा हुआ।

हमने पूछा- क्या बात है ? कहीं मोदी जी ने तुझे ‘हम फिट तो भारत फिट’ के तहत कोई चेलेंज तो नहीं दे दिया।

बोला- हमें कोई क्या चेलेंज देगा? हम तो जन्मजात फिट हैं। पिछले साठ सालों से वही 28 इंच का सीना और 47 किलो वजन। किया है किसी ने ऐसा मेंटेन?

हमने कहा- नहीं बन्धु, यह तुम्हारे अलावा किसी और के द्वारा कैसे संभव हो सकता है? नेताओं का वज़न भी विभाग के अनुसार थोड़ा-बहुत घटता-बढ़ता रहता है। चाहो तो ट्विटर पर यह महत्त्वपूर्ण ज्ञान देश के फिटोत्सुक युवाओं से शेयर कर सकते हो।

बोला- मुझे न तो फिट इंडिया से मतलब है और न ही किसी ट्विटर से। मैं तो अगस्त 2021 से टीम इंडिया को क्रिकेट कोचिंग देने की तैयारी कर रहा हूं।

हमने कहा- यह ठीक है कि कल्याण सिंह जी की तरह न तेरा तन टायर और न तेरा मन रिटायर।लेकिन याद रख नेताओं की बात और है। वे तो 100 साल की उम्र में भी कुर्सी की शोभा बढ़ा सकते हैं। कोई चेकिंग न करे तो कुर्सी पर मरा पड़ा हुआ नेता भी भ्रम-भ्रम में दस-बीस दिन निकाल सकता है। क्या क्रिकेट में निर्देशक मंडल का सिद्धांत लागू नहीं है? तुझे पता होना चाहिए क्रिकेट कोई जुमले फेंकने का खेल नहीं है।

बोला- सो तो मुझे भी पता है लेकिन मैं तो रवि शास्त्री और दूसरे अधिकारियों की सैलरी देखकर आकर्षित हो गया हूं।

हमने कहा- लेकिन मुख्य कोच, फील्डिंग कोच और बैटिंग कोच में से कौन-सा काम तेरे वश का है ?

बोला- क्रिकेट में ये तीन काम ही होते हैं क्या? क्रिकेट में हाफ सेंचुरी या सेंचुरी बनाने के बाद दर्शकों की प्रशंसा पर प्रतिक्रिया देनी होती है, छक्का या चौका लगाने के बाद रिएक्शन देना होता है,

विकेट लेने पर हाथ को कुहनी से मोड़कर जोर से भस्त्रिका प्राणायाम जैसा झटका देना होता है, किसी को चिढ़ाना होता है, किसी को गुस्सा दिलाकर विचलित करना होता है, विकेट लेने वाले को हाई-फाई देना होता है, जीरो पर आउट होने पर बैट झटकना या गुस्सा ज़ाहिर करना होता है, कैच छूटने पर भी कई दूर तक फिसल कर दिखाना होता है कि कोशिश में कोई कमी नहीं थी- ऐसे बहुत से काम हैं जो किसी एक के वश के नहीं हैं।

और फिर हार के वाजिब कारण भी तो बताने होते हैं। ये सब काम किसी एक के वश के नहीं हैं। जबकि मैं ये अतिरिक्त काम अच्छी तरह से कर सकता हूं।

हमने कहा- यह बात तो है। जैसे एक काम करने वाला मंत्री होता है तो दस उसकी असफलता का उत्तर देने वाले होते हैं। पता कर ले, हो सकता है तेरे लिए भी ऐसी ही कोई जगह निकल आए।

                   
                रमेश जोशी
लेखक देश के वरिष्ठ व्यंग्यकार और ‘विश्वा’ (अंतर्राष्ट्रीय हिन्दी समिति, अमरीका) के संपादक हैं। ये उनके निजी विचार हैं। मोबाइल – 9460155700
blog – jhoothasach.blogspot.com
Mail – joshikavirai@gmail.com

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