राहुल, प्रियंका के चाहने पर भी फैसला नहीं!

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देश की तमाम पार्टियों में उसके सर्वोच्च नेता जो चाहते हैं वह हो जाता है। भारतीय जनता पार्टी में भी जहां 25 किस्म की पंचायत की व्यवस्था रही है वहां भी अपने समय के सबसे मजबूत नेताओं ने जैसा चाहा वैसा फैसला कराया। जब अटल बिहारी वाजपेयी और लालकृष्ण आडवाणी की चलती थी तो उन्होंने बंगारू लक्ष्मण, जना कृष्णमूर्ति, वेंकैया नायडू को अध्यक्ष बनवाया था। तब भी सबको पता था कि असली ताकत कहा हैं। अभी जेपी नड्डा अध्यक्ष हैं पर देश जानता है कि असली ताकत कहा हैं। पर कांग्रेस पार्टी के सबसे बड़े नेता उलटी गंगा बहा रहे हैं। प्रियंका गांधी कह रही हैं कि वे चाहती हैं कि कोई गैर गांधी कांग्रेस का अध्यक्ष बने। उन्होंने कहा है कि वे राहुल गांधी की इस बात से पूरी तरह से सहमत हैं कि गांधी-नेहरू परिवार से बाहर के किसी नेता को कांग्रेस का अध्यक्ष बनना चाहिए। अब सवाल है कि राहुल और प्रियंका दोनों चाहते हैं कि परिवार से बाहर का कोई अध्यक्ष बने, फिर भी इसका फैसला नहीं हो पा रहा है तो इसे क्या कहा जाए? क्या सोनिया गांधी वीटो के जरिए अपने बेटे-बेटी की बात को खारिज कर रही हैं?

सब जानते हैं कि कांग्रेस में फैसला सोनिया, राहुल और प्रियंका की तिकड़ी को करना है। इनमें से दो लोग इस बात पर सहमत हैं कि परिवार से बाहर के किसी व्यक्ति को अध्यक्ष बनाया जाए। इसके बावजूद एक साल से ज्यादा समय से लेम डक अरेंजमेंट चल रहा है। सोनिया गांधी अंतरिम अध्यक्ष के रूप में काम किए जा रही हैं। दस अगस्त को उनको अंतरिम अध्यक्ष बने एक साल हो गए पर पार्टी में कोई हलचल नहीं हुई। इस बात की कोई खबर नहीं है कि पार्टी के अंदर नए अध्यक्ष को लेकर कोई विचार-विमर्श हुआ है। उसके बाद प्रियंका गांधी का यह बयान आ गया कि कोई गैर गांधी अध्यक्ष बनना चाहिए। असल में इस तरह के बयानों से कांग्रेस के नेता अपनी हंसी उड़वा रहे हैं। लोगों में इसका मजाक बन रहा है। सोशल मीडिया में मीम बन रहे हैं। प्रियंका और राहुल यह बताना चाह रहे हैं कि वे वंशवाद के आरोपों से मुक्ति पाना चाहते हैं पर अपने बयानों से उसी राजनीति को मजबूत कर रहे हैं। अपने ऊपर ज्यादा से ज्यादा फोकस बनवाने का प्रयास भी उनकी राजनीति को कमजोर कर रहा है।

या फर्क पड़ेगा: जैसे भारतीय जनता पार्टी ने जेपी नड्डा को अध्यक्ष बना दिया तो भाजपा की राजनीति पर क्या फर्क पड़ गया? भाजपा की राजनीति वैसे ही चल रही है, जैसे अमित शाह के अध्यक्ष रहते चलती थी। अमित शाह के अध्यक्ष रहते कर्नाटक में भाजपा ने कांग्रेस और जेडीएस की सरकार गिरा कर अपनी सरकार बनाई थी और नड्डा के अध्यक्ष बनने के बाद मध्य प्रदेश में कांग्रेस की सरकार गिरा कर भाजपा ने अपनी बनाई। जॉर्ज फर्नांडीज ने जया जेटली को समता पार्टी का अध्यक्ष बना दिया था। शरद यादव जैसे बड़े नेता जनता दल यू के राष्ट्रीय अध्यक्ष थे पर तब भी सबको पता था कि असली ताकत नीतीश कुमार के पास है। और पार्टी वैसे ही चलती रही, जैसे नीतीश चलाना चाहते थे। सो, इस बात से कोई फर्क नहीं पड़ता है कि कांग्रेस अध्यक्ष की कुर्सी पर कौन बैठा। कम से कम अभी कोई नेता ऐसा नहीं दिख रहा है, जो कुर्सी पर बैठते ही देश की राजनीति को बदल देगा।

कोई नेता ऐसा नहीं है, जिसके पास कोई चमत्कारिक चाबी है, जिससे वह कांग्रेस की सफलता का ताला खोल देगा। कांग्रेस की सफलता का ताला राहुल और प्रियंका की मेहनत और समझदारी से ही खुलेगा। इसलिए कांग्रेस के तीनों बड़े नेता यह असमंजस की स्थिति खत्म करें और किसी को भी कांग्रेस अध्यक्ष की कुर्सी पर बैठा दें, लेकिन अपनी राजनीति कायदे से करें। आसू को पटाओ: कांग्रेस पार्टी ने कहा है कि वह असम में महागठबंधन बनाएगी। हालांकि मुश्किल यह है कि कांग्रेस पार्टी ने वहां सब कुछ 15 साल तक मुयमंत्री रहे तरुण गोगोई के ऊपर छोड़ा है, जो अपने बेटे गौरव गोगोई से आगे कांग्रेस का भविष्य देख ही नहीं पा रहे हैं। सो, वे क्या महागठबंधन बनाएंगे और कैसे बनवाएंगे, यह अभी नहीं कहा जा सकता है। वे इसके लिए प्रयास कर रहे हैं। उन्होंने बदरूद्दीन अजमल की पार्टी से बात करने और उसे महागठबंधन में लाने की बात कही है। पर अजमल की पार्टी के साथ आने भर से बात नहीं बनेगी, फिर भाजपा को पूरा चुनावी एजेंडा सांप्रदायिक बनाने में समय नहीं लगेगा।

कांग्रेस अगर अपनी पुरानी सहयोगी बोडोलैंड पीपुल्स फ्रंट को भी साथ लाए तब भी उसे फायदा हो सकता है। परंतु सबसे विशेष स्थिति ऑल असम स्टूडेंट यूनियन, आसू की है। उसने केंद्र के नागरिकता कानून का सबसे मुखर विरोध किया है। उसके लोग फिर आंदोलन की तैयारी कर रहे हैं। आसू का पर्याप्त असर असम में है। खबर है कि आसू अलग राजनीतिक दल बनाने की तैयारी में है। कांग्रेस अगर उसे साथ आने के लिए तैयार करती है तो पूरा राजनीतिक परिदृश्य बदल जाएगा। नागरिकता कानून के खिलाफ संघर्ष में असोम जातीयतावादी युवा छात्र परिषद है, जिसने आगे की राजनीतिक रूपरेख बनाने के लिए 18 सदस्यों की एक कमेटी बनाई है। कांग्रेस को इससे बात करनी चाहिए। नागरिकता कानून से नाराज असम गण परिषद से भी कांग्रेस बात कर सकती है। कांग्रेस को अगर असम में कुछ चमत्कार करना है तो उसे कुछ बिल्कुल अलग आइडिया लाना होगा।

हरिशंकर व्यास
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं ये उनके निजी विचार हैं)

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