कुमारी कन्याओं की पूजन से मिलता है मां जगदम्बा का आशीर्वाद
नवरात्र में जगतजननी नवदुर्गा की आराधना से सुख-समृद्धि, ऐश्वर्य की प्राप्ति
वासन्तिक नवरात्र 6 अप्रैल से 14 अप्रैल तक
दुर्गा अष्टमी : 13 अप्रैल, शनिवार। नवमी : 14 अप्रैल, रविवार । दशमी : 15 अप्रैल, सोमवार
चैत्र शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा से नववर्ष का प्रारम्भ माना जाता है। इस भारतीय संवत्सर भी कहते हैं। ब्रह्मपुराण के अनुसार चैत्र शुक्लपक्ष की प्रतिपदा तिथि के दिन ही ब्रह्माजी ने सृष्टि की रचना की थी। नववर्ष के प्रारम्भ में नौ दिन तक वासन्तिक नवरात्र कहलाता है। वासन्तिक नवरात्र में जगतजननी जगदम्बा की महती कृपा प्राप्ति के लिए कुमारी कन्याओं की विधि-विधानपूर्वक पूजा-अर्चना करके उनके आशीर्वाद लेने की परम्परा है। प्रख्यात ज्योतिर्विद श्री विमल जैन ने बताया कि भक्तगण में मां दुर्गा के नौ स्वरूपों की पूजा-अर्चना करके आत्मकल्याण के साथ अपने मनोरथ की पूर्ति की कामना करते हैं। नवरात्र में व्रतकर्ता को व्रत समाप्ति पर हवन आदि के पश्चात कुमारी कन्याओं (देवी स्वरूप) एवं बटुक (भैरव स्वरूप) का विधि-विधानपूर्वक पूजन-अर्चन किया जाता है। कुमारी कन्याओं को त्रिशक्ति यानि महाकाली, महालक्ष्मी एवं महासरस्वती देवी का स्वरूप माना गया है। कुमारी कन्याओं एवं बटुक की भी पूजा करने का नियम है। पूजनोपरान्त उन्हें आभूषण, नववस्त्र, मिष्ठान, ऋतुफल, मेवा व नगद द्रव्य आदि भेंट करके उनसे आशीर्वाद लिया जाता है। इस बार नवरात्र 6 अप्रैल, शनिवार से 14 अप्रैल, रविवाक तक रहेगा। चैत्र शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा तिथि 5 अप्रैल, शुक्रवार को दिन में 2 बजकर 21 मिनट पर लगेगी जो कि 6 अप्रैल, शनिवार को दिन में 3 बजकर 24 मिनट तक रहेगी। उदयातिथि के मान के अनुसार 6 अप्रैल, शनिवार को प्रतिपदा तिथि रहेगी। प्रतिपदा तिथि पर ही विधि-विधानपूर्वक शुभ मुहूर्त में कलश स्थापना की जाएगी। कलश स्थापना का शुभमुहूर्त 6 अप्रैल, शनिवार को दिन 9 बजकर 31 मिनट से 9 बजकर 55 मिनट तक एवं अभिजीत मुहूर्त दिन में 11 बजकर 35 मिनट से 12 बजकर 24 मिनट तक है।
श्री विमल जैन जी बताया कि चैत्र शुक्लपक्ष की अष्टमी तिथि 12 अप्रैल, शुक्रवार को दिन में 1 बजकर 24 मिनट पर लगेगी जो अगले दिन 13 अप्रैल, शनिवार को दिन में 11 बजकर 42 मिनट तक रहेगी। तत्पश्चात नवमी तिथि प्रारम्भ हो जाएगी। अष्टमी तिथि का हवन, कुंवारी पूजन महानिशा पूजा 13 अप्रैल, शिनिवार को ही सम्पन्न होगी। उदया तिथि के मुताबिक 13 अप्रैल, शनिवार को अष्टमी तिथि का मान रहने से महाअष्टमी, दुर्गाष्टमी का व्रत आज ही रखा जाएगा। नवरात्र के धार्मिक अनुष्ठान में कुमारी कन्याओं की विधि-विधानपूर्वक पूजा-अर्चना करना शुभ फलदायी रहेगा।
किस वर्ण की कन्या पूजन से क्या-क्या मिलता है फल – ज्योतिषविद श्री विमल जैन जी ने बताया कि देवी भागवत ग्रन्थ के अनुसार ब्राह्मण वर्ण की कन्या-शिक्षा ज्ञानार्जन व प्रतियोगिता, क्षत्रिय वर्ण की कन्या-सुयश व राजकीय पक्ष से लाभ, वैश्य वर्ण की कन्या-आर्थिक समृद्धि व धन की वृद्धि के लिए, शूद्र वर्ण की कन्या-शत्रुओं पर विजय एवं कार्यसिद्धि हेतु तथा सभी वर्णों की कन्याओं का पूजन विधि-विधानपूर्वक करके लाभ उठाना चाहिए। ये ज्ञातव्य है कि दो वर्ष से दस वर्ष तक की कन्या के पूजन का विधान है। दो वर्ष की कन्या को कुमारी, तीन वर्ष की कन्या – त्रिमूर्ति, चार वर्ष की कन्या कल्याणकारी, पांच वर्ष की कन्या- रोहणी, छः वर्ष की कन्या – काली, सात वर्ष की कन्य – चण्डिका, आठ वर्ष की कन्या -शाम्भवी एवं नौ वर्ष की कन्या -दुर्गा तथा दस वर्श की कन्या- सुभद्रा के नाम से दर्शाया गया है। इसकी पूजा-अर्चना करने से मनोवांछित फल मिलता है। अस्वस्थ, विकलांग एवं नेत्रहीन आदि कन्याएं पूजन हेतु वर्जित हैं। फिर भी इनकी उपेक्षा न करते हुए यथाशक्ति इनकी सेवा व सहायता ककरनी चाहिए। जिससे जगत जननी मां दुर्गा की कृपा से जीवन में सुख-समृद्धि खुशहाली बनी रहे।