विदेशी कंपनियों के आगे भारतीय राजसत्ता का सरेंडर

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दो साल पुराने पेगासस जासूसी मामले में संसद सत्र के पहले नया खुलासा भले ही गलत राजनीतिक मंशा से किया गया हो, लेकिन इससे अपराध की गंभीरता कम नहीं होती। इसकी पूरी क्रोनोलॉजी समझें तो सरकार के साथ पूरा सिस्टम ही कटघरे में खड़ा दिखता है। सीआईए के इशारे पर डिजिटल कंपनियों द्वारा चलाए गए ऑपरेशन प्रिज्म से भारत समेत कई देशों की जासूसी को सन 2013 में स्नोडेन ने उजागर किया था। भारत की कांग्रेस सरकार समेत अन्य देशों ने जासूसी के अंतर्राष्ट्रीय मामले में अपराधियों को दंडित नहीं किया। इससे गुनाहगारों का हौसला बुलंद होने के साथ, साइबर जासूसी के अंतर्राष्ट्रीय बाजार का आगाज़ हुआ।

इजरायली कंपनी एनएसओ ने पेगासस नाम से ऐसा साइबर ब्रह्मास्त्र विकसित कर दिया, जिसके कारनामों ने पूरी दुनिया में तहलका मचा रखा है। एनएसओ का दावा है कि आतंकवाद के खिलाफ लड़ाई के लिए सिर्फ सरकारी एजेंसियों, पुलिस व सेना को ही पेगासस देती है। भारत सरकार ने पेगासस के इस्तेमाल से मनाही नहीं की है। इसलिए यह मानना तार्किक है कि सरकारी एजेंसियों ने पेगासस इस्तेमाल किया। तीन दशक पहले विपक्षी नेता राजीव गांधी के घर पर पुलिस के दो जवानों की निगरानी के मुद्दे पर चंद्रशेखर सरकार गिर गई। उसके पहले 1988 में टेलीफोन टेपिंग के मामले पर कर्नाटक में हेगड़े की सरकार गिरी। पुराने किस्सों के अंजाम देखते हुए, पेगासस की सरकारी खरीद या वैध इस्तेमाल के तीखे सवाल पर मंत्रियों और प्रवक्ताओं ने होंठ सी रखे हैं।

सन 1885 के जिस क़ानून के दम पर टेलीफोन टेपिंग के सरकारी हक़ की बात हो रही है, वह गुजरे जमाने की बात है। मोबाइल में सेंध लगाने का अधिकार हासिल करने के लिए गृह मंत्रालय ने 20 दिसंबर 2018 को आदेश पारित किया था। इसके तहत भारत सरकार की 9 खुफिया एजेंसियों और दिल्ली पुलिस को इंटरनेट व मोबाइल में जासूसी और सेंधमारी की कानूनी इजाजत मिल गई। दो साल पहले वॉट्सएप ने अमेरिका के कैलिफोर्निया की जिला अदालत में एनएसओ के खिलाफ मुकदमा दायर किया, जिसके बाद भारत में इस मामले पर ट्विटरबाजी शुरू हो गई।

पेगासस जासूसी मामले पर चिंता जाहिर करते हुए तत्कालीन आईटी मंत्री रविशंकर प्रसाद ने 31 अक्टूबर 2019 को ट्वीट करके वॉट्सएप से जानकारी मांगी थी। पेगासस के खिलाफ विदेश में चल रही कानूनी लड़ाई में वॉट्सएप के साथ फेसबुक, गूगल और माइक्रोसॉफ्ट भी शामिल हैं। लेकिन डिजिटल के सबसे बड़े बाज़ार भारत की सरकार, संसद और सुप्रीम कोर्ट, पेगासस के मुद्दे पर ट्राजन हॉर्स सिंड्रोम का शिकार दिखते हैं।

चीनी एप्स बैन करने वाली मजबूत सरकार, 2019 में पेगासस के खुलासे के बाद चुप्पी साध गई। फिर संघ के पूर्व प्रचारक केएन गोविंदाचार्य ने अमेरिकी अदालत में चल रही कार्रवाई का विवरण देते हुए सरकार से वॉट्सएप, एनएसओ व सभी गुनाहगारों के खिलाफ ठोस कार्रवाई की मांग की। सरकार से कोई कार्रवाई नहीं होने पर, गोविंदाचार्य ने सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया। छोटे-छोटे मामलों का स्वतः संज्ञान लेने वाली सर्वोच्च अदालत ने राष्ट्रीय महत्व के इस मामले को सुनवाई के लायक भी नहीं समझा। पेगासस जासूसी कांड में तत्कालीन जजों और उनके स्टाफ का नाम भी उछल रहा है।

इस मामले की न्यायिक जांच की बात भी हो रही है। लेकिन पेगासस के सांहारिक मार से बेपरवाह जज अदालती मामलों में वॉट्सएप जैसे खतरनाक ऐप का धड़ल्ले से इस्तेमाल कर रहे हैं। सरकार और सुप्रीम कोर्ट से निराशा मिलने के बाद, गोविंदाचार्य ने आईटी मंत्रालय की संसदीय समिति के दरवाजे पर दस्तक दी। कांग्रेसी सांसद शशि थरूर की अध्यक्षता वाली समिति में सभी पार्टियों के सांसद हैं। 14 नवंबर 2019 को दिए गए लिखित प्रतिवेदन और उसके बाद व्यक्तिगत स्तर पर विस्तृत प्रेजेंटेशन के बावजूद संसदीय समिति ने भी इस मामले पर चुप्पी साध ली।

अब दो साल बाद दूसरे राउंड के खुलासे के बाद, संसदीय समिति की बैठक 28 जुलाई को फिर से बुलाने की खबर है। सुप्रीम कोर्ट के नौ जजों ने प्राइवेसी के हक पर ऐतिहासिक फैसला दिया था, लेकिन चार सालों से उस पर कानून नहीं बना। इस मामले पर विचार के लिए एक नई संयुक्त संसदीय समिति बनाई गई थी। उस समिति के पांच सांसदों को नए मंत्रिमंडल में मंत्री बना दिया गया, जिसके बाद डेटा सुरक्षा कानून के प्रारूप और भविष्य पर संकट के बादल और ज्यादा गहरा गए हैं।

मोबाइल फ़ोन की जासूसी, लोगों के जीवन के अधिकार से खेलने सरीखा है। सरकार, संसद और सुप्रीम कोर्ट समेत अधिकांश संस्थाएं पेगासस मामले में अपनी संवैधानिक भूमिका के निर्वहन में विफल रहे। लेकिन देश की एकता और अखंडता के इस मामले में ठोस कार्रवाई जरूरी है।

विराग गुप्ता
( लेखक सुप्रीम कोर्ट के वकील हैं ये उनके निजी विचार हैं)

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