रिटायर नेताओं की आखिरी कोशिश

0
258

देश के रिटायर हो गए समाजवादी नेता आखिरी कोशिश कर रहे हैं। इसे बासी कढ़ी में उबाल लाने की कोशिश भी कह सकते हैं। इसके बावजूद ऐसा नहीं है कि इसकी अनदेखी की जा सके। देश के कई पुराने क्षत्रप समाजवादी नेता किसी न किसी तरह से एक दूसरे से संपर्क कर रहे हैं और तीसरे मोर्चे की राजनीति करने का प्रयास कर रहे हैं। कांग्रेस और भाजपा दोनों की नजर इस तीसरे मोर्चे की राजनीति पर है क्योंकि दोनों को पता है कि अगर कोई तीसरा मोर्चा बनता है तो उसका बड़ा असर इन दोनों की राजनीति पर पड़ेगा।

हरियाणा के पूर्व मुख्यमंत्री और इंडियन नेशनल लोकदल के नेता ओमप्रकाश चौटाला ने कहा है कि सितंबर में तीसरा मोर्चा बन जाएगा। सितंबर में नहीं बने तब भी अगर शुरुआत हो गई तो मोर्चा बनेगा जरूर। ध्यान रहे बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने चौटाला के यहां जाकर उनसे मुलाकात की थी। जदयू के राष्ट्रीय महासचिव केसी त्यागी भी उनके साथ थे। तीनों नेताओं ने बंद कमरे में लंबी बात की थी। यह बातचीत संभावित तीसरे मोर्चे को लेकर ही थी। उसके बाद से चौटाला की जेडीएस नेता एचडी देवगौड़ा और से मुलाकात हुई है।

दूसरी ओर लालू प्रसाद और मुलायम सिंह यादव की मुलाकात हुई और अब शरद यादव भी सेहत ठीक होने के बाद सक्रिय हो गए हैं। सो, नब्बे के दशक में देश की राजनीति को चलाने वाले सारे पुराने क्षत्रप एक दूसरे से मिल रहे हैं और तीसरा मोर्चा बनाने का प्रयास कर रहे हैं। यह मामूली बात नहीं है। ध्यान रहे कांग्रेस और प्रशांत किशोर के तमाम प्रयास के बावजूद इस बात से इनकार नहीं किया जा सकता है कि अगले चुनाव में लड़ाई आमने-सामने की यानी भाजपा गठबंधन बनाम कांग्रेस गठबंधन की नहीं होगी।

कई पार्टियां ऐसी हैं, जो इन दोनों गठबंधनों में नहीं रहेंगी। अगर उनको कोई पार्टी एकजुट कर दे तो अगले चुनाव की तस्वीर बदल सकती है। भाजपा चाहेगी कि कोई तीसरा मोर्चा बने क्योंकि उसको पता है कि तीसरे मोर्चे के क्षत्रप उसको नुकसान नहीं पहुंचाएंगे, बल्कि कांग्रेस गठबंधन को नुकसान पहुंचाएंगे। तीसरे मोर्चे की राजनीति भाजपा विरोधी वोट का बंटवारा करेगी। कांग्रेस नेता इस बात को समझ रहे हैं इसलिए वे इसे रोकने की कोशिश करेंगे। इस काम के लिए उनके पास लालू प्रसाद और एचडी देवगौड़ा हैं, जिनकी पार्टियों के साथ संबंधित राज्यों में कांग्रेस का तालमेल होना है। इस मामले में वामपंथी पार्टियों की भूमिका भी देखने वाली होगी। अभी तो वे कांग्रेस गठबंधन के साथ हैं लेकिन तृणमूल कांग्रेस की वजह से वे गठबंधन से किनारा भी कर सकते हैं।

कांग्रेस पार्टी के तीन युवा नेता पार्टी के अंदर बड़ी जिम्मेदारी का इंतजार कर रहे हैं। पंजाब में कांग्रेस के प्रदेश नेताओं से लेकर आलाकमान तक को लग रहा है कि अगले साल पार्टी लगातार दूसरी बार सरकार बना लेगी। हालांकि जानकार सूत्रों का कहना है कि मुयमंत्री कैप्टेन अमरिंदर सिंह के चुनावी और राजनीतिक सलाहकार रहे प्रशांत किशोर ऐसा नहीं मानते हैं। प्रशांत किशोर को लग रहा था कि कांग्रेस चुनाव नहीं जीत पाएगी। यह भी कहा जा रहा है कि उनके शुरुआती सर्वेक्षणों में कांग्रेस पार्टी तीसरे नंबर पर पिछड़ती दिखी और आम आदमी पार्टी सबसे आगे थे। दूसरे स्थान पर अकाली दल था। सर्वेक्षण के इस नतीजे के बाद ही प्रशांत किशोर ने पंजाब से पीछा छुड़ाया। वे नहीं चाहते थे कि कांग्रेस के साथ मिल कर बड़ा दांव चलने से पहले पंजाब में झटका लगे। यह भी कहा जा रहा है कि पंजाब के मुख्यमंत्री अमरिंदर सिंह ने उनको चंडीगढ़ बुलाने और साथ में कम से कम एक फोटो खिंचवा लेने का भी बहुत प्रयास किया।

उनको लग रहा था कि पश्चिम बंगाल के नतीजों के बाद प्रशांत किशोर के साथ उनकी एक फोटो कांग्रेस कार्यकर्ताओं का मनोबल बढ़ा देगी और विपक्ष का हौसला पस्त कर देगी। प्रशांत किशोर की संस्था आई-पैक के सर्वेक्षण का जो भी नतीजा हो, हकीकत यह है कि किसानों के आंदोलन और राज्य की जनसंया संरचना के लिहाज से कांग्रेस को उतनी कमजोर नहीं है। जाट सिख और कट्टरपंथी सिखों का वोट भले आप और अकाली दल की ओर दिख रहा है लेकिन ओबीसी सिख, जिनकी संया राज्य में सबसे ज्यादा है वे कांग्रेस के साथ दिख रहे हैं। एक दूसरी भरोसेमंद एजेंसी के सर्वेक्षणों के मुताबिक कांग्रेस का पारंपरिक ओबीसी वोट उसके साथ है और दलितों का बड़ा वर्ग खास कर सिख दलित कांग्रेस के साथ जा सकते हैं। जाट सिखों में वैसे भी कांग्रेस का आधार बहुत मजबूत नहीं रहा है। किसान आंदोलन का फायदा भी कांग्रेस को मिलेगा। देखना यही है कि ऊंट किस करवट बैठता है?

हरिशंकर व्यास
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं ये उनके निजी विचार हैं)

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here