लड़ने से अच्छा है, अलग हो जाओ

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सी महीने गुवाहाटी हाईकोर्ट ने पत्नी के सिंदूर लगाने और चूड़ी पहनने से इनकार करने पर एक व्यक्ति को पत्नी से तलाक लेने की अनुमति दी। अदालत ने कहा कि महिला रीति-रिवाजों को नहीं मान रही, इसका मतलब है कि वह शादी को स्वीकार नहीं कर रही है। पत्नी का भी यही कहना था कि वह उस आदमी को अपना पति नहीं मानती। फिर भी तलाक के लिए दोनों के बीच लंबा मुकदमा चला, बल्कि हाईकोर्ट से पहले फैमिली कोर्ट ने तलाक का फैसला देने से भी मना कर दिया था। इस मामले में मुकदमा लडऩे वाले पति-पत्नी की शादी 2012 में हुई थी और अगले ही साल पत्नी ने शादी को मानने से इंकार करते हुए पति का घर छोड़ दिया था। इसके बाद पति ने फैमिली कोर्ट में तलाक की एप्लीकेशन लगाई थी, जो वहां से खारिज हो गई थी। फिर मामला हाईकोर्ट पहुंचा, जहां पत्नी ने बयान दिया था, ‘मैं अभी सिंदूर नहीं लगा रही हूं क्योंकि मैं इस आदमी को अपना पति नहीं मानती।’ इसके बाद फैसला देते हुए हाईकोर्ट ने कहा कि फैमिली कोर्ट ने उचित परिप्रेक्ष्य में साक्ष्यों का मूल्यांकन नहीं किया है। साथ यह भी कहा कि प्रतिवादी यानी कि पत्नी का ऐसा रुख उसके स्पष्ट इरादे की ओर इशारा करता है कि वह पति के साथ अपने वैवाहिक जीवन को जारी रखने के लिए तैयार नहीं है।

ऐसे में पति का पत्नी के साथ विवाह में बने रहना, अपीलकर्ता पति और उसके परिवार के सदस्यों का उत्पीडऩ माना जाएगा। हाल के वर्षों में वैवाहिक संबंधों में पेचीदगियां बढ़ी हैं। ऐसे में यह सिंदूर और शांखा न अपनाने का मामला नहीं, बल्कि एक घिसटते रिश्ते पर विराम लगाकर जिंदगी में आगे बढऩे की बात कहने वाला फैसला है। इस मुकदमे में पत्नी ने पति और उसके परिवार के खिलाफ तीन आपराधिक शिकायतें दर्ज की थीं, जिसमें घरेलू हिंसा और दहेज प्रताडऩा प्रमुख थी। पिछले महीने पंजाब और हरियाणा हाई कोर्ट ने दहेज प्रताडऩा के कानून पर कहा था कि इसका इस्तेमाल गलत तरीके से करना अब आम बात हो गई है। सुप्रीम कोर्ट ने पिछले साल कहा था कि ऐसे मामलों में आरोपों की पुष्टि हो जाने तक कोई गिरफ्तारी ना की जाए। अगर महिला जमी है या प्रताडऩा से उसकी मौत हो जाए तो ऐसा केस इन गाइडलाइंस के दायरे से बाहर होगा। हमारी अदालतें बार-बार ऐसे मामलों में दिशा-निर्देश देती रही हैं, इसके बावजूद तलाक के केसों में पेचीदगियां घटने का नाम नहीं ले रही हैं। बजाय इसके कि शांति से तलाक लेकर अपना जीवन नए सिरे से सुनियोजित किया जाए, तलाक चाहने वाले अधिकतर लोग इन्हीं झगड़ों में फंसे रहे।

नेशनल क्राइम रिकॉर्ड ब्यूरो के आंकड़ों के मुताबिक 2012 में धारा 498, (दहेज प्रताडऩा) के तहत करीब 2 लाख लोगों की गिरफ्तारी हुई, जो 2011 के मुकाबले 9.4 फीसद ज्यादा थी। गिरफ्तार हुए लोगों में लगभग एक चौथाई महिलाएं थीं। झूठे मामलों के कारण ही हमारे यहां इस धारा में चार्जशीट की दर 93.6 फीसद है, जबकि सजा की दर महज 15 फीसद। भारतीय समाज में पिछले कुछ वर्षों में दहेज के प्रति काफी चेतना आई है और प्रेम विवाहों की भी संया बढ़ी है, फिर भी भारत की परिवार अदालतों में मियां-बीवी सालों साल लड़ते रहते हैं। हर जिले में थाने से लेकर कोर्ट तक मियां- बीवी के बीच रास्ता निकालने के लिए परिवार परामर्श केंद्र हैं, फास्ट ट्रैक अदालतें हैं, लेकिन झगड़े हैं कि खत्म होने का नाम ही नहीं ले रहे। कभी घरेलू हिंसा का बहाना, कभी क्रूरता तो कभी दहेज उत्पीडऩ का बहाना। इन्हीं सबके चलते जो वाकई प्रताडि़त हैं, उन्हें भी संदेह की नजर से देखा जाता है। मियां-बीवी को यह समझना होगा कि अगर अलग होने का फैसला कर ही लिया है, तो आपस में झगडऩे का नुकसान उन दोनों को तो होता ही है, उनके परिवार वाले भी परेशान होते हैं। बेहतरी इसी में है कि नहीं निभ रही है तो आपस में बातचीत करके अलग हो जाएं, क्योंकि दो लोगों के झगड़े में फायदा हमेशा कोई और उठाता है।

मोनिका शर्मा
(लेखिका वरिष्ठ स्तंभकार हैं ये उनके निजी विचार हैं)

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