भारतीय जनता पार्टी की राजनीति में हिदुत्व प्रभावशाली रहा है लेकिन अब हमें यह मानना होगा कि हम इस देस को समझने में सक्षम नहीं हैं। हम कहते हैं कि हिन्दुत्व का असर है, कांग्रेस गठबंधन करने में कामयाब नहीं रही। ये थोड़े फीके, अधपके जवाब हैं। यह देश बहुत विशाल है, जहां छोटे-छोटे कस्बे और गांव हैं, यहां तक कि शहरों को भी हम समझ नहीं पा रहे हैं। क्यों नहीं समझ पा रहे हैं? एक तरफ तो आप कह लें कि यह मोदी की जीत है तो दूसरी तरफ विपक्ष को करारी हार भी है। हमें यह आकलन करना होगा कि देश क्या चाहता है? हर जीक एक सीधा तर्क है, जो तर्क हमारे दिमाग में हैं वो फिट नहीं हो रहा, हम जबरदस्ती उसे फिट करना चाहते हैं।
कर्क यह है कि हम सब भारतीय एक शिष्टाचार में विश्वास रखते हैं। हम लालची नहीं है। सहनसील हैं। अहिंसावादी हैं लेकिन सचमुच ऐसा है क्या? हमारा विपक्ष उस विद्यार्थी की तरह जो सिर्फ इम्तहान से पहले पढ़ना शुरू करता है लेकिन राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ यानी आरएसएस कल से ही अगली परीक्षा के लिए पढ़ाई शुरु कर देगा। संघ ने कांग्रेस, समाजवादी पार्टी या बहुजन समाज पार्टी को यह तो नहीं कहा कि आप तैयारी मत करिए। उनके हाथ तो बंधे नहीं हैं, लेकिन मुश्किल यह है कि इन पार्टियों में एक ऐसा तूफान आना जरूरी है कि ये इस तरह सोचें कि हमेशा सिर्फ आरएसएस पर दोष मढ़ने से काम नहीं चलेगा।
संघ कल से ही तैयारियां शुरू कर देगा और 2024 के लिए सीटों की पहचान की जाएगी लेकिन विपक्ष के लोग ढूंढेंगे कि किस पर आरोप मढ़ें या किस वजह से ऐसा हुआ। अब राजनीति का परिप्रेक्ष्य पड़ेगा नहीं तो हम केवल कारण ढूंढ़ते रहेंगे। केवल यह ढूंढ़ते रहेंगे कि किसकी वजह से हुआ? कौन कहता है कि आप हिन्दुत्व जैसा एक काउंटर मिथक नहीं खड़ा करें? हिन्दुत्व एक बहुत शक्तिशाली मिथक हैं लेकिन उसका कारगर जवाब ढूंढना भी तो विपक्ष का काम है। कांउटर नैरेटिव क्या होगा? उसके लिए सोचने वाले लोग चाहिए। ऐसे लोग चाहिए जो इस देश के यथार्थ को जानते हों। इसके लिए सभी राजनीतिक पार्टियों और विपक्ष की जिम्मेदारी होगी लोगों को समझना, जनमानस को देखना होता।
प्रोफेसर ज्योतिर्मय शर्मा
लेखक हैदराबाद विवि में प्रोफेसर हैं, ये उनके निजी विचार हैं