वट सावित्री व्रत

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अखण्ड सौभाग्य का अत्यंत फलदायी व्रत है : वट सावित्री व्रत
त्रिदिवसीय : वटसावित्री व्रत 1 जून से 3 जून तक
प्रथम संयम : 1 जून को
द्वितीय संयम : 2 जून को
तृतीय संयम व प्रमुख व्रत का पारण 3 जून को

भारतीय संस्कृति के सनातन धर्म में विशेष कामना की पूर्ति के लिए व्रत उपवास रखकर पूजा-अर्चना करने की परम्परा है। अखण्ड सौभाग्य व सुख की कामना के साथ वट सावित्री व्रत ज्येष्ठ कृष्ण पक्ष की त्रयोदशी से शुरु ज्येष्ठ कृष्ण की अमावस्या तक किया जाता है। यह व्रत सुहागिन महिलाएं अपने पति की दीर्घायु एवं अपने मनोरथ की पूर्ति के लिए रखती हैं। व्रत के दिन वट वृक्ष तथा सत्यवान व सावित्री एवं यमराज की पूजा की जाती है। ऐसी मान्यता है कि वट वृक्ष के मूल में श्री ब्रह्माजी, धड़ में श्री विष्णु जी तथा ऊपरी मस्तिष्क वाले भाग में श्री गणेश जी का वास है जिसके फलस्वरूप वटवृक्ष की पूजा की जाती है। इस व्रत के प्रभाव से सावित्री ने अपने मृतक पति सत्यवान को धर्मराज से छुड़वाया था।

व्रत का विधान – प्रख्यात ज्योतिषविद् श्री विमल जैन जी बताया कि वट सावित्री व्रत में त्रयोदशी से अमावस्या तक व्रत रखने का नियम है। तीन दिन के व्रत न रखने की स्थिति में मात्र अमावस्या तिथि के दिन पूर्ण व्रत रखकर प्रतिपदा तिथि के दिन व्रत का पारण विधिविधान पूर्वक किया जाता है। इस बार त्रयोदशी तिथि शनिवार, 1 जून को है। इस दिन व्रत का प्रथम संयम रखा जायेगा चतुर्दशी तिथि रविरा 2 जून को व्रत का दूसरा संयम रहेगा। सोमवार, 3 जून को अमावस्या तिथि के व्रत का तृतीय संयम एवं अंतिम दिन रहेगा। लगातार तीन दिन तक व्रत न रखने की स्थिति में प्रथम दिन यानि त्रयोदशी को रात्रि में भोजन, द्वितीय दिन यानि चतुर्दशी को अयाचित भोजन तथा अंतिम दिन अमावस्या तिथि को श्रद्धा व भक्ति के साथ पूर्ण उपवास रखकर वत की प्रकिया पूर्ण की जाती है। व्रतकर्ता को ज्येष्ठ कृष्ण त्रयोदशी तिथि के दिन स्नान-ध्यान करके अपने आराध्य देवी-देवता की पूजनोपरान्त वट सावित्री व्रत का संकल्प लेना चाहिए। ज्योतिषविद् श्री विमल जैन जी ने बताया कि इस दिन वट के वृक्ष की विधि-विधान पूजा-अर्चना करके वट वृक्ष को जल से सिंचन करना चाहिए। वटवृक्ष को रोली का तिलक लगाकर चावल, भिगोया हुआ चना, गुड़ एवं हल्दी आदि अर्पित करना चाहिए। धूप प्रज्जवलित करके देशी घी का दीपक भी जलाया जाता है। अखण्ड सौभाग्य की कामना को मन में लेकर हल्दी से रंगे हुए कच्चे सूत को वट वृक्ष को लपेटते हुए 7 बार परिक्रमा की जाती है। सावित्री की मूर्ति रखकर उसकी पूजा की जाती है। पारिवारिक परम्परा के अनुसार भैंसे पर आरुढ़ यमराज की प्रतिमा की धूप-चन्दन-दीपक-रोली-केशर एवं फल मिष्ठान आदि से पूजा करते हैं। व्रतकर्ता वटवृक्ष के पत्तों की माला भी धारण करते हैं। वट सावित्री के व्रत से पति की दीर्घायु के साथ अन्य अभिवाषाएं भी पूर्ण होती है।

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